नफरत –  अंतरा

शहर में एक बहुत खूबसूरत ऊँची सी इमारत थी …इतनी  ऊंची के निगाह उठा कर देखो तो सर  की टोपी जमीन पर गिर जाए…. इतनी खूबसूरत कि एक बार में खूबसूरती निगाह में ना भर पाए…. जब रात में उस में रोशनी होती थी तो आंखें  चौंधिया जाती थी । 

इतनी खूबसूरती के बाद भी उसे एक गम सताया  करता था… 10 कदम की दूरी पर कुछ  मलिन झोपड़ियों की बस्ती थी.. वह झोपड़ियां ऐसे थी जैसे चांद में लगा हुआ कोई दाग … इमारत को इन  लो क्लास झोपड़ियों के साथ रहना बिल्कुल पसंद नहीं था…इमारत झोपड़ियों को देखकर  नाक मुंह  सिकोड़ा करती थी लेकिन जैसे उन झोपड़ियों को कोई फर्क ही नहीं पड़ता था वह अपनी दुनिया में ही  मगन जी रही थी ।

एक दिन इमारत से रहा नहीं गया और उसने एक झोपड़ी से कहा,” मैं इतनी खूबसूरत इमारत हूं और तुम इतनी गंदी झोपड़ी.. तुम लोग कहीं और क्यों नहीं चली जाती?

इस पर झोपड़ी ने कहा ,”हम तो जमाने से यही हैं …तुम्हें यहां आने से पहले सोचना चाहिए था”

इमारत-” अब तो मैं यहां आ गई हूं.. कुछ मुझसे ही देखकर सीखो”

झोपड़ी–”  क्यों…  हममें ऐसी क्या कमी है …जो तुमसे सीखने की नौबत आ पड़ी है?

  इमारत–“कमियां ही कमियां हैं …कब तक  गिनाऊँगी ? मैं कितनी खूबसूरत हूं और तुम कितनी बदसूरत, गंदी,  मैली कुचैली “

झोपड़ी जोर का ठहाका लगाते  हुए बोली,”मानती हूं कि मैं बहुत गंदी, मैली कुचैली हूं पर असलियत में  बड़े-बड़े गंदे और घिनौने षड्यंत्र ऊंची ऊंची इमारतों में ही होते हैं …झोपड़ी वालों को षड्यंत्र करने की फुर्सत कहां?”




इमारत जवाब सुनकर थोड़ा सा तिलमिलाई और नाक सिकोड़ते हुए दोबारा बोली ,” मैं कितनी मजबूत हूं और तुम कितने कमजोर …किसी मौसम का मुझ पर कोई असर नहीं होता”

झोपड़ी शालीनता से बोली,”  कमजोर झोपड़ी में  विश्वास और रिश्ते  मजबूत होते हैं …मौसम का टूटा दोबारा बन सकता है लेकिन  टूटा  विश्वास दोबारा नहीं बन सकता.. झोपड़ी में रिश्तो की नींव मजबूत होती है जो कि इमारतों के पास नहीं होती”

 इमारत–“मैं रोशनी से भरी  हुई.. तुम अंधेरे में डूबी हुई.. मेरी रोशनी देखकर लोगों की आंखें  चौंधिया जाती है”

झोपड़ी–” भले ही मेरे पास तुम्हारे जितनी रोशनी नहीं है लेकिन  सच्ची खुशियों से रोशन चेहरे जरूर है … मुझे बनावटी रोशनी की कोई जरूरत नहीं.. जहां बनावटी हंसी  हसनी पड़े … इतनी कम रोशनी में भी असली चेहरा दिखाई देता है और इमारत में आंख चौंधिआनेवाली रोशनी में भी असली चेहरा नहीं दिखाई देता”

“मेरे पास सारे ऐशो आराम है लेकिन तुम्हारी  जिंदगी तो फटे हाल है” इमारत में  तीखी मुस्कान के साथ कहा

” फटे हाल ही सही मेरी जिंदगी तो है..ऐशो  आराम के चक्कर में तुम्हारी जिंदगी का तो कोई अता पता ही नहीं रह गया है… चैन की नींद तो  झोपड़ी में ही आती है… सुना है इमारतों को नींद की गोली लेनी पड़ती है” झोपड़ी ने भी  चिढ़ाने वाले अंदाज में बोला

 इमारत  भी अब बहुत  खिसिया चुकी थी  सो जो हर दौलतमंद का आखिरी दांव होता है… इमारत ने भी वही  दांव फेंका” मेरी  जेबों में दौलत की गर्माहट है जिससे मैं दुनिया की हर चीज खरीद सकती हूँ,   यहां तक तुम्हें भी”

झोपड़ी  के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान फैल गई और बोली ” मेरे पास रिश्तो में गर्माहट है और यह  किसी दौलत से नहीं खरीदी जा सकती… बेशक तुम मुझे खरीद सकती हो… लेकिन  जो मेरे पास है वह खरीद पाओ..  इतनी दौलत तुम्हारे पास नहीं”

अब तो इमारत भी समझ  चुकी थी कि झोपड़ी के पास कुछ ना होते हुए भी दुनिया की सबसे अनमोल चीज है और वह दुनिया में सबसे ज्यादा अमीर, खुश और संतुष्ट है और उस दिन के बाद से इमारत ने झोपड़ी से कभी नफरत नहीं की….

मौलिक

स्वरचित

 अंतरा 

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