मुझे अपनों के बीच जाना है। –   अर्चना खंडेलवाल

पिंकी की हल्दी की रस्म चल रही थी, सभी रिश्तेदार आये हुए थे, हंसी-खुशी और ठहाके घर में लग रहे थे, सुनिधि ये सब वीडियो कॉल में देख रही थी, उसका भी मन था वो भी अपनी चचेरी बहन की शादी में शामिल होती पर उसके मायके और अमेरिका में बहुत दूरी थी।

हर बार तो हर उत्सव के लिए भारत नहीं जा सकती थी।

रवि वहीं बैठा लैपटॉप पर काम कर रहा था,उसने सुनिधि की भरी हुई आंखें देखी तो उसे भी महसूस हुआ कि सुनिधि और वो अपने परिवार, रिश्तेदारों से दूर रहकर बहुत कुछ खो रहे हैं। उनके जीवन में ये छोटे-बड़े उत्सव आते ही नहीं है। जब भी किसी की शादी हो,सगाई हो,मुंडन, जन्मदिन की पार्टी, जन्मोत्सव हो। वो दोनों बस वीडियो कॉल पर ही अटेंड कर पाते हैं फिर कई दिनों तक वहां की, रिश्तेदारों की चर्चा करते हैं, कुछ दिनों बाद सामान्य दिनचर्या में आते हैं, वहां फिर कोई उत्सव या पारिवारिक कार्यक्रम हो जाता है।

रवि के परिवार में दो ताऊजी,दो चाचाजी है,बुआ और मौसियों से भरा-पूरा परिवार है, उनके बच्चे हैं,उनकी शादियां होती रहती है। इतने बड़े परिवार में कुछ ना कुछ चलता ही रहता है।

केवल घर की दो शादियों में ही रवि और सुनिधि शामिल हो पाये थे, इधर सुनिधि  के मायके का परिवार संयुक्त परिवार था, चार चाचाओं और पांच बुआओं  का लंबा-चौड़ा परिवार था। सुनिधि के मायके में भी पारिवारिक कुछ ना कुछ चलता ही रहता था,कभी शादी, आठवें की पूजा, कुलदेवी की पूजा,हर छोटे-बड़े त्योहार पर सब मिलते थे और सुनिधि दूर से ही बस वीडियो कॉल पर देख लेती थी।

सुनिधि और रवि के एक बेटा  आठ वर्षीय और एक बेटी पांच वर्षीय है। वो भी अपने रिश्तेदारों और परिवार से दूर है।

सुनिधि ये देखकर भी सहम जाती है कि उसके दोनों बच्चे अमेरिकन संस्कृति में ढ़ल रहे हैं, वहीं की बोलचाल और फैशन में ढ़ल चुके हैं। वो भारतीय संस्कृति और त्योहार वहां भी मनाती हैं पर त्योहार मनाने का असली मजा तो परिवार के साथ में ही आता है।

 

रवि,”कल पिंकी की शादी है और हमेशा की तरह हम वीडियो कॉल पर ही देखेंगे। रवि मुझे पिंकी की शादी में जाना है,चलो यहां से, मुझे भारत जाना है, मुझे अपनों के बीच जाना है, उनके सुख-दुख में शामिल होना है, यहां पैसा है, आजादी है,  शान-शौकत है पर हमारे अपने नहीं है.’



ये कहते-कहते सुनिधि सुबकने लगी।

 

रवि प्यार से सुनिधि को गले लगाकर चुप कराता है, तुम ही अमेरिका आना चाहती थी, यहां की जिंदगी तुम्हें लुभाती थी, अपने परिवार और रिश्तेदारों में तुम्हारा मान-सम्मान बढ़े और तुम सबसे ऊपर रहो,ऐसी तुम्हारी इच्छा थी, मैंने तो कंपनी के अमेरिका के ऑफर को ठुकरा दिया था पर तुमने जिद करी थी और हम आ गये।

आज मन की बात कहूं,” मैंने यहां आकर बहुत कुछ खोया है, मैं सदा ही परिवार और रिश्तेदारों के बीच में पला-बढ़ा हूं , यहां मुझे भी अकेलापन सालता है।

अब तुम सोच लो यहां से जाओगी तो तुम बहुत कुछ खो दोगी, उस दुनिया में वापस जाना और तालमेल बिठाना मुश्किल होगा।,’ रवि ने सुनिधि को आगाह किया।

 

मुझे पूरा भरोसा है,अब समझ में आया है कि अपने और परायों के बीच में क्या अंतर होता है, सालों ऐसी जिंदगी जीली पर अब अपनों का साथ चाहिए।मैं चाहती हूं,मेरे बच्चों की परवरिश भारत में अपने परिवार और रिश्तेदारों के बीच में हो। दोनों भारतीय संस्कृति से जुड़े रहें और अपने देश में रहें।

तुम्हारी यही इच्छा है तो यही होगा, ये कहकर रवि ने सुनिधि को दिलासा दी।

रवि अपनी कंपनी में बात करता है पर वहां भारत में उसी कंपनी में कोई जगह नहीं थी। ये सुनकर सुनिधि मायूस हो जाती है वो कहती हैं कि आप कंपनी चेंज कर लो , थोड़ी सैलेरी कम मिलेगी तो भी चलेगा हम अपनों के बीच तो रहेंगे।

रवि सात आठ महीने से कोशिश कर रहा था, आखिर एक मल्टीनेशनल कंपनी में उसकी जॉब लग गई। सुनिधि ने भगवान का बहुत-बहुत धन्यवाद किया वो पिछले काफी महीनों से भारत जाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी।

तीन -चार महीने में रवि और सुनिधि बच्चों समेत मुम्बई   आ जाते हैं। मुम्बई आकर सुनिधि अपने परिवार से मिलती है। रवि भी अपने परिवार और रिश्तेदारों के बीच काफी सहज महसूस करता है।

रवि के आते ही रवि के माता-पिता की बूढ़ी हड्डियों में फिर से जान आ जाती है, उन्हें विश्वास ही नहीं होता है कि परदेश गया बेटा वापस आ गया है, पोते-पोतियों और बहू-बेटे के आने से उनके घर का खालीपन दूर हो गया।

मुम्बई में ही सुनिधि का भी मायका है, सुनिधि की मां बिस्तर पर ही बीमार रहती थी, सुनिधि से मिल नहीं पाती थी, सुनिधि के आने से मां में भी जान आ गई थी।

अब सुनिधि नियमित मां के यहां जाने लगी थी, उसकी देखभाल और सामीप्य से मां भी अब ठीक होने लगी थी।



सुनिधि के बच्चे जब भी नाना-नानी से मिलने जाते थे,नानी उन्हें कहानियां सुनाती,अपने हाथ के बने पकवान खिलाती। सालों बाद सुनिधि को मायके का सुख मिल रहा था।

रक्षाबंधन का त्योहार आया, रवि की बहन हमेशा तो राखी भेज दिया करती थी पर उसने इस बार भाई की कलाई पर राखी बांधी तो रवि की आंखें भर आईं।

रवि ने सभी बहनों और बुआओं के साथ रक्षाबंधन का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया।

सालों बाद सुनिधि ने भी अपने भाई की कलाई पर राखी बांधी तो उसके दिल को भी सूकून मिला।

बरसों बाद अपनों का साथ पाया, राखी,दीवाली ,होली हर छोटे-बड़े त्योहार में अब रवि और सुनिधि जीने लगे थे क्योंकि त्योहार का असली मजा तो अपनों के साथ ही आता है।

 

इसी बीच रवि की मौसी की बेटी की शादी थी, सुनिधि ने जमकर खरीदारी करी और पूरे परिवार सहित शादी में शामिल हुई,सभी भाभियों, भाईयों और बहनों परिवार के साथ शादी का आनंद उठाया।

रवि,”वीडियो कॉल करके शामिल होने में मजा नहीं

है,जीवन का असली सुख तो परिवार और रिश्तेदारों के बीच और साथ रहने में है।

हमने अमेरिका छोड़ कर कुछ खोया नहीं है बल्कि यहां आकर अपनों के बीच बहुत-बहुत पाया है।

 

हम भी अपने देश की परम्पराओं , संस्कृति , परिवार से जुड़े रहेंगे और हमारे बच्चे भी यही ढल जायेंगे।

वो देखो दोनों बच्चे अपने सभी भाई-बहनों के साथ मस्ती कर रहे हैं।

रवि सुनिधि को देखकर खुश था कि देर से ही सही सुनिधि को परिवार और रिश्तेदारों की महत्ता पता तो चली, उनके बिना तो जीवन ही नहीं बिताया जा सकता है

                          धन्यवाद

                      अर्चना खंडेलवाल

 

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