hindi short story with moral : शादी की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी। लगभग सभी मेहमानों को शादी के कार्ड भी भेजे जा चुके थे। कार्ड इंग्लिश में छपवाया गया था। भई , लड़का विदेशी है तो कार्ड देशी क्यूँ छपे ।
शिखा की माँ सबसे ज्यादा खुश थी। जब भी किसी का फोन आता तो अपनी बेटी की शादी एक “एन॰आर॰आई” लड़के से होने की बात सबसे पहले बताती।
सोसाइटी में उनकी इज्जत भी काफी बढ़ गई थी। कुछ पड़ोसन तो जलने भी लगी थी, एक ने तो यहां तक कह दिया- “हम्म…इनकी तो जुबान ही बदल गयी हैं। हर लाइन में एक-दो अंग्रेजी के शब्द डाल ही देती है। एक कहावत है उसी को चरितार्थ कर रही हैं ,” देशी चूहा बिलाइती बोल”।
शिखा के पिताजी बाहर बरामदे में बैठे कुछ सामान की लिस्ट फाइनल कर रहे थे। अंदर से शिखा की माँ की जोर-जोर से डांटने की आवाज आ रही थी। वह हाथ में डायरी-पेन लिए सीधे अंदर आये तो देखा उनकी पत्नी शिखा को डांट रही थी। शिखा चुपचाप नजरे झुकाये खड़ी थी। पापा को देखते ही उसकी आँखें भर आयी। पिता ने पास आकर जैसे ही उसके माथे पर हाथ रखा वह रो पड़ी।
पिता सबकुछ बर्दाश्त कर सकता है, पर अपनी लाडली की आँखों में आंसू नहीं देख सकता!
वह आपे से बाहर आ गए और शिखा की माँ पर चिल्ला कर बोले- “क्या हुआ जो इसपर नाराज हो रही हो तुम?
क्या किया है इसने?”
“यह पूछो कि क्या नहीं किया! दो महीने से अंग्रेजी की कोचिंग ले रही है,पर कोई बदलाव हो पाया है क्या?”
” पैसा व्यर्थ जा रहा है! कितनी बार समझाया है कि घर में भी अंग्रेजी में बोलो, प्रैक्टिस हो जायेगी। वहाँ विदेश में जाओगी तो दिक्कत नहीं होगी,पर नहीं …इसको तो गँवार रहने का तमगा लेना है बस! हमारे स्टेटस का भी ख्याल ही नहीं है !
आज तो हद ही कर दिया इसने! वर्मा जी के घर पूजा में गयी थी, मैंने इशारा किया था कि मुँह खोलना तो इंग्लिश में ही…. आदत से लाचार है सबके बीच में ‘माँ…माँ’ करते आ गयी वहाँ पर!”
“तो क्या कहती तुम्हें,माँ हो तो माँ ही कहेगी ना…!
“क्यूँ ‘मौम’ नहीं कह सकती थी! देखना विदेश में जाके नाक कटवा देगी!”
“अच्छा, तुम्हें अपनी बेटी की नहीं, नाक की चिंता ज्यादा है, है ना?
“और नहीं तो क्या!”
“दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा! जब जरूरत पड़ेगी तो बोल लेगी वहाँ। अपने घर को विदेश बनाने की आवश्यकता नहीं है, समझी!
खबरदार जो आइंदा से इसे कुछ बोला तो, हम अपनी बेटी को अपने संस्कार और संस्कृति के साथ भेजेंगे।
एक बात और बताओ, ‘विदेशी जब यहां आए थे तो क्या उन्होंने आने से पहले वहाँ हिन्दी की कोचिंग ली थी क्या!!”
शिखा पापा से लिपट गई। उसे समझाते हुए उन्होंने कहा- “बेटा बिल्कुल भी चिंतित नहीं होना। तुम्हारी माँ के जैसे ही कुछ लोगों की वजह से हमारी “मातृभाषा” आज भी सिसक रही है।
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा