मिसमैच जोड़ी…. – विनोद सिन्हा “सुदामा”

खुद को आईने में देख….आराध्या का मन दुखित हो रहा था..चेहरे पर रह रह कर कई दर्द आ और जा रहें थे..उसके चेहरे उभर आए कट मार्क्स के निशान उसके सीने को छलनी कर रहे थे…..असीम वेदना से तड़पती आराध्या खुद से नज़रे भी नहीं मिला पा रही थी…

कितना गुमान था उसे खुद के सुंदर होने पर…हर समय इठलाती..निहारती रहती थी खुद को..मानों उससे सुंदर दुनिया में कोई कही नहीं…

लेकिन वक़्त ने ऐसा जख्म दिया कि उसकी सारी सुंदरता उसके चेहरे पर उभर आए कट मार्क्स ने खत्म  कर दी…यहाँ तक अपनी सुंदरता को ले कितने लड़के कितने शादी के रिश्ते को मना कर चुकी थी…

लेकिन उस हादसे के बाद वह समझ गई थी कि चाहा-अनचाहा, जो भी है, यही एक रिश्ता उसके पास बचा है….और यही उसकी किस्मत भी..

आशीष…जो आज़ उसका पति है…कभी उसके रंग को लेकर उससे शादी करने को मना कर दिया था उसने…

पर कहते हैं विधाता ने जिस किसी की भी जोड़ी किसी के साथ जोड़ रखी है तो..किसी भी हाल में एक दूसरे से मिलन होना निश्चित है..


हाँ यह अलग बात है कि आप अपने जीवन में हर समय एक प्रकार की पूर्णता या आदर्श स्थिति की तलाश में रहते हैं..उस आदर्श स्थिति की छवि आप खुद गढ़ते हैं..आपकी अपनी जिंदगी आपके अपने जीवन साथी का मन में एक आदर्श चित्र बनता रहता है और यदि आपको प्राप्त वस्तु या स्थिति उस तस्वीर से मेल नहीं खाती तो आप निराश हो जाते है…

आरध्या भी इस समय इसी भँवर में गोते खा रही थी, वह खुद अपने सपनों के अधूरेपन की कसक खुद के मन में लिए तड़प रही थी..

उसके आँखों के सामने वो सारे मंजर दृष्टिगत हो गए..

कैसे आशीष ने उसकी जान बचाई थी …और किन हालात में उससे उसे शादी करनी पड़ी थी…

उस दिन आराध्या ने अपने पिता….सिन्हा जी के घर आते ही..अपनी शादी को ले अपना दो टूक फैसला सुना दिया…..

पापा….मुझे यह शादी नहीं करनी….लड़का कहीं से मेरे मैच का नहीं…और न ही मेरे स्टैंडर्ड का है…

स्टैंडर्ड….?? .मिसमैच..???

यह लगाकर सातवां रिश्ता था जिसे आराध्या ने मना कर दिया था…

आखिर क्या खराबी है लड़के में

अच्छा भला तो है….शिक्षक की नौकरी है..अपना कमाता है अपना खाता है…सर पे कोई जिम्मेदारी भी नहीं… एक बहन थी जिसकी पीछले साल ही शादी कर दी उसने…

चार कमरों का घर है..

घर में बस बूढ़े माँ बाप हैं…

रंग देखा उसका….

बिल्कुल…भद्दा साँवलिया…

पर नैन नक्श तो सुंदर हैं..

फिर रंग का क्या….

कहाँ मिलता है..इतना सीधा सादा रिश्ता..

मैं नहीं जानती…

मैं यह शादी नहीं करूँगी…

मेरे फेयर कॉम्प्लेक्स से उसका कोई मैच नहीं…

जैसे कौए की चोंच में अनारकली..


पर बेटा सभी लड़के या लड़कियां गोरे या गोरी तो नहीं होते…

कुछ काले कुछ साँवले भी होते हैं…

होते हैं..पर पापा काली लड़की गोरा लड़का या गोरी लड़की और काले लड़के की क्या कभी जोड़ी जमती है ? नहीं न..

यह जानते हुए कि यह एक बेमेल रिश्ता होगा,

आप क्यूँ बाँधना चाहते मुझे…काले लड़के संग..

दुनिया में गोरे लड़कों की कमी है क्या..

आराध्या पिता से बहस करते हुए बोली

पर कई रिश्ते तो तू पहले ही मना कर चुकी…है लड़का गोरा हो त़ो कहीं सास बूढी है..तो कहीं सास सही तो घर छोटा..है..

आखिर किसी भी चीज की एक सीमा होती है..

और सुन…मेरी इतनी हैसियत भी नहीं कि मैं..तुम्हारे लिए तुम्हारे मनमुताबिक ऊँचा घर और ऊँची कमाई वाले लड़के ढूँढूँ…

दुनिया मे ऐसी कितनी शादियाँ हुई हैं जो रंग रूप में एक दूसरे से उलट हैं….

फिर अपनी उम्र भी तो देख…ज्यादा उम्र में कोई शादी भी नहीं करेगा तुझसे…

मेरी बात मान इस रिश्ते से मना मत कर…

लड़का अच्छा है..उसका दिल बहुत अच्छा है और वह तुम्हें हर हाल खुश रखेगा …और यही सबसे अहम चीज है..


मैं सबकुछ तय कर आया हूँ…..उनके पुरोहित कह रहे थे आने वाले पूर्णमासी का दिन बड़ा शुभ है..अच्छी सी मुहर्त में दोनों की चप मंगनी पट व्याह कर देते हैं….

नहीं… बिल्कुल नहीं…

मैं हमेशा उसके साथ बाहर जाने में  हीनभावना महसूस करूँगी….

कैसी हीनभावना और क्यूँ महसूस करनी

कोई राजे रजवाड़े का खानदान तो है नहीं हमारा..

आराध्या के पिता ने उसे आईना दिखाते.हुए कहा….

पहले एक बार मिल ले लड़के से..आपस में बातें कर ले..फिर तुम्हें जो अच्छा लगे करना…

मेरी मजबूरी समझ..मेरी बूढी हड्डियों में जान नहीं रही अब…मैं ज्यादा भाग नहीं सकता..ईश्वर न करे कल न रहूँ…

कहकर फफक फफक कर रोने लगे…

लेकिन आरध्या पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा…

वह जिद्द पर अड़ी रही…

आरध्या की माँ ने भी उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ..

कुँवारी रहूँगी …पर ऐसे वैसे से शादी नहीं करूँगी…जान लो..आप सब

कहकर स्कूटी की चाबी ले पाँव पटकती घर से बाहर चली गई..

माँ बाबूजी भी डर गए..


कहीं कुछ गलत न कर ले लड़की…

सिन्हा जी ने पढ़ सुन रखा था कि

माता पिता या परिजन अगर दबाव बना कर बच्चों की शादी कर देते हैं तो इस का अंजाम अच्छा नहीं होता. वे ज्यादा दिनों तक साथ नहीं निभा पाते. या तो उन के संबंधों में दरार आ जाती है या फिर बात तलाक पर जा कर ही खत्म होती है..

लेकिन सिन्हा जी को अपनी हैसियत भी देखनी थी और बेटी का अच्छे घर शादी भी करनी थी..

बड़ी मुश्किल से ढूँढा था उन्होंने आशीष को..

अच्छा घर..जिम्मेदारियों से मुक्त.. कमाता धमाता लड़का..

लेकिन बेटी थी कि उसे…ऋतिक रौशन चाहिए था….

अब कहाँ से ढूँढते वो…उसके लिए..ऐसा वर…चप्पलें तक तो घिंस गई थी उनकी…

और फिर….पोस्ट मास्टर की नौकरी…

क्या खाए क्या बचाए….

अभी वो बेटी को ले कर सोच ही रहे थे कि…

मोहल्ले का उनका एक पड़ोसी..दौड़ता दौड़ता उनके घर आया…और बताया कि आरध्या का एक्सीडेंट हो गया…उसकी स्कूटी किसी मोटर साईकिल वाले से टकड़ा गई थी…उसे काफी चोंटें आई हैं…मोटरसाइकिल वाहक उसे वहीं पास वाले अस्पताल में ले गया है….. जल्दी चलिए….

खबर सुन सिन्हा जी मानों सन्न पड़ गए..उनकी धड़कने इक पल को रुक सी गई..

काटो तो खून नहीं…

वह गिरते-गिरते बचें


किसी तरह उनकी पत्नी ने उन्हें संभाला…

मन स्थिर कर दोनों अस्पताल की ओर दौड़े…

आरध्या सकुशल हैं यह जानकर मन जरा हल्का हुआ लेकिन..आरध्या होश में थी लेकिन सोयी थी..उसका चेहरा पट्टियों से बंधा था..काफी चोटें आई थी उसे…

डाक्टर ने बताया कि हैल्मेट न पहनने के कारण माथे पर हल्की चोट है..दूसरी उसकी स्कूटी का शीशा टूटने और उसकी खरोंच से आरध्या के चेहरे पर कई गहरे जख्म आ गए हैं…

फिलहाल साफ सफाई कर बैंडेज कर दिया है…देखिए जख्म सूखने में कितने दिन लगते हैं…हो सकता है कुछ कट के दाग सदा के लिए रह जाए…

दर्द ज्यादा न हो इसलिए नींद का इंजेक्शन दे रखा है..थोड़ी देर में जाग जाएगी..

डाक्टर की बातें सुन बूढ़े माता पिता के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई….

तभी डाक्टर ने दूसरे बेड की ओर इशारा करते हुए उन दोनों से कहा…

शुक्रिया कहिए इन्हें जो आपकी बेटी को समय पर यहाँ ले आए..वरना खून बहुत बह जाता तो शायद दिक्कत आती…

इक पल पहले जहाँ आँखों में चिंता की लकीरें थी दूसरे ही पल डाक्टर के कहे सामने बेड पर पड़े शख्स का चेहरा देख सिन्हा जी की आँखें विसमय से फटी की फटी रह गई…

जिसकी मोटरसाइकिल से आराध्या की स्कूटी टक्कर खाई थी..वह और कोई नहीं आशीष था..जिससे वो आरध्या की शादी ठीक कर आए थे….

बेड पे लेटे लेटे आशीष भी आश्चर्य भरी नज़रो से सिन्हा जी को देख रहा था…उसे भी हल्की चोट आई थी जिसे डाक्टर ने फर्स्ट ऐड देकर सामने बेड पर कुछ देर आराम करने के लिए लिटा दिया था…

उसे स्थिति समझते देर नहीं लगी कि उसे टक्कर मारने वाली लड़की कोई और नहीं बल्कि सिन्हा जी की बेटी है….

लेटे लेटे ही उसने सिन्हा जी को प्रणाम करने की कोशिश की…

सिन्हा जी लड़खड़ाते कदमों से उसके पास आए..

सिन्हा जी के चेहरे पर उभर आए भावों को देखकर ही आशीष समझ गया था कि वे कितने चिंतित और दुखी थे…..


उसे कुछ कहते नहीं बन रहा था कि वो क्या कहे और कैसे ढाँढस दे उन्हें…

थोड़े समय बाद आराध्या को होश आ गया..वह जाग चुकी थी…उसकी माँ बेटी का सर अपनी गोद में लिए..रोए जा रही थी..

सिन्हा जी भी पास आकर बेटी का एक हाँथ अपने हाथों में ले…दूसरा हाँथ आशीर्वाद स्वरूप उसके सर पे फेरने लगे…..

आशीष सामने बेड पर पड़ा …सबकुछ देख रहा था..

सिन्हा जी ने आशीष की ओर इशारा करते हुए आराध्या को बताया कि यही लड़का है..जिसने उसकी जान बचाई..और इसकी ही मोटरसाईकिल को उसने टक्कर मारी थी..और आशीष ही वह लड़का है जिससे उसकी शादी तय कर आए थे..

आराध्या ने भीगी पलकों से आशीष की ओर देखा..मानों धन्यवाद ज्ञापन के साथ माफी माँगना चाह रही हो..

आशीष टगते टगते आराध्या की बेड तक आ गया

उसने आरध्या का हाथ अपने हाथों में ले कर उसे  संतावना देने लगा..

उसने आरध्या से कहा..

चिंता की कोई बात नहीं.. जख्म भरने में ज्यादा समय नहीं लगेंगे..बस हिम्मत रखो…

क्योंकि कहीं न कहीं थोड़ा दोषी मैं भी हूँ…न मेरी मोटरसाईकिल तुम्हारे सामने आती..न तुम्हारी स्कूटी की टक्कर होती और न तुम्हारा ये हाल होता…

हालांकि मैं तुमपर कोई दबाव नहीं बना रहा..ना ही कोई जबरदस्ती कर रहा…

पहले ठीक हो लो…अच्छी तरह सोच समझ लो फिर जवाब  देना..

इस पूर्णमासी न सही अगली पूर्णमासी सही

मैं तुमसे अब भी शादी करना चाहता हूँँ..

आशीष की बातें सुन बूढे माता पिता की आँखों से आँसू निकल पड़े…कितना जिंदादिल कितनी परिपक्वता से भरा इंसान था आशीष…

पलकें आराध्या की भी नम थी…लेकिन क्यूँ यह आराध्या ही जानती थी..

दूसरी तरफ़ सिन्हा जी मन ही मन खुश थे अपनी पसंद पर..उन्हें महसूस हो चला था कि उन्होंने बेटी के लिए आशीष को पसंद कर कोई गलत निर्णय नहीं लिया…

विनोद सिन्हा “सुदामा”

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