मेरी संजीवनी बूटी – लतिका श्रीवास्तव : Short Moral Stories in Hindi

 लक्ष्मण जी की मूर्च्छा को जीवन देने वाली संजीवनी बूटी थी मां ,और मैं जानता हूं प्रिया की संजीवनी बूटी मां आप सब हो….अविनाश अपनी सास यानी प्रिया की मां से  बहुत आत्मीयता से मोबाइल में बात कर रहा था…इतने में प्रिया ने पीछे से आकर हंसकर कहा अच्छा जी तो फिर तुम्हारे हनुमान बनने का समय निकट आ गया है,

संजीवनी बूटी लेने कब चल रहे हो “….अविनाश ने मोबाइल ऑफ करते हुए मुस्कुरा कर कहा बस आपके आदेश की देर है …..और दोनो हंस पड़े…..

दूसरे ही दिन प्रिया की मम्मी का फोन आ गया,” बेटा कब आ रही है,इस बार अविनाश जी को भी ज्यादा दिनों के लिए यहां रुकने बोलना,बहुत अच्छा लगता है तुम दोनों के साथ पापा को भी ।पीछे से भाई की आवाज आई “हां दीदी इस बार जीजाजी के लिए स्पेशल रबड़ी बनेगी घर में तेरी भाभी कुकिंग का विशेष कोर्स की है ,

जीजाजी से ज्यादा बढ़िया तारीफ कर कर के खाने वाला उसको कौन मिलेगा जीजाजी को बता देना जब तक सारे व्यंजनों का स्वाद वो नही ले लेंगे तब तक यहां से जाने की अनुमति नहीं मिलने वाली,….भाभी की भी स्नेह भरी झिड़की उसने सुन ली थी कि अरे हर समय मजाक बाजी !!

जीजाजी का लिहाज करिए बुरा ना मान जाए…..” मेरा भाई मुझसे पांच साल छोटा है,लेकिन हम दोनो के बीच उसके द्वारा मुझे  दीदी बोलने के अलावा बाकी सब बराबरी के भाई बहन जैसी बात चीत मजाक बाजीऔर लड़ाई झगड़ा होता है….सबके इकठ्ठा होने पर गीत संगीत  की महफिल आजकल तो बढ़िया केरियोके है तो  की जिम्मेदारी उसी की रहती  है मम्मी की गायकी आज भी बेहतरीन है …..                             



मेरा मन तो इन रस भरी बातों से ही भीग गया ..,मैने मां से दो दिनों बाद आने को कहा और साथ में फरमाइशी लिस्ट भी थमा दी खाने की नही !!वो तो मां बखूबी जानती है ,वापिस आते समय मां के हाथ के तरह तरह के अचार,अमरूद की जैली,स्वादिष्ट गरम मसाला,बुकनू और और बहुत कुछ…..।

और मैं खो गई अपनी मां के ..भाभी के हाथो के स्वादिष्ट व्यंजनों के स्वाद के साथ इतने दुलार से खिलाने वाले प्यार में …… भाभी बता रही थीं मां का दाहिना हाथ कुछ कमजोर हो गया है पिछले एक महीने से कोई भी सामान कभी भी उनके हाथ से गिर पड़ता है,

उस हाथ से किसी भी चीज को मजबूती से नहीं पकड़ पाती है मां, एक दिन किचेन में चाय छानते समय चाय का बर्तन छूट गया था पूरी गरम चाय उनके हाथ में गिर गई थी फफोले पड़ गए थे हाथ में तभी से भाभी उनको कोई काम नहीं करने देती हैं ,

डॉक्टर ने बताया है बढ़ती उम्र में हड्डियों की शिथिलता के कारण ऐसा होने लगता है दवाई और आराम ही इसका इलाज है ,मां ने ये सब मुझे बिल्कुल नही बताया बस इतना ही बता रही थीं अब ज्यादा काम नही हो पाता है उनसे भाभी ने ही सब कुछ संभाल लिया है ….

तब तो भाभी को और भी काम बढ़ जाएगा प्रिया थोड़ी चिंता में पड़ गई…..हम सबकी तो बाते ही नही खत्म होती है पापा तो एकदम नए उत्साह से अपने सभी पुराने अनुभव फिर फिर तरो ताजा करते रहते है

मुझे तो उठने ही नहीं देते  मैं भी पूरे उत्साह से उनकी बातें सुनकर उनका उत्साह अपने अंदर महसूस करती हूं….. .. भाभी मां पापा का ख्याल तो रखती ही हैं,भाई का भी बच्चो का भी और हम दोनो के जाने से विशेष कर दामाद जी अविनाश के आने से विशेष व्यवस्था,कुछ भी कहो अविनाश कितने ही आत्मीय हैं बेतकल्लुफ है पर मां लोगो के लिए उनके दामाद ,अभी भी दामाद जी ही  है ….।



   ….” प्रिया हो गई सारी तैयारी अविनाश ने आते पूछा जरा हम भी मुआयना कर लें  भाई कुछ छूट तो नही रहा है नही तो सारी गलती हमारी मानी जाएगी”  चिढ़ाते हुए अविनाश ने सूटकेस खोल कर देखना शुरू किया ,

एक पैकेट दिखा तो ये क्या है प्रिया पूछते हुए अविनाश ने उसे खोल ही दिया खोला तो उसमें प्रिया के हाथ के अचार और मसाले नजर आए अरे  तुम ये सब लेकर जा रही हो,!उल्टा हो रहा है इस बार क्यों???प्रिया ने कहा “हां अवि,सोच रही हूं  हमेशा की तरह मायके में टूरिस्ट की तरह  आराम और ऐश करने के बजाय इस बार मां पापा भाई भाभी सबको अपने हाथो की डिशेज खिलाऊं,

देखो अवि!!मां पापा तो बेटी का घर मान कर यहां हमारे घर हमारे साथ रहने या आने से रहे!!उन्हें भी तो पता चलना चाहिए ना  कि उनकी लाडली बिटिया पाक कला में कितनी दक्ष हो गई है फिर भाभी को भी थोड़ा आराम और मजा आना चाहिए ,हम लोगो के जाने से ..है कि नहीं…प्रिया ने अविनाश की तरफ देखा  तो


  

  ……अविनाश तुरंत उसके पास आ गया,”अरे वाह प्रिया तुमने तो मेरे दिल की बात कह दी कितनी समझदार और ख्याल करने वाली हो तुम सच में मुझे तुम्हारे ऊपर फख्र होता है _”सुनकर प्रिया  थोड़ा शरमा गई उसने कहा  अरे नही ये सब तुम्हारे  इसी विश्वास के कारण है,तुम हमेशा मेरा साथ देते हो मेरे मायके का सम्मान करते हो… “

“अरे ना ना, इसमें भी मेरा ही स्वार्थ हैअविनाश ने तुरंत उसकी बात काटते हुए कहा, पता नहीं मायके जाकर क्या संजीवनी बूटी पी आती हो तुम कि मुझको तो वही नई नवेली प्रिया फिर से मिल जाती है…..।  

चलो अब जल्दी करो संजीवनी बूटी लेने द्रोणगिरी जाना है !अब ये बंदा द्रोणगिरी तो यहां नही ला सकता पर तुम्हे जरूर वहां तक ले चलेगा….अविनाश ने सारा सामान कार में रखते हुए कहा….

सच में प्रिया सोच रही थी मायका ही वो द्रोणगिरी है जहां अपने जन्म से जिस संजीवनी वृक्ष की जड़ों से हम जुड़े है  बंधे हैं उनसे हर बार ,बार बार जुड़कर नई ताजगी, बेहिसाब ऊर्जा और वो बेमिसाल संजीवनी प्राप्त होती रहती है जो ज़िंदगी को हर बार एक नई स्फूर्ति दायक जिंदगी से मिलवाने के लिए अनिवार्य होती है।

सादर

लतिका श्रीवास्तव

#मायका

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