मेरी रगों में आपका खून है – डॉ. पारुल अग्रवाल

सिया की शादी को १२ साल का लंबा समय बीत गया था पर अभी तक उसके कान मां शब्द सुनने को तरस गए थे। इन बारह सालों के लंबे अंतराल में उसका एक एक दिन इस उम्मीद में बीता है कि कब काव्या उसे मां कह कर पुकारेगी। पर जिस काव्या को वो अपनी ममता के आंचल से संवारना चाहती थी आज वही जिंदगी और मौत से लड़ रही थी। 

उसका बहुत भयंकर एक्सीडेंट हुआ था।डॉक्टर ने आगे आने वाले 48 घंटे काफ़ी नाज़ुक बताए थे। जब से ये खबर सुनी थी तब से सिया,काव्याके कमरे के पास से एक क्षण के लिए भी नहीं हटी थी। आज उसकी आंखों के सामने वो सारे पल घूमने लगे जब काव्या उसकी दुनिया में आई थी। 

असल में सिया के माता-पिता एक रेल दुर्घटना में उसका साथ छोड़ गए थे तब सिया केवल 13 वर्ष की थी, उसके दोनों जुड़वा भाई-बहन 7 साल के थे। तब किसी तरह दादी ने उनको सहारा दिया था। जब तक दादी थी,तब तक तो फिर भी ठीक था पर दादी के जाने के बाद चाचा और चाची ने बहुत एहसान दिखाते हुए उन तीनों को अपने साथ रखा था। 

बदले में सिया बिना कुछ कहे चाची के साथ घर के सारे काम करती थी, पढ़ती भी थी और ट्यूशन भी करती थी। जिससे वो अपना और अपने भाई-बहन का कुछ खर्चा निकल सके। ऐसे ही समय बीत रहा था, सिया की उम्र शादी लायक हो गई थी। सिया देखने में बहुत प्यारी थी पर बिना मां-बाप की बेटी से कौन शादी करता, अगर कोई रिश्ता कभी आ भी जाता तो दहेज़ देने के चक्कर में चाचा-चाची ही माना कर देते।

पर कहते हैं ना कि कई बार भगवान और किस्मत के खेल अलग ही होते हैं,भविष्य में क्या होने वाला है,हम में से कोई नहीं जानता। ऐसे में सिया के लिए कहीं से सौरभ का रिश्ता आता है,जो उम्र में तो ज्यादा बड़ा नहीं है पर शादीशुदा है। उसकी पहली पत्नी कम उम्र में ही एक छोटी बच्ची को छोड़कर कैंसर जैसी बीमारी से ग्रसित होकर चल बसी। अब परिवार में केवल उसकी मां और 5 साल की बेटी हैं। 

मां की भी तबियत अक्सर खराब ही रहती है और सौरभ का कारोबार कई शहरों में फैला है जिससे उसका शहर से बाहर आना जाना लगा रहता है। ऐसे में सौरभ की माताजी की इच्छा है कि उसकी दूसरी शादी कर दी जाए जिससे बच्ची को एक मां का प्यार मिल सके। इसके बदले उनको सिर्फ ऐसी लड़की चाहिए जो चाहे गरीब घर ही क्यों न हो पर काव्या को अपने बच्चे की तरह रख सके और उसे मां का प्यार दे सके।



 बदले में वो उसके घर की सारी ज़िम्मेदारी उठाने को भी तैयार है क्योंकि रुपए पैसे की तो उनके पास कोई कमी नहीं है।

ऐसी बातें सुनकर सिया के चाचा-चाची के मन में भी थोड़ा लालच आ गया। उनको लगा इस तरह मुफ्त में ही सिया और उसके भाई-बहन से पीछा तो छूटेगा ही साथ-साथ उन लोगों को भी इस शादी से थोड़ा रुपया पैसा मिल जायेगा। सब सोचकर उन्होंने बिना सिया से पूछे रिश्ते के लिए हां कह दी।

 उधर जब सौरभ और उसकी माताजी को इस रिश्ते के बारे में बताया गया तो सौरभ ने सिया से एक बार अकेले में बात करने के लिए कहा। असल में सौरभ भी सिर्फ अपनी बेटी और मां की तबियत की खातिर दूसरी शादी के लिए तैयार हुआ था इसलिए वो सब निर्णय बहुत सोच समझ कर लेना चाहता था। सिया को तो इस रिश्ते के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी पर जिस दिन सौरभ को उससे मिलने आना था तब चाचा-चाची ने उसकी शादी सौरभ से करने का अपना निर्णय सुना दिया था जिसमें सिया को अपनी तरफ से कुछ भी कहने सुनने की इजाज़त नहीं थी।

सिया बहुत डरते हुए सौरभ के सामने आईं, सौरभ देखने में किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं था हालांकि वो पांच साल की बच्ची का पिता था पर उसके चेहरे पर उम्र का कोई प्रभाव नहीं था। सिया से बात करते हुए उसने स्पष्ट शब्दों में कहा कि उसके लिए उसकी बेटी और मां ही सब कुछ हैं वो दूसरी शादी भी उन लोगों के लिए ही कर रहा है और साथ साथ उसकी ये शर्त भी थी कि उसके साथ जिस भी लड़की की शादी अब होगी वो उसकी बेटी को ही अपनी संतान मानेगी और अपने खुद के बच्चे को जन्म नहीं देगी। 

बदले में उसको पूरा सम्मान और सुख मिलेगा जिसकी वो हकदार है। सिया ये सब सुनकर सकते में आ जाती है, खुद का बच्चा पैदा करना हर स्त्री की एक स्वाभाविक इच्छा होती है पर वो ये सब सोचना छोड़ कर अपने जुड़वा भाई बहन के भविष्य के विषय में सोचती है, जिसका सौरभ उसको पूरा आश्वासन देता है, इस तरह इन शर्तों पर ये शादी हो जाती है। 

सौरभ के घर आकर सिया सब संभाल लेती है, वो काव्या को भी दिल से अपनाती है पर काव्या उसको बिल्कुल पसंद नहीं करती, काव्या के नन्हे से मन पर दूसरे रिश्तेदार और यहां तक की काव्या के नाना-नानी सिया के खिलाफ ज़हर घोलते हैं क्योंकि कहीं ना कहीं उनको सौरभ के दूसरी शादी करने का निर्णय पसंद नहीं था।



हालांकि काव्या की दादी अपनी तरफ से काव्या के मन में सिया के लिए जगह बनाने की कोशिश करती पर उनकी खुद की ही तबियत ठीक नहीं रहती थी और तीन चार साल बाद वो भी स्वर्ग सिधार जाती है।

 अब तो  काव्या बात-बात पर सिया को अपमानित करती थी तब भी सिया उसको प्यार से समझाने की कोशिश करती। कई बार तो काव्या उसको घर के नौकरों के सामने भी बहुत बुरी तरह झिड़क देती। इस तरह से बारह साल से ज्यादा का समय बीत गया था पर काव्या ने आज तक सिया को मां नहीं कहा था।उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था सौरभ काम के सिलसिले में बाहर था, काव्या दोस्तों के साथ देर रात एक फार्म हाउस पर पार्टी में जा रही थी। सिया उसको जाने से मना करना चाहती थी तब काव्या उसको ये कहकर कि वो उसके पिता की दूसरी पत्नी तो हो सकती है पर मां नहीं और भी बहुत कुछ कहकर अपमानित करती है।

 उस दिन सिया का भी हाथ उठ जाता है, तब काव्या गुस्से में भरकर गाड़ी निकालकर चल देती है और थोड़ी दूरी पर ही उसका एक्सीडेंट हो जाता है। उसके सर में चोट लगने से और बहुत ज्यादा खून बहने से वो बेहोश हो जाती है।

जब सिया को खबर मिलती है तब वो दौड़ी-दौड़ी हॉस्पिटल जाती है,काव्या की हालत ठीक नहीं होती उसका काफी खून बह चुका होता है,अच्छी बात ये होती है कि सिया और काव्या का ब्लड ग्रुप एक ही होता है, इसलिए सिया का खून भी काव्या को चढ़ाया जाता है। इधर सिया मन ही मन सोचती है बस किसी तरह काव्या ठीक हो जाए फिर वो कभी उसकी जिंदगी में दखल नहीं देगी। वैसे भी अगर आज वो काव्या को नहीं रोकती तो शायद ये हादसा नहीं होता। 



इन्हीं सब कश्मकश में 48 घंटे पूरे हो जाते हैं,डॉक्टर आते हैं और काव्या को खतरे से बाहर बताते हैं। इधर सौरभ भी पहुंच जाता है और सिया उसको पूरी बात बताते हुए माफी मांगते हुए कहती है कि वो कोशिश करने पर भी काव्या की मां नहीं बन पाई। अब तक उसे उम्मीद थी कि काव्या कभी तो उसको मां कहकर पुकारेगी पर शायद इस जन्म में उसकी ये इच्छा पूरी नहीं होगी। वो रोते रोते ये सब कह रही थी इतने में काव्या के मां- मां कहकर पुकारने की कमज़ोर सी आवाज़ उसके कानों में पड़ती है। वो दौड़कर काव्या के पास जाती है, देखती है काव्या उसको ही बुला रही थी।

 इस तरह उसकी टूटती उम्मीद आज पूरी हो जाती है। बाद में काव्या जब ठीक हो कर घर आती है तो उससे अपने किए के लिए माफ़ी तो मांगती ही है और साथ साथ हंसते हुए ये भी कहती है कि मां हिन्दी फिल्मों का ये डायलॉग अब तो मेरी रगों में आपका ही खून बहता है बिल्कुल फिट बैठता है। उसकी इस बात पर सिया भी तेरा मुझ से है पहले का नाता कोई वाला गाना गाकर उसको सुनाती।

 उन दोनों की ऐसी बातें सुनकर सौरभ भी मुस्कराए बिना नहीं रह पाता। सिया को भी लगता है कि बहुत संघर्ष के बाद ही सही पर उसको अपना सुखी परिवार मिल गया जिसकी वो हमेशा उम्मीद करती थी।

दोस्तों,ये उम्मीद ही तो है जो हमारे जीने की आस बनती है। तभी तो कहा भी गया है कि उम्मीद पर दुनिया कायम है। आप लोगों को मेरी कहानी कैसी लगी,अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजियेगा। 

#उम्मीद

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

 

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