उम्मीद की एक नई किरण”दक्षा”  – गीता वाधवानी

माता-पिता का लाडला, इकलौता बेटा दक्ष पढ़ाई में बहुत ही होशियार था। 12वीं कक्षा तक 98% तक नंबर लाता रहा और उसके बाद सीए पूरी करने के बाद आज कनाडा जा रहा था। वहां पर आगे की पढ़ाई करने के बाद वहीं के एक प्रसिद्ध बैंक में उसकी जॉब लग जाएगी ऐसा उसने अपने माता-पिता को बताया। 

वहां 4 साल तक खूब पढ़ाई और खुद अपना खर्च चलाने के लिए उसकी मेहनत रंग लाई और वहां के एक प्रसिद्ध बैंक में उसे बहुत बढ़िया नौकरी मिल गई। वह अपने माता पिता को रुपए भेजने लगा। अब माता-पिता दक्ष के विवाह के बारे में सोच रहे थे। 

थोड़े दिनों बाद दक्ष भारत आया और अपने माता-पिता को अपने साथ चलकर कुछ दिन वहां रहने के लिए कहने लगा। 

     माता-पिता ने पहले तो मना किया और फिर बेटे के प्यार और कुछ दिन उसकी देखभाल के मोह के कारण मान गए। तीनों खुशी-खुशी कनाडा पहुंच गए। दक्ष को अब बहुत अच्छा लग रहा था। 

1 दिन सुबह बैंक के लिए निकलते समय उसे बहुत ही थकान और सिर दर्द महसूस हो रहा था। उसने सोचा शायद काम के बोझ के कारण ऐसा हो रहा है। थोड़े दिनों तक उसका यही हाल रहा। फिर एक दिन वह चक्कर आने के कारण गिर पड़ा। तब उसने अपनी तबीयत के बारे में गंभीरता से सोचा और अपनी पूरी जांच करवाई। 

जांच में उसे पता लगा कि उसे ब्रेन ट्यूमर है। डॉक्टर ने कहा-“आपने आने में टाइम लगा दिया इसीलिए आपके ठीक होने का चांस केवल 20% है।” 

दक्ष ने तुरंत दवाइयां शुरू कर दी थी। माता पिता यह सुनकर सदमे में थे और उसके सामने सदा हिम्मत दिखाते थे और उसे भी बहुत सहारा देते थे। सदा उसे खुश रखने का प्रयास करते थे और खुद भी हंसने का प्रयास करते थे। 

कहीं ना कहीं दक्ष को यह एहसस हो गया था कि वह अब बचेगा नहीं। इसीलिए उसने डॉक्टर से बात करके अपना वीर्य संरक्षित करवा दिया था और अपनी मृत्यु के बाद उसके नमूने के इस्तेमाल के लिए अपनी मां को नामित किया था। उसे पता था कि उसके जाने के बाद उसके माता-पिता बिल्कुल टूट जाएंगे। और ऐसे में उसका यह कदम उनके जीवन में “उम्मीद की एक नई किरण” को जन्म देगा। 

और फिर 1 दिन अचानक दक्ष चला गया और डॉक्टर ने उसकी मां को पूरी बात बताई। 

माता पिता ने अपने बेटे के सीमन को आने के लिए सारी औपचारिकताएं पूरी की और फिर भारत आकर आईवीएफ के द्वारा गैर पारिवारिक दाता के अंडाणु से उसका मेल करा कर सरोगेट मदर द्वारा संतान प्राप्ति का प्रयास किया। 

एक टूटी हुई मां और दुखी पिता खुशियां चाहते थे ।अपने बेटे को फिर से पाना चाहते थे। निश्चित समय पर उनकी गोद में दक्ष की संतान थी। 

एक प्यारी सी उम्मीद की नई किरण”दक्षा”  

स्वरचित गीता वाधवानी 

(इस कहानी का मृत या जीवित किसी भी व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है, यह पूर्णतया काल्पनिक है)

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