मायका अब भी है  – गीता वाधवानी

 पिछले साल जब ज्योति की मां का देहांत हुआ था, तब उसे लगने लगा था कि अब मेरा मायका नहीं है। मां के बिना कैसा मायका? उसकी बड़ी भाभी पदमा उसके मायके आने पर सीधे मुंह बात तक नहीं करती थी, तो फिर छुट्टियों में उनके साथ कैसा रहना और समय बिताना। छोटे भाई मनोज की शादी अभी हुई नहीं थी । 

       ज्योति, मनोज को छोटा भाई कम, बेटा ज्यादा मानती थी। उसी से मिलने की चाह में कभी-कभी मायके आ जाती थी और मनोज भी कभी उससे मिलने उसके ससुराल चला जाता था। 

       बड़ी भाभी पदमा मनोज का रिश्ता करवाने में कोई रुचि नहीं दिखा रही थी। ज्योति ही मनोज के लिए एक अच्छी लड़की ढूंढने की कोशिश कर रही थी। 

       आखिर एक दिन उसकी खोज समाप्त हुई और उसे छवि नाम की एक सुंदर, पढ़ी-लिखी लड़की मनोज के लिए पसंद आ गई। मनोज ने भी हामी भर दी।      विवाह की बात सुनते ही पदमा और उसके पति ने साफ-साफ कह दिया कि शादी हमारे घर में नहीं हो सकती। पूरा घर फैल जाएगा, इतना काम हमारे बस की बात नहीं है। ज्योति को पता था कि दरअसल काम का तो बहाना है। असलियत में यह लोग एक पैसा भी खर्च करना नहीं चाहते हैं। उन लोगों ने ज्योति से कहा-“शादी के दिन से ही मनोज अपना अलग इंतजाम कर ले। ज्योति को उन लोगों पर बहुत गुस्सा आ रहा था, परंतु उसने मौके की नजाकत को देखते हुए कुछ नहीं कहा। 

       कुछ दिन पहले एक किराए के घर का इंतजाम किया गया और वहीं पर मनोज का विवाह हुआ। 

        ज्योति ने अपनी भाभी छवि का खुले दिल से स्वागत किया और घर के बारे में सब कुछ समझाने के बाद अपनी ससुराल वापस लौट गई। 

        छवि बहुत समझदार और संस्कारी लड़की थी। सबसे स्नेह करना और सब का स्वागत करना बहुत अच्छे से जानती थी। वह बहुत ही मिलनसार लड़की थी। वह अपनी ननद ज्योति को फोन करती रहती थी और उन्हें अपने यहां आने को कहती थी। 



       ज्योति के मन में पदमा भाभी के रूखे व्यवहार से निराशा आ चुकी थी। उसे लगता था कि मां के जाने के बाद अब मेरा मायका कहीं भी नहीं है। 

       फिर भी वह छवि के बार-बार आग्रह करने के कारण और अपने दोनों बच्चों के कहने पर छुट्टियों में मनोज और छवि से मिलने आई। 

      छवि उनको देखते ही बहुत खुश हो गए और उनका मधुर और सुंदर तरीके से स्वागत किया। छवि ने दोनों बच्चों की पसंद के छोले भटूरे पहले ही बना दिए थे और ज्योति की पसंद के दही भल्ले भी बनाए थे। बच्चे अपने मामी के साथ हिल मिल गए थे और बहुत खुश थे। शाम को सब मिलकर मूवी देखने गए और वापसी में बच्चों ने आइसक्रीम भी खाई। 

       घर आकर सब ने मिलकर अंताक्षरी, लूडो, कैरम खेला और पुराने बातें, पुराने मजेदार किस्से एक दूसरे को सुनाए। हंसते खेलते चार-पांच दिन कैसे बीत गए ,किसी को पता भी न चला। 



     बच्चे तो और भी रहना चाहते थे।छवि ने ज्योति से कहा-“दीदी, कुछ दिन और रहिए और जीजा जी को भी बुला लेते हैं।” 

    लेकिन ज्योति ने कहा-“मुझे वापस जाना ही होगा क्योंकि इनको ऑफिस के टूर के लिए निकलना है।” 

      ज्योति जब अपने ससुराल के लिए निकलने लगी तो छवि ने उसे एक  पैकेट पकड़ा दिया या और बोली-“दीदी, अभी खोल कर देख लीजिए और बताइए कि आपको पसंद है या नहीं, अगर बदलकर लाना है तो भी बता दीजिए।” 

       ज्योति ने पैकेट खोला। उसमें से ज्योति के लिए एक बहुत ही सुंदर गुलाबी रंग का सूट, उसके पति की शर्ट और दोनों बच्चों के लिए टी-शर्ट और जींस निकली। बच्चे अपने सुंदर कपड़े पाकर बहुत खुश थे और ज्योति को अपनी मां की याद आ गई जो कि हर बार इसी तरह उसकी पसंद का कोई न कोई सूट लाकर उसे देती थी। 

     अपनी छोटी भाभी छवि का प्यार देखकर ज्योति की आंखों में खुशी के आंसू भर आए। वह ज्योति को भरे मन से गले लगाते हुए सोच रही थी कि”सब एक जैसे नहीं होते,”मेरा मायका अब भी है।” 

गीता वाधवानी दिल्ली

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