#मायका
मैं रश्मि गुवाहाटी की रहने वाली एक साधारण सी लड़की बचपन से चंचल और हंसमुख स्वभाव की लड़की जो अब बिल्कुल संजीदा और शांत रह रही थी और दिल्ली में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी कर रही थी कॉलेज की छुट्टियां शुरू हो चुकी थी और हॉस्टल की भी सभी लड़कियां अपने अपने घर जा रही थी पर मेरा बिल्कुल भी मन नहीं था लेकिन मां के बार-बार बुलाने की वजह से मुझे घर जाना पड़ रहा था,
मैंने अपना सामान पैक किया और रेलवे स्टेशन जा पहुंची, वहां जाकर गुवाहाटी की टिकट ली तो पता चला कि रेल एक घंटा लेट है, तो मैं वेटिंग रूम में जाकर बैठ गई वहां पर और भी लोग थे बहुत शोर हो रहा था,लेकिन उस शोर के बीच भी मैं खुद को अकेला महसूस कर रही थी याद कर रही थी अपने उन दिनों को जब मैं गुवाहाटी में ही co -ed स्कूल में पढ़ा करती थी वहां मेरे बहुत सारे दोस्त थे उनमें से एक खास दोस्त था जिसका नाम था अनवर वह मेरा सबसे अच्छा दोस्त या मेरा हमराज जो भी था वही था मैं सबसे ज्यादा समय उसी के साथ बिताती थी
वह मेरा सबसे ज्यादा अच्छा दोस्त था जो मुझे हर काम में मदद करता था मेरी हर गलती को अपने ऊपर ले लेता और स्कूल में मेरी जगह खुद सजा मे खड़ा हो जाता लेकिन जब हम स्कूल से इंटर पास कर चुके थे तब मुझे आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली जाना था पर उसे वहीं रहकर अपनी आगे की पढ़ाई शुरू करनी थी जब मैंने उसे बताया कि मैं दिल्ली जा रही हूं तो वो चुप हो गया और उसकी आंखें नम हो गई उसने कहा मैं दिल्ली ना जाऊं वहीं रहकर अपनी पढ़ाई पूरी करू पर मुझे तो जाना था
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मैंने उसको बहुत समझाया तो खामोशी से मेरी बात सुनता रहा और कुछ ना बोला बस सिर्फ एक बात बोली “मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा रश्मि आई लव यू” मैंने भी उसे गले से लगा लिया और आई लव यू टू बोल कर उसे लिपट गई बस वही उससे मेरी आखिरी मुलाकात थी जब मैं 2 साल बाद दिल्ली से घर आई तो मैंने अनवर का रास्ता देख रही थी कि वह मुझे मिलने तोड़ता हुआ आएगा और गले लगा कर फिर से आई लव यू आई मिस यू बोलेगा पर वह नहीं आया सुबह से शाम हो चुकी थी मैं इंतजार करके थक चुकी थी फिर हार कर मैंने मां से पूछा कि आजकल अनवर कहां है क्या कर रहा है वह ,मां अनवर का नाम सुनकर सहमी सी खड़ी हो गई मानो जैसे मैंने कोई ऐसा सवाल कर लिया हो जिसका जवाब देना बहुत मुश्किल हो, मैंने मां से फिर से पूछा मां रुकते हुए बोली अनवर तो अब नहीं है ….
नहीं है… मैं चौक कर बोली क्या मतलब मां ने बताया कि मेरे जाने के बाद अनवर चुप चुप सा रहने लगा था किसी से भी बात नहीं करता था अकेले कमरे में अपने को घंटों तक बंद रखता था ना खाना खाता था और ना ही किसी से बात करता था और उसने अपनी पढ़ाई भी छोड़ दी थी बस एक दिन सुबह से शाम हो चुकी थी वह अपने कमरे से बाहर नहीं आया तो घर वालों ने दरवाजा खुलवाने की बहुत कोशिश की पर दरवाजा अंदर से बंद था..….वह जा चुका था
इस दुनिया को छोड़ कर हमेशा के लिए ,फिर दरवाजा तोड़ दिया गया तो अंदर देखा कि उसके हाथ में एक शीशी है में जिसमें पोइजन लिखा था और एक नोट भी” “अब और इंतजार” नहीं बस आज तक समझ नहीं आया किसी को कि वह इंतजार किसका था ! मां बोली, यह सब सुनकर मेरे तो पैरों तले जमीन खिसक गई हो मानो ऐसा लगा कि मैं अपराध के गड्ढे में फंसी जा रही हूं एक बोझ सा था मन पर उसके इस तरह चले जाने का मन कर रहा था कि मां को सब कुछ बता दूं कि वह इंतजार किसी और का नहीं मेरा था मैंने उससे वादा किया था वापस आने का पर अब बहुत देर हो चुकी थी सब कुछ हाथ से निकल चुका था सब दूर जा चुका था मुझसे बहुत दूर…. मैं मां से कुछ ना कह पाई और वापस दिल्ली आ गई आज फिर मां से मिलने जाना है लेकिन मैं वहां नहीं जाना चाहती जहां मैंने अपने अजीज दोस्त को खोया था अजीज दोस्त….. बस इतनी सी थी कहानी।