• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

मसाला दोसा: – मुकेश कुमार (अनजान लेखक)

वो ठेले वाला भी ना अजीब है, सुबह-सुबह तो इडली बेचने साईकिल से आता है और शाम होते ही मोहल्ले में ठेला लगा कर इडली-दोसा दोनों बेचता है। पता नहीं ऐसा क्यों करता है, फ़ालतू में झगड़ा करवा दिया उसने।

भुनभुनाते हुए योगेश सीढ़ियाँ चढ़ने लगा, शायद छत पर ही अब मन का चिड़चिड़ापन ख़त्म होगा।

सुबह जब पल्लवी ने इडली के लिए बोला तो मैंने ही मना कर दिया लेकिन शाम को मैं ही मसाला दोसा ले आया।

पल्लवी ने खा तो लिया लेकिन ताना भी दे ही दिया:

“अच्छा, सुबह इडली के लिए पुछा तो ज्ञान देने लगे थे”, “बोल रहे थे, अभी कोरोना के समय बाहर का नहीं खाना है”, “अब कहाँ गया कोरोना?”

बात तो उसकी भी सही थी, लेकिन जब दोसा वाला खिड़की के सामने दोसा बनाने लगा तो उसकी खुशबु से अपने आप ही खिंचा चला गया. वैसे वो ठेले वाला साफ-सफ़ाई का बहुत ध्यान दे रहा था, चेहरे पर मास्क लगा रखा था, सैनीटाइजर का बोतल भी रखा था, किसी से पैसे लेने-देने के बाद हाथ में सैनीटाइजर लगा रहा था।

उसको ऐसा करते देख मन में तसल्ली हुई तब ही बाहर निकला था।

वैसे तो ख़ास इच्छा नहीं थी दोसा लेने की लेकिन पड़ोस की रंजना भाभी अपने बच्चे के साथ थी और दोसा बनने का इंतज़ार कर रही थी इसलिए मैं भी चला गया।

जब तक वो दोसा बनाता रहा तब तक हमलोग बात करते रहे।


रंजना भाभी का दोसा पैक हो गया था लेकिन फिर भी वो मुझसे बात करती रही। जब मेरा दोसा भी मिल गया तब ही वो गई।

शायद यही बात पल्लवी को अच्छी नहीं लगी, मैंने गौर किया था, खिड़की से वो भी कभी-कभी हमलोग को देख रही थी।

वैसे रंजना भाभी दिल की बुरी नहीं है, लेकिन मोहल्ले में कुछ मर्दों और लड़कों से कई बार झगड़ा कर चुकी है, खुब खरी-खोटी सुनाया था उसने, कई बार तो मैंने ही बीच-बचाव किया था।

तब से मोहल्ले की कुछ औरतें रंजना भाभी को नापसंद करने लगीं थी। उनमें से एक पल्लवी भी है। सब औरतों का मानना है की रंजना ही जवान लोगों को बढ़ावा देती है… क्या जरुरत है इस उम्र में जीन्स पहन कर कूल्हों को मटका कर चलने की? पैंतीस से चालीस साल की हो गई, बच्चे भी बड़े हो गए हैं लेकिन रहने का लसीका नहीं आया। साड़ी या सूट पहन कर भी तो दफ़्तर जा सकती है, लेकिन नहीं, इस उम्र में भी फैसन दिखाना है. चार पैसे क्या कमाती है, फूटानी झाड़ते रहती है।

कोई कुछ भी बोले, रंजना भाभी है तो खूबसूरत, उपर से जब कसे हुए कपड़े पहन कर निकलती है तो कॉलेज जाने वाली चौबीस-पच्चीस साल की लड़की जैसा दिखती है।

लेकिन क्या करे उनकी भी मजबूरी है. मैकेनिकल इंजीनियर हैं वो, दिन भर मशीनों के इर्द-गिर्द चक्कर लगाना पड़ता है। सूट या साड़ी पहन कर नहीं जा सकती, नहीं तो बड़ी-बड़ी मशीनों में अगर दुपट्टा या साड़ी फँस गया तो जान लेकर ही मानेगा।

उस दिन जब मोहल्ले में उस अधेड़ आदमी को डाँट रही थी तब मैंने ही शाँत करा कर घर तक छोड़ा था। घर में उसके पति भी थे, उन्होंने चाय पीने के लिए रोक लिया, तब उस दिन पुरी बात बताई थी, जीन्स और टॉप के साथ जैकेट पहना उनकी मजबूरी है।


एक बार तो मैंने कहा भी था उनके पती से:

“भैया, भाभी को मैन रोड से पिकअप करने क्यों नहीं जाते आप?”

“इनको मोहल्ले के बदमाशों से उलझना पड़ता है”

उन्होंने हँसते हुए कहा था:

“योगेश, तुम्हें पता नहीं है, लेकिन रंजना कॉलेज में बॉक्सिंग चैंपियन थी”

“सबको अकेले ही सबक़ सिखा देगी, लेकिन मोहल्ले का लिहाज़ करती है”

पल्लवी को भी कई बार अपने घर के फंक्शंस पर बुला चूकी है, लेकिन पल्लवी को हर बार रंजना भाभी ही मतवाली लगती है।

एक दिन रंजना भाभी को पुरे परिवार सहित दावत पर बुलाना होगा, तब शायद पल्लवी से बात कर के इन दोनों के मन का वहम मिट पाए।

वैसे रंजना भाभी पल्लवी के बारे में कोई बूरा विचार नहीं रखती, वो तो बोलती है “बेचारी पढ़ी-लिखी हो कर भी मोहल्ले की औरतों के बात में आ जाती है”

छत के दो-चार चक्कर लगाया ही था की सामने वाले छत पर रंजना भाभी भैया और बच्चों के साथ आ गई, छुट्टी का दिन होने के वजह से बच्चों संग छत पर खेलने आ जाते हैं वो लोग।

पिछे से पल्लवी भी आ चुकी थी, आते ही उसने तीक्ष्ण बान मार दिए:

“उसको दोसा लेते समय देख कर मन नहीं भरा जो छत पर देखने चले आए?”

हे भगवान, तुम्हारे मन में बहुत उल-जुलूल बातें चलती है रंजना भाभी को देख कर “रुको, एक दिन उनको बुलाऊँगा, तब सब ग़लतफ़हमी दूर हो जाएगी तुम्हारी”


जाओ जी, रहने दो, वो तो है ही मतवाली, बहुत मन बढ़ा हुआ है उसका…

अरे, नहीं, दिल की बहुत साफ़ है, देखा ना, कैसे आराम से बात करती है मुझसे? मैं भी तो इसी मोहल्ले का हूँ, आज तक कभी ऊँचे शब्दों में बात नहीं की… वो तो मोहल्ले के लोगों ने अपनी गलती छुपाने के लिए उसको बुरा बना दिया है।

वो बात तो है, इस मोहल्ले के कुछ लड़के मुझे भी घुरते रहते हैं जब सब्ज़ी ले कर आती हूँ तो।

समझो, तुम तो जीन्स भी नहीं पहनती, सूट पहन कर जाती हो।

अगर कभी कोई बदतमीज़ी करे तो एक बार समझा देना, दुसरी बार धर देना एक ज़ोर का तमाचा, जो होगा वो मैं बाद में देख लूँगा।

अचानक ध्यान गया तो देखा रंजना भाभी हाथों से इशारा कर के पल्लवी को बता रही थी की बहुत बढ़िया लग रही हो इस सूट में… पल्लवी मुस्कुराने लगी और धीरे से बोली “अजी, इस दिवाली भाभी को परिवार सहित खाने पर बुलाया जाय क्या?”

मुकेश कुमार (अनजान लेखक)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!