
स्नेह की गरिमा – रीमा महेंद्र ठाकुर
- Betiyan Team
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- on Jul 25, 2022
गरिमा सुनो “
सोनम ने पीछे से आवाज, दी”
गरिमा ने पलट कर देखा!
सोनम के पैर की एक चप्पल टूट गयी थी!
वो लगडा कर चल रही थी!
उसे शायद ठोकर लगी थी” उसका अंगूठा फट गया था!
अरे कैसे लग गयी ” गरिमा दौडकर उसके पास आयी!
गरिमा ने अपने बैग से रूमाल निकाला, और सोनम के अंगूठे को कसकर बांध दिया!
फिर दोनों का बेग पीठ पर लाद, सोनम को सहारा देती हुई सायकल तक ले आयी”
सोनम को दर्द से आंसू छलछला आये “
जो गरिमा से न देखे जा रहे थे!
दोनों की बचपन की दोस्ती थी ” लगाव भी गहरा था!
सोनम अपने मामा के पास रहती थी!
उसके मामा डॉक्टर थें!
पर मामी उसे बोझ समझती थी!
गरिमा ने “हाथ से सहारा देकर सोनम को घर के अंदर पहुंचा दिया, सोनम ने उम्मीद भरी नजर से उसे देखा “
गरिमा न चाहते हुए भी घर से बाहर आ गयी!
रातभर सोनम के लिए चिंता लगी रही!
अगली सुबह मां उसे जोर जोर से हिला रही थी!
गरिमा उठ जा बेटा “
माँ आज संडे है सोने दो ” कल रात देर से नीदं आयी “
कम्बल को मुहं पर लपेटते हुए बोली गरिमा!
सोनम की मौत हो गयी!
क्या मां गरिमा उठकर बैठ गयी!
वो एक झटके से उठी और सोनम के घर की ओर दौड लगा दी ,
उसे होश न था कि उसके पैर में स्लीपर भी नही है!
गेट के बाहर काफी भीड थी!
कुछ लोगों की आवाज कान में पड रही थी!
बिन माँ की बच्ची है, माँ से बेटी का अकेलापन न देखा गया, तो वो अपने साथ ले गयी!
कुछ लोग सोनम के पिता को बुरा भला कह रहे थे!
ढोंगी लोग”
गरिमा का मन हुआ वो चीखकर बोले मै हूँ न सोनम के लिए “
पर मुहं से आवाज न निकली “
गरिमा भीड को चीरती हुई अंदर प्रविष्ट हुई “
सामने सोनम का मृत शरीर पडा था “
सोनम के अंगूठे मे अब भी, गरिमा ने बांधा था वही रूमाल बंधा था!
मामा जी” गरिमा मामा के पास बैठ गयी!
बेटा टिटनेस हो गया ” मामा जी के आंसू झर रहे थे!
चोट लग गयी थी बताया नहीं रात भर मैं जहर फैल गया!
गरिमा की नजर मामी पर पडी ” आज मामी डायन नजर आ रही थी! कितना डर भर दिया था, खुद के लिए मामी ने, सोनम के अंदर, वो अपनी तकलीफ भी न बता सकी “
गरिमा को ,मामी से घृणा हो गयी!
वो घर लौट आयी! पर सोनम की यादे से वो पीछा न छुडा सकी”
तेइस बरस गुजर चुके थे सोनम को गुजरे गरिमा ने सोनम के बाद फिर कभी किसी से दोस्ती नही की “
उसके मन में एक डर भय कर गया था!
की जिससे भी वो लगाव रखेगी सब दूर हो जाऐगें!
तेइस बरस बाद उसके जीवन मे आयी स्नेहिल, वही रूप वही रंग वही सोच बस भिन्नता इतनी की वो समझदार थी!
गरिमा स्नेहिल से जितना बचने की कोशिश करती स्नेहिल उसके करीब आती गयी, दोनों के घर की दूरी हजारों किलोमीटर फिर भी जाने कैसा बंधन, गरिमा का वही डर स्नेहिल खो न जाये!
महामारी के दौरान, ऑनलाइन दोस्ती हुई थी दोनों की उम्र
में चार पांच साल का फर्क ” स्नेहिल का भी लगाव कुछ हद तक के लिए गरिमा को प्रभावित कर गया!
गरिमा स्नेहिल की कोई भी बात टाल नहीं पाती न स्नेहिल उसकी, धीरे धीरे गरिमा सोनम को भूलने लगी, क्योकि उसी जैसी स्नेहिल उसके साथ है!
समाप्त
रीमा महेंद्र ठाकुर ” कृष्णा चंद्र”
राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश भारत”