मर्यादा – उमा वर्मा

माँ, मै जा रही हूँ ।तुम मेरे पास नहीं हो ।एक परम शान्ति महसूस कर रही हूँ माँ ।गहन अंधकार छा रहा है ।कल ही दिन  में तो तुम से बात हुई ही थी ।तब कहाँ पता था कि यह मेरे जीवन की आखिरी तारीख होने वाली है ।कल शाम को अचानक तबियत खराब होने लगी थी और फिर डाक्टर आए ,मुझे इंजेक्शन दे कर सुला दिया था ।फिर मुझे होश ही कहां था ।अब जब जाने की तैयारी होने लगी तो तुम मेरे साथ नहीं हो ।तुम मेरे सबसे प्रिय और करीबी हो माँ ।

तुम से ही तो जुड़ी हुई थी ।सारी बातें शेयर करते रहती थी ।माँ, याद है ना, शादी के बाद जब मुझे विदा कर रही थी तो कहा था ” ससुराल में मान मर्यादा का खयाल रखना ” ।वह तो मैंने निभाया ना ।सब कुछ ठीक चलने लगा था ।मै बहुत खुश थी।कुछ दिन बाद एक बेटे की माँ भी बन गई थी ।जीवन चलता रहता है ।चलता रहा ।थोड़े दिन बाद पति भी मुझे छोड़ कर चले गये ।

मै बेबस हो गई ।परिवार तो थे ही ।पर तुम ने बहुत समझाया, हिम्मत बंधाई ।लोगों ने कहा मर्यादा का खयाल रखना ।मर्यादा ढोते ढोते जीवन खत्म होने को है ।बच्चे की शिक्षा, अपना रहना, खाना  सब कुछ तो संभाला ।बेटा इंजीनियर हो कर अच्छी कम्पनी में लग गया ।उसकी शादी भी हो गई ।कभी उससे अपना सुख-दुःख शेयर करती थी, कभी तुम से ।

मेरी भी उम्र कम थी ।एक  साथी या सहारे की जरूरत थी ।जीवन में बहुत लोग मिले ।स्त्री और पुरुष भी ।सभी लोग बहुत आदर सम्मान देते ।लेकिन एक दोस्त तो चाहिए था जो मुझे समझ सके।वह भी मिले ।उनसे मै सारी बातें शेयर करते रहती थी ।वह हमेशा समझाया करते ।सुख दुःख तो जीवन में आती जाती हैं ।हमें घबराना नहीं चाहिए ।एक मर्यादा का खयाल रखते हुए हम हमेशा अच्छे दोस्त बनकर हमेशा रहेंगे । बेटा बहू पूना में था।उसने मुझे भी अपने पास बुला लिया ।

मै चली गई ।कुछ लोग मुझसे नाराज भी रहें हों ।पर मै जीना चाहती थी अपने लिए ।वहां मैंने अपनी जिंदगी भरपूर जी ली।अपने मन के मुताबिक रहना, खाना, घूमना, पहनना ।जितनी बंदिशे थी वह सभी को पीछे छोड़ दिया ।बारह साल तपस्या की थी मैंने ।



अब तो खुशी मिलनी चाहिये ।मुझे खुशियाँ ही खुशियाँ मिलती गई कि अचानक घर लौट जाना पड़ा ।पूना में तुम भी तो थी,अपने बेटे के पास ।हम रोज मिलते थे ।वह मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय था ।नहीं जानती थी कि दुनिया से जल्दी विदा होने का वक्त आ गया है ।

एक बार कभी किसी बात पर तुम ने कहा था कि बेटी मायके से डोली पर जाती हैं और ससुराल से अर्थी पर विदा होती हैं ।लो माँ, मै जा रही हूँ ।मेरी अर्थी सजेगी, खूब फूल माला से लाद दिया जायेगा ।तुम को खबर मिलेगी तो तुम बहुत रोओगी ।लेकिन ईश्वर को यही मंजूर था ।तुम भी तो नहीं जानती थी कि दुनिया से मुक्त हो जाने वाली है मेरी प्यारी बेटी ।मै तो अभी जीना चाहती थी ।

पोते पोती को गोद लेने की इच्छा थी मेरी ।लेकिन तुम मुझ पर इतना भरोसा रखना माँ कि मैंने निभाया अपनी मर्यादा, कभी इस पर आंच नहीं आने दी ।मै तुम्हारी ही तरह की थी ।हमेशा कविता और कहानी रचने वाली ।हम दोनों एक दूसरे से सलाह ले कर लिखते रहते थे ।अब मेरी सांसे थम रही है माँ ।बस कुछ ही क्षणों की बात है ।तुम ने मुझे कभी कोई कमी नहीं रहने दिया ।हर इक्षा पूरी की ।कितना प्यार करने वाली थी तुम, ममता और स्नेह से भर पूर् ।

पापा की तो मै जान ही थी ।अब इस अंतिम समय में सभी मुझे बहुत याद आ रहें हैं ।पापा, दादी, मेरे अच्छे सीधे सादे पति, मेरी प्यारी सहेली जो दो साल पहले ही चली गई ।मेरी अंतिम इच्छा यही है माँ, मेरा अगला जन्म तुम्हारे पास ही हो ताकि मै तुम लोग को देख सकूँ, महसूस कर सकूँ ।दुख इस बात का है कि तुम मेरा जाना कैसे सह पाओगी ।नहीं रोना माँ ।तुम्हारे रोने से मुझे बहुत दुख पहुचेगा।सोचो तुम्हारे लिए तो केवल एक व्यक्ति खोया है ।पर मै तो सब कुछ खो रही हूँ ।घर, परिवार, बेटा, बहू और भी बहुत कुछ ।इश्वर से प्रार्थना करो कि मुझे शान्ति मिले।प्रार्थना करो कि मुझे तुम लोग फिर से मिलो।आह! हिचकी आ रही है ।एक सुरंग सा है ।परम शांति लगने लगी है ।विदा दो माँ बस  ——-।

 

उमा वर्मा 

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