मैंने सदैव तुम्हारी भावनाओं का तिरस्कार किया है! – ज्योति आहूजा

आज रमा और सुशांत जी अपने बेटे और बहू को एयरपोर्ट पर छोड़कर घर वापस आए थे। सुशांत जी और उनकी पत्नी रमा के दो बच्चे है।एक बेटी कीर्ति और बेटा कुणाल। बेटी की शादी सुशांत जी ने तीन साल पहले एक अच्छे घर में कर दी थी।अच्छा रिश्ता मिल रहा था तो बेटी के हाथ पीले कर दिए और बेटी की ब्याह की चिंता से मुक्त हो गए।

सुशांत जी का अपना कपड़े का व्यापार था।खूब धन कमाने के लिए एक व्यापारी होने के नाते जिंदगी के इतने सालों में उन्होंने इतनी भागदौड़ की कि अपने परिवार को कभी समय नहीं दिया।

दोनों बच्चो को उच्च शिक्षा देने के लिए उन्होंने कभी कोई कमी नहीं रखी।बेटे को वे अपनी तरह व्यापारी नहीं बनाकर बड़ा अफसर बनाना चाहते थे। उनके पास सब था पर सबसे जरूरी चीज समय नहीं था।

बेटा कुणाल भी पढ़ाई में होशियार था।क्लास में हर साल अच्छे नंबरों से पास होता था।

 

सुशांत जी के लिए सभी दिन एक बराबर होते थे।उनका ना कोई रविवार ना सोमवार।छुट्टी के नाम पर महीने में एक आधी बार शाम को वे जल्दी घर अा जाते।

उसमें भी हर समय फोन पर व्यापार की ही बाते करते रहते।ये सिलसिला अब रोज होने लगा था

पत्नी रमा को भी बहुत कम वक्त देते थे। जिससे वह कभी अकसर मन मार कर रह जाती थी।

हीरे आभूषणों से लदी रमा जी का असली गहना उनकी मनमोहक मुस्कान थी। जो आभूषणों के बोझ तले दब रही थी।



समय जल्दी जल्दी बीतता गया। आज दोनों बच्चे बड़े हो गए थे।

बेटी कीर्ति वकालत की पढ़ाई कर चुकी थी।और उसकी शादी हो गई थी।

बेटा कुणाल एमबीए कर चुका था।और एक अच्छी मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर था।

बेटे की शादी पिछले महीने सुशांत जी उसकी सहकर्मी सुरभि से कर के अपनी जिम्मेवारियों से मुक्त हो गए।

आज घर वापस आकर सुशांत जी पत्नी से कहते हुएमन कुछ अच्छा महसूस नहीं कर रहा।एक अच्छी सी चाय पिला दो।

अभी लाई। रमा जी एसा कहकर किचन में चली गई।

सुशांत जी ने अपने विशाल घर में चारो तरफ आंख दौड़ाई।पूरा घर साज सज्जा के सामान बड़े बड़े झूमर व सुंदर सुंदर कालीनों से सजा हुआ था। लेकिन उन्हें इस्तेमाल करने वाले लोग अब वहां नहीं थे।वो रौनक नहीं थी। वो चहल पहल नहीं थी जो होनी चाहिए थी। थी तो सिर्फ सांस की आवाजें जो शांत कमरे में सुशांत जी को अपने स्वं में से सुनाई दे रही थी।

चाय लाई पत्नी रमा से उन्होंने कहा।बहुत देर हो गई रमा। जीवन के अनेक साल इतना कमाने में लगा दिए।ये दिन देखने के लिए?

 

आज ये बच्चे पंख लगा कर उड़ गए और मुझ अभागे ने उन्हें समय भी नहीं दिया।  कभी तुम  लोगों की भावनाओं को नहीं समझा।  हमेशा तुम्हारे एहसास  मेरे द्वारा तिरस्कार का पात्र ही बन कर रह गए। तभी रमा कहती है यह बात काश आपको पहले समझ आई होती! मैंने तो कबका एक ही छत के नीचे अकेले रहना सीख लिया। मैं जवान से बूढ़ी हो गई आपका इंतजार करते करते।



बच्चे भी पिता का इंतजार करते करते जवान हो गए।और अपनी जिंदगी में एक दिन मस्त हो गए।

कुणाल को विदेश अच्छी नौकरी मिल गई तो वह भी सुरभि के साथ हम दोनों से अलग हो गया।जो कि अच्छा भी है।उसकी तरक्की के आगे हम क्यू आड़े आए।आखिर हम मां बाप है।रमा ने पति से कहा।

हमने अच्छा फैसला लिया कि उन दोनों को विदेश भेज दिया।

कहते कहते रमा जी की आंखो में नमी आ गई।

आज सुशांत जी अपने पिछले सालों का बीता समय याद करके पछता रहे थे।

उनका मन बार बार यही कह रहा था कि आमदनी बहुत जरूरी है जीवन यापन के लिए परंतु इतनी होड़ या भागदौड़ भी नहीं होनी चाहिए कि अपनो को समय ही ना दे।  बीता वक्त फिर लौट कर नहीं आता।

समय कभी किसी के लिए नहीं रुकता! उनका हृदय बार-बार यही बात कह रहा था कि काश कोई ऐसा यंत्र बने जिससे वह पिछले सालों का समय फिर से वापस ले आए लेकिन ऐसा संभव नहीं था!!

ये सोचकर सुशांत जी की भी आंखे भर आई।

दोस्तों ये कहानी आपको कैसी लगी।

पढ़कर अवश्य बताएं।

#तिरस्कार 

आपकी सखी

ज्योति आहूजा।

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