मैं मां हूं न ! – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

 पिछले सप्ताह ही रोहन और शुचि का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ था। विवाह के पश्चात् होने वाली अन्य रस्में भी पूरी हो चुकी थीं। भारतीय संस्कृति में ‘विवाह’ एक महत्वपूर्ण संस्कार है।

यह मात्र एक परंपरा का निर्वाह नहीं है, अपितु इसमें समाहित सभी रस्मों यथा बहू आगमन पर गृह प्रवेश की द्वार पूजा , द्वार रुकाई, कुल देवता/देवी की अर्चना, मुंह दिखाई ,अंगूठी ढूंढना आदि के माध्यम से नववधू को नए परिवेश में सहजता से स्वीकार करते हुए उसे स्वयं को भी सहज अनुभव करवाने के ही सार्थक प्रयास होते हैं।     

       इन सभी रस्मों की संपन्नता के पश्चात् रोहन की ताई और बुआ जी के अलावा लगभग सभी रिश्तेदार वापिस जा चुके थे। कल शाम जब उन दोनों ने भी अपने घर वापसी की इच्छा जताई तो सभी ने एक मात्र रहती बहू के ‘रसोईघर में प्रवेश’ की रस्म को भी पूरा करने का विचार कर लिया।

   शुचि के लिए अन्य रस्मों के साथ-साथ ‘कंकण खोलने’ और ‘अंगूठी ढूंढने’ का रोमांच अभी भी ताजा ही था कि उसने ताई जी और बुआ जी को अगली सुबह ही ‘पहली रसोई’ के लिए सुझाव देते सुना। अतः कल शाम से ही वह बहुत नर्वस थी। 

मदद – संगीता अग्रवाल 

      दरअसल विवाह से पूर्व शुचि ने बस कभी-कभार , प्रायः मां के अस्वस्थ होने पर , पापा की मदद से ही किचन का ‘काम चलाऊ’ काम किया था। अन्यथा सारा समय पढ़ाई में व्यस्त रहने के कारण उसने इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया था। कभी-कभी मां के डांटने पर भी उसे पापा की ‘शह’ मिल जाती थी क्योंकि उसके पापा किसी भी कीमत पर उसकी पढ़ाई को प्रभावित नहीं होने देना चाहते थे। फिर पढ़ाई खत्म होते-होते तुरंत विवाह हो गया।खैर.. 

    कल रात जब शुचि ने अपने कमरे में आकर रोहन को अपनी परेशानी बताई तो वह खिलखिलाकर हंस पड़ा। शुचि और भी ज्यादा नर्वस हो गई। फिर उसके नाराज होने पर रोहन ने उसे तसल्ली देते हुए समझाया कि वह बाहर सबके सामने घबराहट में उसके चेहरे के बदलते रंग को देखकर सब कुछ समझ गया था और सुबह के कार्यक्रम की ‘जासूसी’ करने के लिए ही वहां देर तक रुका रहा था।

    उसकी घबराहट दूर करने के लिए रोहन ने उसे  बताया , ‘कल सुबह तुम्हें  घर वालों के लिए केवल थोड़ा सा हलवा बनाना है। इसके लिए तुम जरा भी चिंता मत करो क्योंकि हलवा बनाने में तो मैं माहिर हूं,सो मैं तुम्हारी पूरी मदद करूंगा।’  

      लेकिन रोहन द्वारा दिए गए आश्वासन के बावजूद भी चिंता के कारण शुचि को कल रात बहुत देर से नींद आई और आज सुबह , ‘उफ़ ! सात बज गए !! रोहन उठो !! सब गड़बड़ हो गया!! हमें तो इस समय किचन में होना चाहिए था!’ कहते हुए शुचि ने हड़बड़ा कर रोहन को उठाया और स्वयं फटाफट बाथरूम में घुस गई और केवल पांच मिनट में ही नहाकर वह बाहर आ गई और उसने रोहन के साथ किचन की ओर का रुख किया।

  कमरे से निकल कर जैसे ही उसने बरामदे में कदम रखा कि सहसा किचन से आती हलवे की भीनी-भीनी मीठी खुशबू से वह एकदम घबरा गई। तभी उसके कदमों की आहट सुन कर उसकी सासू मां ने तुरंत किचन से बाहर निकल कर उंगली से उसे चुप रहने तथा व्यंग्य भरी मुस्कान से रोहन को अपने कमरे में वापिस जाने का इशारा किया ।

कुम्हार – सीमा पण्ड्या 

    फिर किचन में अपने पास पहुंचते ही उसकी सासूमां ने उसके हाथ में कड़छुल पकड़ाया और हलवे को थोड़ा हिला कर ढंक देने के लिए कहा, ‘लो बेटा ! आज तुम्हारी रसोईघर में प्रवेश करने की रस्म भी संपन्न हुई। हां,अब फटाफट तैयार हो कर अपने पापा,ताई और बुआ जी के डाइनिंग हॉल में आने से पहले ही वहां अवश्य पहुंच जाओ। वहां तुम्हें सबको हलवा परोसना है। मदद करने के लिए वहां मैं भी  उपस्थित रहूंगी।’

   शुचि हैरान थी। फिर सब कुछ समझ आने पर वह भाव विह्वल हो कर सासूमां के चरणों में झुक गई । उसकी सासूमां ने उसे उठाते हुए कहा , ‘हैरान मत हो बेटा ! हमारे शास्त्रों में विवाह एक शुभ सामाजिक परंपरा है जिसमें बहू को गृह लक्ष्मी का पावन स्थान दिया गया है। संभवतः ‘रसोई प्रवेश’ की इस रस्म के मूल में नव गृह आगमन पर बहू के रूप में गृह लक्ष्मी को घर के खान-पान और सभी सदस्यों के स्वाद

से परिचित करवाने का भाव ही रहा होगा, किंतु आधुनिकता के आडंबर में और फैशन की आड़ में इसे एक अलग ही ‘चुनौती’ के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा है, किंतु मैं इस बात को भली-भांति समझती हूं कि आजकल की बच्चियां पढ़ाई-लिखाई को ही एक ‘चुनौती’ मानती हैं।

वैसे भी अपनी कठिन पढ़ाई-लिखाई के बल‌ पर जो लड़कियां बड़े-बड़े विद्यालयों, कालेजों, यूनिवर्सिटियों,दफ्तरों और कंपनियों को संभाल सकती हैं, अवसर आने पर, थोड़ी सी ही मदद से वे रसोई को भी बखूबी संभाल सकती हैं। अतः कल शाम ‘रसोईघर में प्रवेश’ की बात चलते ही तुम्हारे चेहरे पर आई घबराहट देखकर मुझे बहुत कुछ अनुमान हो गया था।’

   फिर वे हौले से मुस्कुराईं, ‘दरअसल मैं मां हूं न ! बच्चों के चेहरे पढ़ना अच्छी तरह जानती हूं।’

    शुचि को सचमुच अपनी सासूमां में ‘मां का प्रतिबिंब’ दिखाई दे रहा था ।

 

उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब।

#शुभ विवाह

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