मदद – संगीता अग्रवाल 

स्मिता अपने बेटे के साथ बाज़ार से निकल रही थी बड़े बड़े शोरूम और उनमे एक से एक मन को लुभाने वाली चीजे। शोरूमो के शीशो मे सजे पुतले और उनको पहनाये कीमती कपड़े। शोरूमो मे भारी भीड़ ।  सब कितना खूबसूरत नज़र आ रहा है पर क्या सच मे ये खूबसूरत है इसका एक बदसूरत पक्ष तो स्मिता अक्सर देखती थी।

अक्सर कबाड़ चुनते नंग धड़ंग गरीब बच्चे जब इन पुतलों के सामने रुक जाते थे और ललचाई नज़रो से कपड़ो को निहारते थे । दुकान का चौकीदार जब उन बच्चो को देख लेता तो डांट कर भगा देता तब स्मिता को अक्सर शोरूम वालों पर गुस्सा आता क्या जरूरी है कपड़ो को यूँ दिखा कर रखा जाये और गरीबों को ललचाया जाये। पर अगले पल वो सोचती इसमे शोरूम वालों की भी क्या ही गलती यहाँ जो दिखता है वही बिकता है ।

वैसे आज स्मिता भी इसी भीड़ का हिस्सा बनने आई थी उसके आठ साल के बेटे का जन्मदिन था और उसके लिए कपड़े, जूते और भी बहुत सी चीजे लेनी थी उसे इसलिए वो ऐसी ही सजी धजी एक दुकान मे घुस गई। दुकान पर मौजूद सेल्स बॉय ने मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया और उसके कहे अनुसार कपड़े दिखाने लगा ।

” बेटा रोहान देखो तुम्हे क्या पसंद है इसमे से ?” स्मिता ने कुछ कपड़े देखते हुए बेटे से पूछा।




” नही मम्मा ये अच्छे नही है !” रोहान मुंह बना कर बोला।

” बेटा ये अच्छे नही तो हम आपको और अच्छे कपड़े दिखाते है !” सेल्स मैन मुस्कुरा कर बोला। मन ही मन भले वो रोहान पर चिढ रहा होगा पर होठो पर मुस्कान थी आखिर इसी बात की तो ट्रेनिंग दी जाती है उन्हे।

” देखो बेटा ये कितने अच्छे कपड़े है और आपको सूट भी करेंगे आप ट्राई कर लीजिये। ” सेल्स मैन ओर कुछ जोड़े कपड़े दिखता बोला।

” ये वाला अच्छा है !” आखिरकार रोहान को कुछ ड्रेस पसंद आ गई पर उसका ध्यान कही और ही था स्मिता ने उसे कपड़े पहन कर देखने को बोला पर उसने स्मिता को सुना ही नही वो तो एक दिशा मे देख रहा था उसकी निगाहो का पीछा करते हुए स्मिता ने देखा एक नंग धड़ंग बच्चा बाहर पुतलो के पास खड़ा है और उस पुतले से बाते कर रहा है स्मिता उस बच्चे की तरफ आकर्षित हुई क्योकि वो उसके बेटे की सी उम्र का था।

” मम्मा वो कितना गंदा है उसने कपड़े भी नही पहने !” अचानक रोहान बोला ।

” नही बेटा ऐसा नही कहते उसकी कोई मजबूरी होगी इसलिए तो वो ऐसा है !” स्मिता बोली। रोहान दुकान के शीशे के पास जा बच्चे को देखने लगा स्मिता भी कपड़े पैक करने को बोल रोहान के पास आ गई।

” पुतले तुम कितने सुंदर लगते हो इतने सुंदर कपड़े पहन अगर मेरे पापा जिंदा होते तो मैं भी तुम्हारी तरह सुंदर होता । वैसे जबसे मेरी तुमसे दोस्ती हुई है तबसे मुझे अकेलापन नही लगता क्योकि मैं मौका मिलते ही तुमसे बाते जो कर लेता हूँ वरना तो मेरा कोई दोस्त भी नही !” वो बच्चा एक बच्चे के पुतले से ही बात कर रहा था।

” मम्मा पुतले भी कभी दोस्त होते है जो वो उसके साथ बाते कर रहा है !” रोहान स्मिता से बोला।

“बेटा जैसे भगवान मूर्ति होकर भी हमारी बात सुनते है क्योकि हम उनमे श्रद्धा रखते है वैसे ही ये बच्चा इस पुतले मे अपना दोस्त देखता है अगर वो उसे दोस्त बना खुश है तो क्या गलत है चलो अभी हमें बिल पे करना है!” स्मिता बोली।

” यार पुतले तुझे पता है मेरा जन्मदिन आ रहा है पर मेरे पास एक भी नया कपड़ा नही माँ बोलती है जब पापा थे तब हर साल मेरे लिए कपड़े लाते थे पर अब तो खाने के पैसे भी नही होते !” बच्चा उदास हो बोला उसकी आँखों के आंसू स्मिता ने साफ महसूस किये उसने रोहान की तरफ देखा वो भी रो रहा था। 

” मम्मा जैसे भगवान जी से हम कुछ बोलते है तो वो हमारी विश पूरी करते है वैसे ही क्या ये पुतला उसकी विश नही पूरी कर सकता ?” अचानक रोहान ने पूछा। 




” बेटा पुतले और भगवान मे अंतर होता है …पर हां हम एक काम कर सकते है !” कुछ सोचने के बाद स्मिता सेल्स मैन के पास पहुंची और उससे कुछ बात की उसकी बात सुन वो सेल्स मैन बाहर गया और उस बच्चे को एक तरफ ले जाकर बाते करने लगा स्मिता ने जो कपड़े रोहान के लिए पसंद किये थे उनमे से एक जोड़ी अलग करवाए उसमे कुछ रूपए रखकर चौकीदार को पकड़ाये और उसे कुछ समझाया । चौकीदार ने दुकान के बाहर पुतले के नीचे वो बैग रख दिया। उस सेल्स मैन ने जब देखा काम हो गया तो वो वहाँ से अंदर आ गया । स्मिता ने रोहान को कुछ समझाया और उसे पास के एक पुतले के पीछे खड़ा कर दिया। 

” अरे पुतले ये क्या रखा है तुम्हारे पास ?” वो बच्चा वापिस पुतले के पास आ बोला।

” इसमे तुम्हारे लिए गिफ्ट है दोस्त !” पीछे छिपा रोहान बोला।

” ओ तेरी पुतले तुम बोल सकते हो पर कैसे ?” बच्चा पुतले की आवाज़ सुन उछल पड़ा।

” हां दोस्त पता है मुझे भगवान जी ने तुम्हारी मदद को भेजा है अब तुम ये गिफ्ट लो और अपना जन्मदिन मनाओ !” रोहान बोला।

” तुम्हारा शुक्रिया दोस्त तुम बहुत अच्छे दोस्त हो मैं सबको बताऊंगा कि मेरे जन्मदिन पर मेरे दोस्त ने मुझे गिफ्ट दिया !” उस बच्चे ने खुशी खुशी वहाँ से बैग उठाया और चारों तरफ देखा किसी को उसकी तरफ देखते ना पा वो वहाँ से भाग गया मानो उसे डर हो कि कोई देख लेगा तो उसका गिफ्ट छीन लेगा। 

रोहान और स्मिता वापिस दुकान मे आ गये और अपने कपड़े और दूसरा सामान ले बिल बनाने को बोला। 

” आपने इसमे एक जोड़ी कपड़े के दाम कम लगाए है !” स्मिता ने बिल काउंटर पर कहा।

” मैडम जो नेक काम आपने किया वो अमूल्य है उसकी कीमत लगाकर हम खुद को खुद की नज़रो मे नही गिरा सकते !” तभी वहाँ एक आदमी  आया ओर बोला जो शायद दुकान का मालिक था । स्मिता ने काफी जोर दिया पर उसने कीमत नही ली।

स्मिता उनका धन्यवाद करती रोहान का हाथ पकड़ बाहर को चल दी सारा स्टॉफ ताली बजाकर स्मिता द्वारा किये नेक काम की सराहना कर रहा था। रोहान भी आज बहुत खुश था खुश तो स्मिता भी थी क्योकि रोहान के सुझाव से ही ये नेक काम हुआ था जिसमे उस बच्चे की मदद बिना किसी दिखावे के की गई थी। 

आपको क्या लगता है मदद का ये तरीका सही है ?

#5वां_जन्मोत्सव

आपकी दोस्त 

संगीता ( स्वरचित )

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