रागिनी जब भी ससुराल जाती तो उसकी सास का व्यवहार ऐसा होता जैसे वो काम वाली हो, वह सुमित को बोलती ,पर एक बेटे की आंख में मां के प्यार की पट्टी बंधी होती तो वह उसकी कोई बात नहीं सुनता… लेकिन वह सोचती कि कब तक आत्मसम्मान के साथ समझौता करु… उसके मन यही सवाल रहता कभी वह सोचती है कि कौन सा मुझे सासु मां के साथ हमेशा रहना है, फिर भी कसक मन में उठती ही जब भी ससुराल जाने की बात होती खैर….
सुमित और रागिनी बैगलुर में रहते हैं ,जब सुमित की छुट्टी होती है, तब वे घर जाते है,तब सुमित कहता है कि हम कुछ दिन मां के पास रहेगें और तुम कुछ दिन मायके भी रह लेना। तब वह सुमित से कहती – मेरी छोटी बहन मायके आई हुई अभी मायके चली जाती हूँ तो उसके साथ रहना भी हो जाएगा नहीं तो उसके साथ रह ही नहीं पाऊंगी।
तब सुमित कहता -ठीक है तुम जैसा चाहो तब वह खुश हो जाती है, फिर वह सुमित और अपनी अलग – अलग पैकिंग करती है। और दोनों निकल जाते हैं ,रागिनी अपने मायके पहुंच जाती है। तब वहां पहुंचते ही उसकी भाभी पूछती-” अरे दीदी आप यहाँ आ गयी, पहले ससुराल नहीं गयी,हमेशा पहले तो वही जाती हो।
” तब रागिनी कहती – ” मैं तो यह चाहती हूँ, कि ससुराल में जितना कम रहना पड़े उतना ही अच्छा… मेरी सासु मां को आप जानती हो पर क्या करु!!और यामिनी के साथ ज्यादा रहना भी तो है इसलिए पहले आ गयी। और बाद में ससुराल चली जाऊंगी। इस तरह मैंने फैसला लिया कि पहले मैं यहाँ आ जाऊं और सुमित अपनी मां के पास रह ले।
अब सुमित जैसे ही अपने घर पहुंचता है, तब उसकी माँ सुमित को अकेले आते देख बोली -अरे सुमित बेटा तुम अकेले आए हो, रागिनी नहीं आई क्या!!
तब उसने कहा-” हां मां रागिनी नहीं आई, उसे मायके जाना पड़ा, क्योंकि उसकी छोटी बहन यामिनी आई हुई है, उसे रागिनी के साथ रहना था।” तो मैंने कहा – ठीक है, वहां रह लो, नहीं तो तुम्हें बहन के साथ रहने नहीं मिलेगा।
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तब उसकी मां बोली- “अरे बेटा बहू नहीं आ आई तो खाना कौन बनाएगा। मैनें खाना तो नहीं बनाया। “
तब वो बोला रोज तो आप ही बनाती होगी तो आज क्यों नहीं….
तब वह बोली -अरे बेटा जब बहू को आना तो मैं क्यों परेशान होऊं??? इसलिए अभी हम लोगो ने नाश्ता ही किया है…. अभी बजा ही कितना है, खाना तो दो घंटे में बन जाता है।
तब वह थका हारा बैठता है तो घर की रंगत को देखकर बोलता – क्यों मां आज घर की सफाई नही हुई क्या….बाई नहीं आई क्या…. तब मां बोली- अरे सुमित बेटा वो दो दिन से छुट्टी पर है, इसलिए मुझे लगा बहू तो आने वाली वह कर लेगी।
फिर मां किचन में जाकर चाय बनाने लगती है तब सुमित कहता – मां चाय के साथ कुछ गरमागरम बना लाना, मुझे बहुत तेज भूख लगी है।
इतने में उसकी मां चाय के साथ बिस्कुट नमकीन ले आती है , और कहती- अरे बेटा तू तो खाना मंगा ही रहा है। अभी तो ये खा….
और वह एक घंटे बाद खाना आता तो वह खाना खाता है। तब मां कहती – बेटा रागिनी बहू आती तो कितना अच्छा होता, इतने सारे बरतन का ढेर लगा है, वो साफ कर लेती। तब सुमित कहता – अरे मां अब तो नहीं आई तब तो तुम्हें ही बरतन साफ करने पड़ेगे। क्या हो सकता है!! फिर जैसे तैसे बरतन साफ करती है….
तब वह महसूस करता है कि रागिनी गलत नहीं कहती थी। कि मां उसे अपना नहीं समझती, वो तो केवल रागिनी को काम के लिए ही याद कर रही है। ना कि उन्हें बहू की कमी लग रही हो।
जब से वह यहाँ आया है तब से उसके मां की रट होती है, अब मेरे से कोई काम नहीं होता बेटा बहू को ले आ….अपनी मां को कब तक परेशान करेगा।वह दो दिन बाद रागिनी को मां के कहने से घर लाता है ,रागिनी का मायका उसी शहर में होने से जल्दी आ जाती है।
इस तरह बहू बेटे के आने से उसकी मां का व्यवहार रागिनी के प्रति ऐसा होता जैसे काम वाली आ गयी हो… जैसे ही रागिनी घर आती है, तब उसकी सास विद्या जी कहती -बहू तुम तो मायके से आराम करके आ गयी हो ,अब तो मुझे गरमागरम फुलके खाने मिलेगें । क्यों बेटा सही कह रही हूं ना…
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तब रागिनी कहती- हां हां मां जी क्यों नहीं….
जैसे तैसे खाना का काम निपटा कर फ्री हुई तो सास ने कहा- बहू ऐसा करो थोड़ी मठरी और नमकीन बना दो सूखा नाश्ता ज्यादा चलता है ,अब गरमागरम नाश्ता नहीं बना पाती हूँ।तब वह कहती- मां अभी थक गयी हूं। थोड़ी देर आराम करके बना दूंगी।
तब उसकी सास कहती- अरे रागिनी बहू कौन सा पहाड़ तोड़ दिया है, जो कह रही हो कि थक गयी हूं। और बाद में नमकीन मठरी बनाऊंगी।
इतने में सुमित सुन लेता है तब वो कहता है अरे रागिनी तुम चाहो भी तो आराम नहीं कर सकती क्योंकि मां ने अपना कमरा साफ करवाया ही नहीं है, कम से कम तुम्हें आधे घंटा तो सफाई में लग जाएगा, क्योंकि तुम्हें ही साफ करना पड़ेगा। तुम तो बैठक में सो नही सकती…
मैं खुद बैठक में दो दिन से सो रहा हूँ।
तब वह कहती मां जी आप को पता था,कि हम लोग आ रहे हैं, तब तो कुंती से सफाई करा लेती….क्यों नहीं कराई । पर नहीं आपको ये लगता है कि एक उनकी बहू नही एक कामवाली तो आ ही रही है, वह कर लेगी।
अरे रागिनी…कुंती दो दिन से आ ही नहीं रही है कैसे सफाई कराती।इतने में रागिनी कहती-” आपने हमारा कमरा कैसे स्टोर जैसे भर दिया है, जैसे घर में और जगह ही न हो। खिड़की और दरवाजे पंखों को देखकर ऐसा लग रहा है , जैसे दीवाली से सफाई न हुई हो। सुमित तुम खाली बाक्स छत पर रख दो,मैं ही बैठने लायक़ सफाई करती हूं ,ताकि थोड़ी देर आराम कर लूं।
वह पलंग के चादर बदल कर झाड़ू लगा कर आराम करने को करती है। तब वह बहू से कहती -रागिनी चाय बना लो फिर बैठना….
तब रागिनी कहती-” मां चाय तो बना दूंगी। पर आप हमसे ऐसे नहीं बोल सकती। मैं आपकी बहू हूं, कोई काम वाली बाई नहीं…. “
इतना सुनकर विद्या जी कहती- ” अरे रागिनी तू कैसी बात कर रही है, मेरा ये मतलब थोड़ा ही है? “
फिर रागिनी कहती-” मां आप क्या चाहती है कि मैं आपके बेटे के कान भर भरकर आप से दूर कर दूं आपको किस चीज की कमी है, पता नहीं…आप मुझे बेटी बनाने से रही…कम से कम बहू ही मान लीजिए…क्योंकि हम लोग साल में दो- चार बार ही आते हैं,
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उसमें भी आप हमारा मन खट्टा कर देती है। आपको सुमित बराबर से पैसे भेजते हैं।और अभी भी आपके हाथ पैर चल रहे है, केवल खाना ही बनाना पड़ता है, कुंती झाड़ू पोछा बरतन कपड़े के है ही…उस से काम आप करा ले तो कितना अच्छा हो। लेकिन आपको तो मुझे ही परेशान करना अच्छा लगता है। यहां आओ तो लगता है ,काम वाली बनकर रह गयी हूं। अच्छा हुआ सुमित की नौकरी बैगलुर में है, नहीं तो आप तो मेरा जीना दूभर कर देती ।
तब भी विद्या जी को अपनी गलती समझ नहीं आ रही थी। वो कहे जा रही थी, अरे रागिनी हम भी अपने समय में अपनी सास की सब सुना करते थे। अगर यहाँ आकर चार दिन रहकर थोड़ी जिम्मेदारी उठा ली तो क्या हुआ।
इतना सुनते ही रागिनी के ससुर रमेश जी कहते- देखो विद्या मेरी मां गुजर गयी पर तुम उन्हें दिल से कभी याद भी नहीं करती ! उनकी केवल तुम्हें बुराई ही याद है क्योंकि मां ने तुम्हें कभी दिल से कभी अपनाया नहीं। और वो कड़क मिज़ाज थी। पर तुम ऐसी नहीं हो,तो बहू के साथ भी नरमी रखो, हमारा सुमित इकलौता बेटा है, तुम अपनी सास जैसी नहीं बन सकती मैं तो बस इतना कहूंगा कि तुम बहू को प्यार दो ताकि वो भी तुम्हारा सम्मान करे।
इस तरह ससुर को पहली बार बोलते हुए रागिनी भावुक हो गई ,पापा जी आप कभी बोलते नहीं थे ,पर आज सही समय पर बोले है ,क्योंकि अपनापन ही सबसे बड़ी दौलत है, पर चार सालों में मैनें मम्मी जी का प्यार और स्नेह कभी महसूस नहीं किया। वो अपनी सासु मां जैसे केवल अपने रौब भरी आवाज से काम कराती रही, तो मुझ लगता कि क्या मैं एक काम वाली ही हूं। मम्मी जी आप ऐसा व्यवहार रखेगी तो क्या मैं खुशी से काम करुंगी!!ऐसे काम करने से मुझे खुशी मिलेगी नहीं ना… !!
आप बताइए मैं आज जवाब नहीं देती तो मन ही मन अंदर से कुढ़ते हुए काम करती, जो मुझे गवारा नहीं था।
इसीलिए आज मैंने मन ही मन फैसला किया और बोल पडीं।
तब सासु विद्या जी बोली- हां रागिनी आज मुझे समझ आ गया। मुझे भी तुमसे आत्मीयता से बात करनी चाहिए। ताकि तुम्हारा भी मेरे प्रति अपनत्व बढ़े।
इस तरह सुमित भी बोला – हां मां अति हर चीज की भारी होती है। जैसे खाने में न ज्यादा नमक, न ज्यादा शक्कर भाती है ,वैसे ही आपसी रिश्तों में संतुलन होना जरूरी है। अगर आज रागिनी न बोलती तो मैं ही बोल देता। क्योंकि इस बार मैनें भी महसूस किया है जैसे मैं और रागिनी आते है तो बहू होने के नाते उसे सब काम करने पड़ते हैं, उसे आप आराम भी नहीं करने देती हम सफर से आते हैं
तो रागिनी को ही चाय बनानी पड़ती है, यहाँ तक की बरतन से लेकर हर एक काम के लिए आप उस पर निर्भर हो जाती हो, आप उसका कुछ सहयोग भी नहीं करती। इस तरह आज जो रागिनी ने कहा, वह उसके आत्मसम्मान के लिए जरूरी था ताकि आप समझे कि रागिनी भी एक सदस्य है ना कि वह कोई काम वाली बाई…..
और सासु मां को समझ आ जाता है कि वे कहीं न कहीं गलती कर रही थी और वे रागिनी के पास हाथ पकड़ कर कहती -रागिनी तुमने आज एहसास करा दिया है,ये न कहती तो शायद मुझे एहसास ही न होता अब से ऐसा बिलकुल भी न होगा। और वो भी सास के तरफ देखकर मुसकरा देती है।
स्वरचित मौलिक रचना
अमिता कुचया
#एक फैसला आत्मसम्मान के लिए