उपेक्षा – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : शैलजा को जब पता चला कि उनकी दोनों किडनियों का अब केवल दस प्रतिशत ही कार्य कर पाने में सक्षम हैं तो उन्हें लगा था कि अब उनके जीवन के दिन समाप्त हो गये हैं 

अभी तो बेटी की शादी भी नहीं कर पाईं हैं। पति और बेटी की किडनी उनकी किडनी से मैच नहीं हो पाई। तभी उन्हें पता चला कि किसी ने उन्हें अपनी एक किडनी दान कर दी है। आपरेशन सफल रहा और आज वो अपने पति और बेटी के साथ घर लौट रही हैं। 

मन में बार बार एक कसक उठ रही थी कि इतने दिनों में एक बार भी बेटा – बहू उन्हें अस्पताल में देखने तक नहीं आये। माना कि कम दहेज लाने के कारण वो लगातार बहू कल्पना को परेशान करती थीं और वह चुपचाप सहन करती रही। 

हर प्रकार की उपेक्षा और यंत्रणा भी जब कल्पना की सहन शक्ति को कम न कर पाईं तो उन्होंने बुखार में तपती कल्पना पर हाथ उठा दिया। उन्हें क्या पता कि सुबह कल्पना को बुखार में देखकर बेटा नित्यम यह सोंचकर ऑफिस से छुट्टी लेकर आ गया था कि जाकर कल्पना को डॉक्टर को दिखाकर दवा ले आयेगा क्योंकि अपनी मॉ और बहन की करतूतों की उसे खबर तो थी लेकिन कल्पना उसे कुछ बोलने नहीं देती थी –

” मुझे आप और पापाजी  इतना प्यार करते हैं मतलब इस घर का पचास प्रतिशत तो प्यार मुझे मिल ही जाता है।” कल्पना मुस्कराने लगती

लेकिन उस दिन तो नित्यम दंग रह गया। बहन कल्पना  हाथ खींचकर उसे उठा रही थी और मॉ थप्पड़ मारने जा रही थीं। आगे बढ़ कर नित्यम ने मॉ का हाथ पकड़ लिया और बहन का हाथ झटक कर कल्पना का हाथ छुड़ा लिया – ” यह क्या कर रही हैं आप लोग? दिखाई नहीं देता क्या कि उसे कितनी तेज बुखार है? सुबह किसी तरह उठकर चाय नाश्ता बना दिया था, अब क्या चाहिये उससे?”

” इस लड़की ने तुम्हारा दिमाग ख़राब कर दिया है जो इसके लिये तुम अपनी मॉ और बहन से झगड़ा कर रहे हो?

” यह मेरे कारण अपना सब कुछ छोड़कर आई है तो मुझ पर इसकी भी तो जिम्मेदारी है।”

” मर नहीं जायेगी यह जरा से बुखार में। ऐसी लड़कियों के नाटक मैं खूब जानती हूॅ। अब इस घर में या तो मैं रहूॅगी या यह लड़की। मेरे घर में कलह करवाने वाली इसे अभी मायके छोड़ कर आओ।”

शैलजा जी के पति और नित्यम ने बहुत समझाया लेकिन जिद में शैलजा ने अन्न जल त्याग दिया। निर्दोष होते हुये भी जब कल्पना ने पैर पकड़ कर क्षमा मॉगी तो शैलजा ने उसके मुॅह पर लात मार दी।

नित्यम इससे अधिक बर्दाश्त नहीं कर सकता था। रोते हुये उसने कल्पना को लेकर घर छोड़ दिया। तबसे आज तक नित्यम और कल्पना घर नहीं आये।

अस्पताल गेट से बेटी और पति के साथ जैसे ही बाहर निकली सामने खड़े  नित्यम और कल्पना की गोद में नन्हा सा गुड्डा देखकर ठिठक गईं और मुॅह फेर लिया।

 तभी उन्हें अपने पति का स्वर सुनाई पड़ा -” शैलजा तुम किडनी डोनर से मिलना चाहती थीं ना। कल्पना ने तुम्हें अपनी किडनी देकर तुम्हारी जान बचाई है।” 

शैलजा कल्पना को देखती रह गईं। यह लड़की क्या पागल है जो इसने उसकी इतनी उपेक्षा, प्रताड़ना के बाद भी उसका जीवन बचाया है? शैलजा की शर्म से गर्दन झुक गई और वह दोनों हाथ जोड़ते हुये फूट फूटकर रोने लगी।

कल्पना आगे बढी और उसने गोद के बच्चे को शैलजा की गोद में रख दिया। शैलजा की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस गोल मटोल गुड्डे को देखें या कल्पना से क्षमा मॉगें। 

कल्पना ने अपने हाथों से उनके ऑसू पोंछे – ” मत रोइये मम्मी, अब सब ठीक हो गया है।”

शैलजा ने कल्पना के हाथ पकड़ लिये – ” मुझे क्षमा करके घर चलो बहू।”

” क्षमा करिये मम्मी। आपको जब आवश्यकता होगी हम सब आ जायेंगे लेकिन दुबारा हमारा एक साथ रह पाना असम्भव है क्योंकि आपके और मेरे मध्य उपेक्षा की गॉठ पड़ चुकी है। भले ही मैंने कर्तव्य को चुनकर अपनी किडनी आपको दे दी है लेकिन साथ रहने पर हो सकता है वह उपेक्षा मेरे और नित्यम के मन में हर वक्त कसकती रहेगी। अब हमें आज्ञा दीजिये।” 

कल्पना के साथ नित्यम ने भी शैलजा के हाथ जोड़कर बच्चे को उसकी गोद से उठा लिया। कल्पना ने आगे कहा – ”  आपको एक बार स्वस्थ देखना चाहती थी। डरती थी कि कहीं आपका शरीर मेरी किडनी की उपेक्षा करके अस्वीकृत न कर दे। “

शैलजा कोई उत्तर न दे पाई केवल जाते हुये उन तीनों को देखती रह गई।

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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