महिला -दिवस – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

बड़े चाव से अपने इकलौते बेटे मनुज के लिए मानसी को पसंद किया था,सुषमा ने।देखने में सुंदर,और सजातीय तो थी ही, पढ़ी-लिखी भी थी।मानसी की चंचलता ने मन मोह लिया था सुषमा का।मनुज ने तो पहले ही कह दिया था”देख -परख कर आप ही लाना अपनी बहू।बाद में मुझे ना घसीटना दोनों की कलह में।मुझे शांति चाहिए घर में,बस।”

सुषमा जी बेटे की बात सुनकर गदगद हो जातीं।आजकल के लड़कों जैसा बिल्कुल भी नहीं है मेरा मनुज।मुझ पर अटूट विश्वास है उसका।मानसी को देखने जाते समय कहा था उन्होंने मनुज से।”तेरी ताई जी के मायके तरफ से आया है रिश्ता।लड़की बहुत सुंदर और सुशील है।देखना मेरी बेटी बनकर रहेगी।तू चलकर देख ले एक बार।”मानसी को देखकर मनुज और मनुज के पापा भी खुश हुए। बातचीत में सौम्यता और शालीनता थी।

एक -दूसरे को पसंद करने का संकेत देते ही दोनों के घर वालों ने उन्हें अकेले में बात करने की सलाह दी।सुषमा जी तो वारी जा रहीं थीं।जैसे ही मनुज और मानसी बगीचे से अंदर आए,सुषमा जी ने मानसी के हाथों शगुन की साड़ी और नारियल पकड़ा दिया।उनके पति ने भी मानसी के हांथ में पैसे देकर आशीर्वाद दिया।

मनुज से ना जाने कितनी बार पूछा होगा ,मानसी के बारे में”कैसी लगी?क्या बातें की?तूने अच्छे से बात की ना उससे?”मनुज भी मजे ले-लेकर मां को चिढ़ा रहा था।महीने भर में ही शादी कर दी सुषमा जी ने बेटे की।बहू की मुंह दिखाई में सुहगली पूजा करवाई उन्होंने।कुछ दिनों में ही मानसी ने घर पर रहकर बोर होने की बात की।सुषमा जी ने तुरंत सहमति दे दी।मानसी को स्थानीय विद्यालय में नौकरी मिल गई।

मनुज तो पहले से ही शांत स्वभाव का था।अब भी बात कम ही करता था।दोनों खुश थे,बस और क्या चाहिए था सुषमा जी को।साल भर में ही मानसी मां बन गई थी,एक बेटे की।दादी ने पोते की सारी जिम्मेदारी ले ली थी।मानसी ने कुछ महीनों में ही विद्यालय जाना शुरू कर दिया।मानसी ने सास की सहायता के लिए दो नौकरानियां भी लगवा दीं।कुछ दिनों से सुषमा जी को मानसी का व्यवहार बहुत अजीब लग रहा था।

घर आने के बाद सीधे मुंह बात ही नहीं करती थी अब सास-ससुर से।पता नहीं किस बात का ग़ुस्सा था,अकारण ही बेटे को डांटना और मारना शुरू कर दिया था उसने।सुषमा जी से उनके पति ने भी पूछा”बहू को कुछ कहा है क्या तुमने?मनुज से कोई अनबन हुई है क्या?ऐसा बर्ताव क्यों कर रही है भला?”सुषमा जी के पास कोई जवाब ही नहीं था।

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आज उन्होंने सोच कर रखा था ,मानसी के आते ही पूछा”मानसी बेटा,क्या हुआ है तुम्हें?मनुज से कुछ अनबन हुई है क्या? आजकल बहुत परेशान रहने लगी हो।मैं तो मां जैसी हूं ना,मुझे तो बता सकती हो तुम।”मानसी सुषमा जी की बातें सुनकर रोने लगी।सुबकते हुए बताया उसने”आपके बेटे को मेरी कोई भी बात अच्छी नहीं लगती।

ना तो मैं अपने दोस्तों के साथ बाहर घूमने जा सकती हूं।ना ही किटी पार्टी ज्वाइन कर सकती हूं।हर बात पर बस यही कहेंगे कि मेरी मां को पसंद नहीं।बेटा अभी छोटा है।मैं क्या अपने शौक भी पूरे नहीं कर सकती?”

सुषमा जी ने प्यार से समझाया”अरे,पगली मेरा मनुज बहुत भोला है। तुम्हारे पापा को यह सब पसंद नहीं था ना,तो मैंने कभी नहीं किया।बस अपनी गृहस्थी संभाली।मनुज ने वही देखा है, इसलिए तुम्हें मना करता है।मैं समझाऊंगी उसे।अब जमाना बदल गया है,तो अपनी सोच भी हमें बदलनी चाहिए।”

सास की बातों से आश्वस्त होकर मानसी उस दिन बहुत खुश थी।सुषमा जी ने मनुज को प्यार से समझाया।ज़माने के साथ बदलने की बात सुनकर मनुज ने कहा भी”मां,बाहर वालों से ज्यादा निकटता परिवार में कलह लाता है।दुनिया की चकाचौंध में हम खुद को ही भूल जातें हैं।घर कहीं क्लब ना बन जाए।आप सोच समझकर मानसी की बातों से सहमत होना।”सुषमा जी ने सब संभालने का आश्वासन दे दिया बेटे को।

अब मानसी की बहुत सारी सहेलियां बन गई थी। विद्यालय से आकर ही आए दिन किटी पार्टी होती।शाम को घर आकर काम वाली बाई से एक दिन  मानसी बात कर रही थी”क्यों कमला?इतना सारा दूध लेते हैं हम।बाबा तो दो बार बस पीता है।फिर दूध जाता कहां है?कितनी बार चाय पीते रहते हो तुम सब मां-पापा के साथ?पैसे देने में पसीने हमें आते हैं।तुम लोगों का क्या?मां भी सारा दिन रसोई में पता नहीं क्या बनाती रहतीं हैं? सिलैंडर महीना भर भी नहीं चलता।सुबह नाश्ता ,शाम को नाश्ता।इस बुढ़ापे में पता नहीं कैसे इतना खाते हैं ये दोनों?”

सुषमा जी का पूरा बदन सिहर उठा।इतनी छोटी बात कैसे कर सकती है उनकी बहू?मनुज और उसके पापा शुरू से खाने के शौकीन थे।सुषमा जी ने ज़िंदगी भर उनकी पसंद का खाना बनाकर खिलाया था।बाहर होटल में खाना बाप-बेटे को पसंद ही नहीं था।अब भी सुषमा जी ही सब्जी बनाती थी,सबकी पसंद का।दूध वाली चाय जरूर दो -तीन बार बना लेतीं थीं वे।मानसी की बातें बहुत अपमानजनक थी।

अगले दिन सुबह -सुबह ही उन्होंने मनुज से कहा”मेरे घुटनों का दर्द बढ़ रहा है रे मनुज।अब मुझसे रसोई नहीं संभलती।कमला से ही खाना बनवा लिया करूं क्या?”मनुज से पहले उसके पापा ने सुषमा जी को गौर से देखा।चश्में के अंदर से पत्नी के मन की पीड़ा पढ़ ली उन्होंने।जोर देकर बोले”नेकी और पूछ-पूछ।हमारी भी जान छूटेगी,तुम्हारे बेस्वाद खाने से।मनुज ने कुछ नहीं कहा।

अब कमला ही खाना बनाने लगी।दूध वाली चाय भी कम कर दी सुषमा जी ने। रोज-रोज सब्जी लाना भी बाबूजी ने बंद कर दिया था।

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मानसी अपनी जीत पर बहुत खुश थी।अपनी मां को सारा हाल बताती।किटी पार्टी की प्रमुख संयोजिका बन चुकी थी मानसी। धीरे-धीरे राजनीति में भी रुचि बढ़ने लगी। पद-प्रतिष्ठा मान-सम्मान भाने लगा था उसे।परिवार के प्रति उदासीनता बढ़ने लगी थी।आए दिन उसकी फोटो छपती अखबार में।महिला-मंडल की अध्यक्ष मनोनीत हुई थी वह।घर पर पार्टी रखी गई।

महिलाओं का समूह एकत्रित हुआ।घर के लॉन में कुर्सियां सजाकर ,पंडाल लगाया गया था।माइक लेकर सभी महिलाएं गीत-संगीत और नृत्य प्रस्तुत कर रहीं थीं।तभी महिला दिवस के उपलक्ष्य पर मानसी को सर्वश्रेष्ठ महिला का सम्मान मिलने की घोषणा हुई।मनुज ने अपने सास-ससुर को बुलवा लिया था पहले से ही।इधर महिलाओं के कार्यक्रम चल रहे थे,तभी मानसी के मम्मी -पापा भी घर पहुंचे।लॉन में मनुज अपने मां-बाबा और

सास-ससुर के साथ दो वर्ष के बेटे को गोद में लेकर मानसी के सामने कुर्सी पर बैठा।मानसी को तो अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हुआ।”आप लोग कब आए?अरे वाह!आपके जमाई ने खबर कर दी आपको,मुझे अवार्ड मिलने की!”

मनुज धीरे-धीरे चलकर स्टेज पर आया।मानसी के हांथ से माइक लिया और बोलना शुरू किया”यह जो महिला सशक्तिकरण का आडंबर आप लोगों ने लगा कर रखा है ना,यह झूठ के सिवा कुछ नहीं।यदि सशक्त महिला का सम्मान मिलना चाहिए तो वो मिलना चाहिए हमारी मांओ को।अपनी गृहस्थी चलाने के लिए, जिन्होंने कभी किसी सहेली या दूसरे की मदद नहीं ली।

उनके लिए अपनी औलाद को एक अच्छा इंसान बनाना ही सबसे जरूरी काम था।आप सभी की सास,जिनका आप सभी अपनी पार्टियों में मजाक उड़ाते हैं,आपके पति की जन्मदात्री हैं।आप सभी ये जो बाहर मनमर्जी से घूम-फिर रहीं हैं,उन्हीं की बदौलत।आपकी अनुपस्थिति में आपके पति,आपके बच्चों की देखभाल करतीं हैं वो,बिना वेतन के।अपनी छोटी मानसिकता लेकर आप लोग सर्वश्रेष्ठ महिला का सम्मान कैसे ले सकती हैं?

शर्म नहीं आती आप लोगों को।घर के बड़े -बूढ़ों को आप अपने इशारों पर नचाती हैं।मैंने आज सभी के सास-ससुर को निमंत्रण दिया है।आप सभी के माता-पिता को भी बुलाना चाहिए था,पर संभव नहीं हुआ।यह आधुनिकता की अंधी भीड़ में आप सब दौड़े जा रहीं हैं,अपने मन‌ से कहिए,क्या आप वाकई में अच्छी बहू हैं?

बेटी है?मां है?नहीं।और जो औरत एक अच्छी बेटी,बहू,पत्नी और मां नहीं हो सकती ,वो सर्वश्रेष्ठ महिला की प्रतियोगिता से ही बाहर है।

अरे,आप बहुओं को लाड़-प्यार से अपने बेटे के साथ शादी करवा कर लाती हैं यह।सोचती हैं कि इन्हें बेटी मिलेगी।पर नहीं आप कभी अपनी सास की बेटी बन ही नहीं पाती।आपको चाहिए इस रिश्ते में अकेला पति , सिर्फ पति।बाकी जो बचते हैं वो बोझ होते हैं आप पर।

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आप कभी उनकी बेइज्जती करके,कभी काम करवा के,कभी ताना देकर इतना पीड़ित कर देतें हैं कि,ये अपने होंठों को सी लेती हैं।बेटे के सामने अभी एक शब्द नहीं कहतीं।कहने से बेटे के सामने बेइज्जती।ये अपने पति के सामने भी बेईज्जत नहीं होना चाहतीं।मां‌ हैं ना।कम पढ़ी-लिखी पर पढ़ें -लिखे बच्चों की मां।ये है इनकी कमाई।इन्हें अपने लिए अलग से सम्मान की आवश्यकता ही नहीं।इन्हें सम्मान मिलता है इनके पति से,परिवार से,बेटों से पर बहुओं से नहीं।ऐसा क्या विशिष्ट किया है आप लोगों ने जो हमारी मां नहीं कर पाई।”

आज पहली बार मनुज ऐसा बोल‌ रहा था।सुषमा जी तो डर ही गईं।चुप करके नीचे आने को कहा उसे,तो जवाब दिया उसने”घुटने का दर्द बढ़ा था मां,अचानक से?खाना बनाना पसंद नहीं‌ तुम्हें,कब से?किटी में खाना तुम बनाओगी क्यों,अच्छा तो नहीं बनाती।दूध की मलाई का हिसाब तुम्हारी बहू तुमसे मांगती है,तो तुम्हारा आत्मसम्मान रोता नहीं है मां।कलह के डर से मुझे कुछ नहीं बताया तुमने।पर मैं तो बेटा हूं ना तुम्हारा,मैं सब समझ गया। आधुनिकता की चकाचौंध में‌ परिवार जल जाता है।

आज मेरी पत्नी को सर्वश्रेष्ठ महिला का सम्मान देते समय ज़रा बारीक निरीक्षण कीजिएगा,क्या वाकई में समाज या परिवार के लिए कोई विशिष्ट उपलब्धि है इनके पास?”

पूरा हाल स्तब्ध था।तभी सारे निमंत्रित पति दोनों हाथों से ताली बजाने लगे।

यह महिलाओं का असम्मान नहीं,उनकी कमियों को उजागर करना है।

अंत में मनुज ने अपने सास-ससुर को सारी बातें बताईं।मानसी का नकारात्मक रवैया,परिवार की मजबूती तोड़ रहा था।मनुज ने हांथ जोड़कर सास-ससुर से कहा”मेरा घर ही मेरा मंदिर है।मेरे रसोई में लक्ष्मी माता का आसन है।हम बड़े प्रेम से खाना बनाना और खाना पसंद करते हैं।मेरी मां अब तक सबकी पसंद का खाना बनाती आई है।अब आपकी बेटी को खर्च में कटौती करनी है।बाबा और मां दूध वाली चाय नहीं‌ पीते अब।

कितनी शर्म की बात है मेरे लिए।जिनसे हमें जीवन मिला,वही अब जीवन से बाहर किए जा रहें हैं।आप की बेटी से अब तक मैं कुछ नहीं कहा,मुझे उसके सम्मान की परवाह है।साथ ही मुझे मेरे माता-पिता के सम्मान की भी परवाह है।और मुझे मेरा आत्मसम्मान बहुत प्रिय है।कई दिनों से मानसी चोट करती जा रही है हम सबके सम्मान पर।आज मैंने यह फैसला लिया कि,यदि मानसी चाहे तो आप लोगों के साथ जाकर रहे।बिना रोक-टोक के जो मन वो करें।बेटा मेरे। पास रहेगा।दादी पालेगी उसे मेरी तरह।”

मनुज की बातें सुनकर सारी महिलाएं अपने-अपने पतियों से माफी मांग चुकी थीं,और घर वापस जा चुकी थीं।मानसी चुपचाप खड़ी थी।सास के पैरों में गिरकर रोने लगी।”मैं कहीं नहीं जाऊंगी मां।यहीं रहूंगी।जैसा मनुज बोलेंगे,वैसा ही करूंगी।घर में क्लेष का कारण मैं कभी नहीं बनूंगी।मुझे अपनी बेटी मानिए ना मां।”

महिला दिवस का आयोजन सार्थक रहा।एक बेटे ने अपने माता-पिता के आहत आत्मसम्मान और स्वयं के चोटिल आत्मसम्मान को आज सही मरहम दिया।

शुभ्रा बैनेर्जी 

#एक फैसला आत्मसम्मान के लिए

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