” मधुविला ”  – उमा वर्मा

 मम्मी, यह आपके लिए सरप्राइज” आप के नाम का,मधुविला, आप का अपना घर ।उसके आखों में आंसू आ गए ।यही तो था उसका खवाब,उसका सपना ।वह अपने पुराने दिनों में खो गयी ।मोहित का घर दुलहन की तरह सजाया गया है ।आज उसकी और मधु की स्वागत समारोह है ।

कल ही तो मधु इस घर की दुल्हन बन कर आई है ।बहुत बडा सा तीन तल्ले का मकान जगमग कर रहा है ।तरह तरह के पकवान का इन्तजाम और उछलकूद करते बच्चों की टोली ने वातावरण को रंगीन बना दिया है ।ऐसा ही अपने घर का खवाब देखा था मधु ने ।उस भरे-पूरे परिवार में दो बहनों में इकलौता भाई मोहित ।

उस घर का इकलौता चिराग भी ।मधु तो राज करेगी, ऐसा सोचते मधु के माता-पिता ।सबकुछ  अच्छी तरह समापन हो गया ।लोगों ने कहा वाह बहुत सुन्दर  है ।” कहाँ से लाए ऐसी गुलाब की कली “? दिन पंख लगाकर भाग रहा था ।एक सप्ताह में ही उसे लगने लगा था की वह यहाँ अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकती ।

बहुत बडे घर की इकलौती बहू ।घर में सासू माँ का ही  राज चलता ।कहाँ सोफे रखना है, कहाँ पलंग बिछेगा ,क्या बनेगा आज रसोई में, सब वही तय करती ।सजावट के कुछ सामान पर भी उसका अधिकार नहीं था ।समय समय पर सुनने को मिलता, माँ बाप ने तो कुछ नहीं दिया, बहुत सुन्दर घर देख कर बेटी दे दिया ।कहाँ से देते, पिता एक साधारण पोस्ट पर थे।उनकी आमदनी इतनी थी कि घर ठीक ठाक चल रहा था ।

कहाँ से भारी दहेज जुटाते ।पापा जब भी बेटी से मिलने आते  ससुर जी कुछ बहाने बना कर घर से निकल जाते।वे एक साधारण पोस्ट वाले समधि से मिलने में अपनी हेठी समझते ।मधु सबकुछ  देख समझ रही थी ।उसे बहुत दुख होता यह देख सुनकर ।सासू माँ भी उसके हर कार्य में मीन मेख  निकालने का कोई अवसर नहीं छोड़ती ।

मोहित शान्त और समझदार थे ।मधु को समझाते ” जाने दो ना मधु, मै हूँ न,तुम्हारे साथ ” आखिर कितना बर्दाश्त करें ” कोई तो सीमा होती है ना ।घर में माँ ने, और यहाँ पति ने समझाया कि जबान न खोले ।माँ की होशियार और प्यारी बिटिया यहाँ सबसे बेवकूफ और नालायक करार दी गई ।माँ से कहती तो उल्टा माँ ही समझा देती ” यह सब कोई बहुत बड़ी बात नहीं है ” ।संतोष इतना ही था पति बहुत अच्छे थे ।पर अच्छाई को भी एक दिन नजर लग गई एक  साधारण से हार्ट अटेक से पति चले गये ।


अकेली बैठ कर रोती रहती वह ।एक बार तो हद ही हो गयी थी जब पापा का अपने हाथ से बनाया हुआ शो पीस लेकर घर आई थी ।शो पीस  बहुत सुन्दर था  ।लेकिन उससे ज्यादा पापा का प्यार था उसमें ।उसने सोचा अपने घर जाकर लगा देगी दीवार पर ।पर जैसे ही सास ससुर ने देखा चिल्लाने लगे ।” ये क्या कचरा उठा लाई वहां से? सोना चांदी तो दिया नहीं ।” फिर किल और हथौड़ी हाथ में ही रह गया उसके ।

हिम्मत ही नहीं हुई फिर ।रोज के ताने और बात सुनकर कान पक जाते।माँ ने कुछ सिखाया नहीं, इसे तो खाना बनाना नहीं आता, आंटा गूधना नहीं आता, कुछ भी तो नहीं आता ।शादी जिस रेखा  मौसी ने तय कराई थी शिकायत वहां तक पहुंची थी “” क्यो रेखा, तूने तो कहा था की लडकी बहुत होशियार है सबकुछ जानती है पर मुझे तो ऐसा नहीं लगता ।” मैने तो उसे जैसा देखा, पाया, वैसा ही बताया ।

अब तुम्हारे यहाँ कैसी है मै क्या जानू।कहाँ से कहाँ सोचने लगी थी वह ।क्या क्या याद करूँ ।जीवन ने कैसा मजाक किया था उसके साथ ।शादी के साल भर बाद ही तो वह एक बेटे की माँ भी बन गई थी ।याद आया, सातवाँ महीना चल रहा था तभी सासू माँ ने फरमाया, ” पहला बच्चा तो मायके में होता है ।

” फिर मधु के पापा उसे लिव ले गये थे ।चाहे जो भी हो खर्च से बचने का यह भी एक तरीका था ।बेटा नानी घर में ही हुआ ।महीने भर के बाद मधु को बुला लिया गया था ।मधु के प्रती चाहे वे लोग कितने ही कठोर थे लेकिन बच्चे को बहुत प्यार करते ।बेटे का नाम अक्षत रखा गया ।समय अपनी गति से चल रहा था ।

इस बीच पति के चले जाने का दर्द भी तो सहना ही पड़ता था ।बेटा समय के साथ बढने लगा ।फिर धीरे धीरे स्कूल और कालेज में पहुंच गया ।दुखों का दर्द झेलती मधु शान्त और समझदार थी उसे लगता रो धो कर अपना जीवन नहीं जियेगी ।नौकरी तो पति के जाने के बाद से ही करने लगी थी वह ।सारी समस्याओं का समाधान भी तो करना ही पड़ेगा न ।दिन भर स्कूल में माथा पची और घर में ताने उलाहना ।यही जीवन रह गया था उसका ।पर बेटे की उच्च शिक्षा और अपना जीवन भी तो था ।


उसके मन में एक सपना था छोटा ही सही पर अपना एक  घर जरूर खरीदेगी ।सपना तो पति थे तब ही देखा था हमेशा कहती थी ” देखिए न, कभी हमलोग एक छोटा सा एक आशियाना जरूर बनायेंगे ।जहां मै अपनी मर्जी की मालिक रहूँगी ।और मोहित कहते ” क्यो नहीं, तुम वहां की रानी और  मै राजा ” और दोनों खिलखिला कर हँस पड़ते ।

पर किस्मत को कहाँ मंजूर था यह ।अब बेटे पर ही उमीदें थी ।बेटा भी तो बहुत आज्ञाकारी, मेधावी  थ।माँ की हर सुख सुविधा का खयाल रखने वाला ।अक्षत भी अब बी- टेक करके एक अच्छी कंपनी में सेटल हो गया था ।फिर अच्छी नौकरी हो तो रिश्ते भी आन लगे।और जल्दी ही एक अच्छी वधु का चुनाव भी हो गया ।घर में सभी को बहुत पसंद नहीं था कयोंकि उनकी हैसियत कमतर आंकी जा रही थी ।लेकिन मधु को कुछ नहीं सोचना था ।

यहाँ हर चीज सोने चांदी से तुली जाती पर इससे क्या ।बेटे की पसंद मधु की पसंद ।बहुत बडे घर की दुल्हन मधु थी तो भी उसके हिस्से तो एक छोटा सा कमरा ही था ।अक्षत भी तो मा का ही कमरा शेयर करता ।कैसे बहू को रखेगी, कहाँ सुलायेगी ? यही सवाल मथता ।उसका तो कुछ था ही नहीं ।परिवार में सलाह हुई ।

” मधु का कमरा तो है ही ” और मधु? चलो कोई बात नहीं है ।बेटा तो अपना ही है ।उसके लिए सब कुछ कर सकती है वह ।शादी धूम धाम से हो गई ।उस छोटे से कमरे में मुश्किल से सामान रखने के बाद जगह भी  कहाँ बची थी ।दो दिन बाद सारे परिवार चले गए ।



बेटा भी दिल्ली चला गया ।बहु को लेकर ।बहू को भेज देने की जिद भी मधु की ही थी ।अब उसका मन नहीं लगता ।भरे पूरे घर में कोई ठीक से बात करने वाला नहीं था ।खाली वक्त में वह लेखन का शौक पूरा किया करती ।समय भी कटता और उसकी रूचि भी तो  थी ।छह महीने और बीत गया था की एक दिन बेटे ने उसके लिए टिकट भेज दिया ” मम्मी, तुम्हारा टिकट करा दिया है कल के लिए ” बस चल ही दो।

।””” अचानक इतनी जल्दी?”” यह सब कैसे? बेटे की जिद पर वह हार गई ।”” हमे कुछ नहीं सुनना है “” स्टेशन  पर बेटा  बहु  लेने आये ।वह बहुत उत्साहित थी।एक बडे से गेट कार आकर रुकी ।खूब सजा हुआ, बहुत सुन्दर घर ।”” मम्मी, यह आपके लिए, आप का सरप्राइज, आप का अपना घर ।”” ” मधुविला “” उसके आखों से खुशी के आँसू थे ।

यही तो था उसका खवाबों का घर  ,उसका सपना जिसे बेटे ने पूरा किया था ।आज गृहप्रवेश की पूजा और पार्टी थी ।बहू ने मधु को भी गुलाबी  बनारसी साड़ी दी ।” माँ, यह आप पर बहुत अच्छा लगेगा ।” हाँ पति को भी तो गुलाबी रंग बहुत पसंद था, तुम्हे कैसे पता ? “अक्षत ने बताया ” ।बहुत खुश थी मधु आज ।जीवन जीने की चाह उसे आज अपने बेटे बहू से मिला था ।” मम्मी, कहाँ खो गयी थी “? ” नहीं बेटा, पुराने दिन याद आ गए थे ।” उसने दोनों को कलेजे से लगा लिया ।तभी पंडित जी ने नीचे से आवाज़ लगाई ।” जल्दी आइये अक्षत जी, पूजा का समय हो गया ।”

उमा वर्मा

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