मां का संघर्ष – मृणाल सिंह : Moral Stories in Hindi

सुनंदा विवाह के बाद ससुराल आई तो पाया कि पति का अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है आत्मविश्वास से। हीं नहीं है व्यापार का सारा काम करने के बाद कमाईं भाभी भाई के पास जमा हो जाती निर्णय भी घर में उनका हीं चलता था। उनके बेटे बाहर हास्टल में पढ़ रहे थे। सम्पन्न घर था सासू मां सीधी-सादी महिला थीं

वह मन का वहम है कह कर इसे झुठलाने का प्रयास करने लगी।समय सब सही कर देगा ऐसा सोचना था उसका परंतु यह झूठ साबित हो रहा था परे समर्पित भाव से वह घर में सबसे घुलने मिलने का प्रयास करती परंतु परिवार पर एकाधिकार जेठानी जी का था कुछ राय रखने

पर कहा जाता तुम्हें बोलने का अधिकार नहीं है पति से कहने पर कुछ ज़बाब नहीं मिलता थक हार कर मौन हो गयी तब परिवार परिचित से कहा जाता सामंजस्य स्थापित करना नहीं आता। इसी कशमकश में दो साल निकल गए और एक बेटी की मां भी बन गयी माहौल वही था कोइ बदलाव नहीं।

समय के साथ बेटी बड़ी हो रही थी उसके शिक्षा की चिंता सताने लगी थी बेटी तीन साल की हो रही थी पति से बात करनपुर जबाब मिला भाई सा भाभी सा से बात करो सुनंदा ने सासू मां से बात करना सही समझा और उनसे बातचीत करने पर उन्होंने घर के सदस्यों से बात करके कहा पढ़ने-लिखने की उम्र हो रही है तो क्या करना है सहयोग की जगह

ज़बाब मिला पास के गांव में प्राथमिक विद्यालय है छः साल की हो जाएगी त़ो दाखिला करवा देंगे ज्यादा पढ़ा लिखा कर क्या करना है शादी विवाह भी करना है दहेज़ भी लगता है पिता की भी सहमति देख सुनंदा समझ गई कि कुछ भी कहना सुनना बेकार है पढ़ी-लिखी थी कशमकश में रहती थी कि ऐसा क्या रास्ता निकले कि बिना विवाद लड़की की शिक्षा हो जाए।

होली में मायके जाने पर वह  पास के प्राइवेट विद्यालय में आवेदन देकर आ गयी और फिर नियत तिथि पर साक्षात्कार भी दे दिया।वह साक्षात्कार में सफल हो गयी थी और बेटी का दाखिला भी उसी विद्यालय में सुनंदा ने करवा दिया।

मात-पिता भाई के पूछने पर बात टालते हुए बोली गांव में विद्यालय नहीं दूसरे गांव भेजने में डर लगता है अभी बच्ची है कुछ दिन मायके में रह कर सुनंदा ससुराल वापस आ गई और दिनचर्या उसी तरह चलने लगी। जुलाई में उसे ज्वाइन करना था मायका पास के कस्बे में था

नियत तिथि से दो-दिन पहले सासू मां से सब कुछ बताया सासू मां ने रात में परिवार के सदस्यों से बात की सुनंदा कोको जैसी आशंका थी वही हुआ परिवार विरोध में खड़ा था साथ में पिता भी उनकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि घर के बेटे अच्छे विद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं उनकी बेटी के पढ़ने-लिखने में आनाकानी क्यों?

सासू मां का मौन सहयोग उसके साथ था और सुनंदा ने भी ठान लिया था कि मौन रह कर वह अपनी बेटी की शिक्षा के लिए हर संघर्ष को स्वीकार करेगी।

नियति तिथि पर विद्यालय ज्वाइन कर वह शिक्षण कार्य करने लगी और मायके के पास हीं कमरा किराए पर ले लिया माता पिता हर तरह का सहयोग कर रहे थे पर ससुराल से कोई सहयोग नहीं मिल रहा था वहां की नाराज़गी बरक़रार थी वह ज़रूर छुट्टियों में ससुराल आती-जाती रहती थी बिना किसी शिकायत के।

समय के साथ-साथ बेटी बड़ी हो रही थी १०+२की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर के मेडिकल की तैयारी में भी सफ़लता हासिल कर लिया था उसने और अच्छे मेडिकल कालेज में दाखिला भी मिल गया सुनंदा की मेहनत सफल हो गयी थी और अब परिवार भी आज बधाई देने घर पर आ रहा था।

अप्रकाशित और अप्रसारित ।

सर्वा धिक्कार लेखक के पास है।

मृणाल सिंह सतना मप्र।

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