मां आप तो इसका दर्द समझो – किरन विश्वकर्मा

नीलेश ऑफिस में आकर जैसे ही कुर्सी पर बैठा तो बगल में बैठी सहकर्मी अंजना का उदास चेहरा देखकर पूछ बैठा कि क्या हुआ!!! आज फिर कुछ हुआ क्या……..तभी अंजना उसे फाइल देते हुए कहती है कि नीलेश जी मैंने सारा वर्क पूरा कर लिया है बस आप जरा चेक कर लीजिएगा…….जैसे ही नीलेश ने उसके हाथों से फाइल ली तो उसके हाथों में घाव देखकर पूछ बैठा कि तुम्हारे हाथों में यह घाव कैसे हैं तुम मुझे अपना समझकर बता सकती हो!!! तुम्हारी आंखों को देख कर लग रहा है कि तुम बहुत रोई हो……नीलेश के इतना कहते ही अंजना आंखों में झिलमिलाते आंसुओं को रोकने के लिए जल्दी से वाशरूम चली जाती है, थोड़ी देर बाद जब वापस आती है तो नीलेश उससे कुछ नहीं पूछता है।

लंच टाइम में नीलेश उससे कैंटीन चलने की पेशकश करता है तो अंजना उसकी बात को मान लेती है कैंटीन में खाना खाते हुए नीलेश फिर से पूछता है तो अंजना बताती है उसके पति सुनील ने आज फिर उस पर हाथ उठाया…..खुद के लिए तो वह सब कुछ सह लेती पर आज उसने उसकी चार साल की बेटी पर भी हाथ उठा दिया यह कहते हुए वह रो पड़ती है।

क्यों उस बच्ची पर हाथ क्यों उठाया….नीलेश ने पूछा?

कल रात वह नशे में था जब मैं ऑफिस से घर गई तो बच्ची भूखी थी घर में दूध भी नहीं था बच्ची भूख के कारण बार-बार रोए जा रही थी। मेरी भी तबीयत कुछ सही नहीं थी तो मैंने इन्हें बाहर से दूध लाने के लिए कह दिया बस इसी बात का गुस्सा इन्होंने मुझ पर और बेटी पर निकाल दिया। मैंने इस नाकारा आदमी से शादी करके बहुत बड़ी गलती कर दी मुझे नहीं पता था कि यह मुझे धोखा देगा और खुद घर बैठकर मेरी कमाई पर ऐश करेगा चूंकि हम दोनों ने लव मैरिज की है तो मैं मायके भी नहीं जा सकती हूं मैं किससे अपना दुख दर्द कहूं….मेरा दुख समझने वाला कोई नहीं है यह कहते हुए अंजना की आंखों से फिर से आंसू बहने लगते हैं।




तो तुम क्यों इतना दुख सहन कर रही हो……क्यों नहीं उसे छोड़ देती हो….नीलेश कहता है।

छोड़कर कहां जाऊंगी मैं अब इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है. ….अब मैं बहुत परेशान हो गई हूं। अभी तक मैं उसके पास अपनी बेटी को छोड़ कर आ जाती थी पर कल जब उसने बेटी पर हाथ उठा दिया तो मैं अब उस पर भी विश्वास नहीं कर सकती हूं आज तो मैंने उसका स्कूल में एडमिशन करा दिया है और छुट्टी के बाद भी वही रहेगी जब मैं ऑफिस से जाऊँगी तब उसको ले लूंगी।

लंच टाइम खत्म हो चुका था यह देखते हुए दोनों ऑफिस में आकर फिर से काम में लग जाते हैं। दूसरे दिन रात में मोबाइल पर लगातार रिंग आ रही थी उसने देखा कि रात के ग्यारह बज रहे थे। जब तक उसने मोबाइल उठाया तो देखा कि फोन पर कॉल अंजना की पड़ी हुई थी उसने वापस कॉल किया तो अंजना ने रोते हुए बताया कि उसके पति ने उसको और उसकी बेटी को घर से बाहर निकाल दिया है और खुद ताला लगाकर कहीं चला गया है फोन भी स्विच ऑफ कर लिया है। यह सुनते ही निलेश बोला कि मैं अभी आ रहा हूं।

दरवाजे पर नीलेश के साथ एक महिला और उसकी बच्ची को देखकर नीलेश की मां निर्मला जी पूछती हैं….कि यह कौन है और इतनी रात में तू इसे घर में क्यों लाया है।

मां मुझे पहले अंदर तो आने दो फिर पूरी बात बताऊंगा यह कहते हुए वह अंजना को अंदर ले आता है और फिर निर्मला जी को पूरी बात बताता है तो निर्मला जी कहती हैं कि बेटा हम लोग इसे कैसे रख सकते हैं……लोग क्या कहेंगे यह ठीक नहीं है तुम इसके रहने की व्यवस्था कहीं और कर दो।




मां आज जो उसके साथ हो रहा है वही तो पापा ने हम लोगों के साथ भी किया तब आपने पापा का घर हमेशा- हमेशा के लिए छोड़ कर कितने मुश्किल हालातों का सामना कर मुझे पाल- पोस कर बड़ा किया आप से ज्यादा इसका दर्द कौन समझेगा….नीलेश बोला।

पर बेटा हम इसे भला कितने दिनों तक रख सकते हैं ऐसे निर्मला जी बोली।

तो फिर ठीक है मैं इससे शादी के लिए तैयार हूं तब तो यह यहां रह सकती है ना मां….मां आप मेरे इस फैसले में क्या आपकी रजामंदी है….मैं इस बच्ची को पिता का प्यार देना चाहता हूं…..यह सुनते ही निर्मला जी को अपना जीवन याद आ जाता है कि उन्होंने निलेश की परवरिश कितने मुश्किल हालातों में की आज उसी परिस्थिति में यह खड़ी है अगर उसका बेटा इसे जीवन साथी बनाना चाहता है तो मुझे भी उसका साथ देना चाहिए यह तो नेक काम है यह सोचते हुए निर्मला जब अंजना का हाथ लेकर नीलेश के हाथ में दे देती है और अंजना के सर पर हाथ रखते हुए कहती है …..हां मुझे मंजूर है तुम्हारा यह फैसला।

पर सबसे पहले थाने में इस आदमी के खिलाफ शिकायत दर्ज करानी पड़ेगी…. यह कहते हुए वह अंजना का हाथ पकड़कर थाने की ओर चल पड़ता है। 

किरन विश्वकर्मा

लखनऊ

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