माँ से माँ तक – गोविन्द गुप्ता

आसमान में तारे गिनती सुकन्या ईश्वर से कह रही थी कि मेरे किस जन्म की सजा आपने मुझे दी कि मुझे शादी के 10 वर्ष बाद भी कोई औलाद नही दी,और बस 2 बूंद आंसू छलके जमीन पर गई पड़े ,

यही क्रम विवाह के एक वर्ष बाद से हर रात चल रहा था,डॉक्टरों का हर प्रयास निष्फल और दुआओं का निष्प्रभावी होना यही जीवन का अंग बन गया था,

सुवह सुकन्या जल्दी उठी विवाह की वर्षगांठ थी तो सोंचा इस वर्ष अनाथालय में बच्चो के साथ कुछ पल गुजारेंगे,

अनाथालय के गेट पर ही प्रबंधिका ने स्वागत किया और फिर बच्चो से मुलाकात के लिये अंदर गई ,छोटे छोटे बच्चे बच्चियो को देख मन मे उल्लास भर गया सभी बच्चों को कपड़े,खाने का सामान आदि देते देते एक छोटी सी लड़की रिद्धिमा उसके पास आई और उंगली पकड़ ली ,सुकन्या का मातृत्व प्रेम जाग उठा उसने तुरंत उसे गोद मे उठा लिया चूमने लगी और भाव विह्वल हो गई,



चलते समय बार बार वह उसे निहार रही थी जैसे कुछ छूट गया था,

ऑफिस में पहुंचकर पता किया तो पता चला केदारनाथ जी की आपदा में पूरा परिवार समाप्त हो गया था और यह बच्ची ही बची थी जिसे रिश्तेदारों ने अनाथालय में लाकर दे दिया कभी मुड़कर देखने भी नही आये आखिर बड़ी होगी तो शादी करनी होगी पढ़ाई पर खर्च होगा मुआवजा भी खुद लोगो ने ही ले लिया इसके नाम पर सुनकर आंख भर आईं सुकन्या की और आंखों में चमक भी शायद कुछ निर्णय ले लिया था,

प्रबंधिका को कहा कि इस बच्ची का एडमिशन कराइये सम्पूर्ण खर्च हम करेंगे पर इसे पता नही चलना चाहिए बस कभी कभी मिलने चले जायेंगे,

बच्ची का एडमिशन हो गया पढ़ने में तेज थी तो हर वर्ष प्रथम आती और शील्ड मिलती तो आनाथालय में भेज दी जाती,

सुकन्या उस शील्ड को चूम लेती थी जब भी अनाथालय जाती थी,

फिर उच्च शिक्षा हेतु विश्वविद्यालय में एडमिशन हुआ और अपनी प्रतिभा के बल पर पीसीएस बन गई,ओर नियुक्ति भी एक बड़े महानगर में हो गई,



चूंकि अनाथालय प्रबंधिका को पता था वह किस शहर में है तो एक दिन सुकन्या से कहा मेम आइये चलते है एक काम है शहर में आप भी चलिये एक नई अधिकारी आई है सुना है बहुत अच्छी है उन्हें सम्मानित करवाना है,

आपसे अच्छा कौन होगा,

सुकन्या चल पड़ी रास्ते भर सोंचती रही कि वह बेटी भी अब बड़ी हो गई होगी कितनी पढ़ाई की होगी इधर एक वर्ष से फीस भी नही गई ,यह सोंच ही रही थी कि सरकारी आवास आ गया उपजिलाधिकारी ,रिद्धिमा अग्रवाल,

गार्ड अंदर ले गया दोनो को और अतिथि रूम में बिठाया ,

थोड़ी ही देर में एक बहुत सुंदर नव यौवना आत्मविश्वास से भरी हुई अतिथि रूम में प्रवेश की और आते ही सुकन्या की ओर बढ़ी सुकन्या कुछ संकोच करने लगी कि आखिर यह इधर ही क्यो आ रही है,

आते ही बोली मम्मी आप कितनी निष्ठुर हो कभी मिलने भी नही आई अपनी बेटी से क्या कभी मेरी याद नही आई आंटी से जब भी पूंछा मेरी माँ कहाँ है तो कहने लगी जब तुम्हारी पोस्टिंग हो जायेगी तभी मिलेंगी क्योंकि वह नही चाहती कि तुम्हारी बधाई खराब हो ,हर समय मम्मी की याद में नींद न खराब हो,मुझे हर बार सर्टिफिकेट और स्मृतिचिन्ह को चूमते हुये फोटो भेजती रही ,

सुकन्या की आंखों से आंसू निकले रुकने का नाम नही ले रहे थे और लिखते लिखते मेरे भी,

शायद मातृत्व की इक्षा पूरी हो गई सुकन्या की एक सुंदर सुशील,कामयाब बेटी के साथ ही ,

माँ से माँ बनने तक सुकन्या का सफर यही से खुशियों भरा हो गया ,,

सन्देश यदि आप माँ नही बन सकी तो समाज ताने दे तो देता रहे आप किसी की जिंदगी सवार दो हो सकता है माँ का दर्जा खुद व खुद मिल जाये,,

लेखक 

गोविन्द गुप्ता,मोहम्मदी लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश

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