लम्हा लम्हा जिंदगी – सुधा जैन

आध्या बहुत ही परफेक्ट लड़की है .बचपन से ही उसने अपने पापा को हर कार्य में परफेक्शन लाते हुए देखा है ,अतः उसमें भी यह गुण अनायास ही आ गया… वैसे परफेक्शन होना अच्छी बात भी है …व्यवस्थित तैयार होना, घर को व्यवस्थित रखना, व्यवस्थित रूप से स्कूल जाना, अपना होमवर्क करना, किताबें बस्ता सभी यथा स्थान रखना, यह सब चीजें व्यवस्थित करते हुए आध्या भी एकदम परफेक्ट बन गई ….

अच्छे से एजुकेशन प्राप्त किया, इंजीनियरिंग के बाद  अच्छी आईटी कंपनी में जॉब लग गई… और वह मुंबई आ गई….

आध्या के कॉलेज के दिनों की है सहेली आरजू,

मस्त मौला, बिंदास लड़की है अपने सपनों को जीना चाहती है, चाहती है उगते हुए सूरज को देखूं, बहती हुई नदियां को देखूं, नदियों की कल कल को महसूस करूं, ठंडी सी बयार में आनंद लूं,

कोई काम समय पर ना भी हो तो कोई बात नहीं, कर लूंगी जिंदगी कोई भागे थोड़ी जा रही है ….एक एक लम्हे का आनंद लेना चाहती है वह …इसीलिए कुछ पीछे भी छूट जाता है,…. कालेज के बाद उसका सिलेक्शन तो किसी कंपनी में नहीं हुआ, लेकिन अपने सपनों का पीछा करते हुए वह आध्या के पास मुंबई आ गई ,और थोड़ी कोशिश के बाद मुंबई की कंपनी में उसकी जॉब लग गई ….

दोनों सहेलियां एक ही फ्लैट में रहती  हैं ,दोनों स्वभाव अलग होने के बाद भी दोनों की दोस्ती बड़ी पक्की है, जिंदगी देखने का दोनों का नजरिया अलग होने के बाद भी उन दोनों की बहुत बनती है ….

आध्या यहां पर भी सुबह जल्दी उठती है, अपना सभी का व्यवस्थित रूप से करके अच्छे से तैयार होकर ,ऑफिस के लिए निकल जाती है …ऑफिस में भी बहुत ही अच्छी तरीके से अपना सारा काम करती है …आरजू भी उठती है ,काम करती है, लेकिन हर दिन सुबह जल्दी उठना, उसी रूटीन से ट्रेन में जल्दी से भाग कर बैठना, ऑफिस में काम, प्रोजेक्ट, बॉस की डांट, बड़ी-बड़ी बिल्डिंग  और  नीरस होती जिंदगी, सड़कों पर इतने वाहन कि सड़कें दिखाई ही नहीं दे ,हर तरफ भागम भाग, ऐसा लगता है, जैसे जिंदगी को जी नहीं रहे, जिंदगी से भाग रहे हैं….. इस दमघोटू  वातावरण में आरजू के मन में बहुत घुटन सी होने लगती ,और मन करता कि क्या यही है जिंदगी?

शनिवार रविवार छुट्टी के दिन दोनों सहेलियां मेट्रो मैं बैठकर घूमने निकल जाती… बहुत सारी बातें करती, जहां आध्या की सोच है, अच्छा बचपन, अच्छा कॉलेज ,अच्छी नौकरी, और अच्छा सा दोस्त मिल जाए, अच्छा सा घर, उसे अच्छे से सजाएं, सुंदर सा ड्राइंग रूम, किचन, बालकनी, गमले ,छोटा सा झूला, प्यारा सा सपनों का सुंदर सा संसार ऐसा घर हो, प्यारी सी गाड़ी हो, … अच्छी सैलरी वाला पति हो ,सब कुछ पर्फेक्ट हो तो जिंदगी कितनी अच्छी रहे ,,…


जबकि आरजू कहती, सपने देखना अच्छी बात है महत्वाकांक्षी होना भी अच्छी बात है  लेकिन उसके पीछे हम जिंदगी जी ही नहीं पाए, यह तो कोई अच्छी बात नहीं, और ऐसा जरूरी थोड़ी है कि हर अच्छी सैलरी वाला व्यक्ति ही अच्छा होता है.. कम कमाने वाला जिसका “सेंस आफ ह्यूमर” अच्छा हो ,वह “हुमन बीइंग” हो, अपने पत्नी को प्यार करने वाला हो, उसकी इज्जत करता हो, सम्मान करता हो, भले ही पैसे कम कमाता हो तो भी जिंदगी मजे से चल सकती है…

उसे लगता है बहुत पर्फेक्ट जिंदगी भी अच्छी नहीं होती, हम जिंदगी का आनंद ही नहीं ले  पाते, आरजू समझती थी कि हमें किसी को भी जज  करने का कोई अधिकार नहीं है… इस तरह से दोनों सहेलियों के अपने-अपने दृष्टिकोण हैं थे ..

इस तरह से सहेलियों के अपने रूटीन चल रहे  है …

इन दिनों आध्या बड़ी खुश नजर आ रही  है अपने ही कंपनी में आदर्श जिसने आईआईटी की थी है कंपनी में आया है  आध्या और आदर्श की दोस्ती बढ़ने लगी, दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे,…

आरजू भी अपनी ऑफिस के नीचे एक कैंटीन में रोज चाय और कुछ ना कुछ स्नेक्स जरूर लेती ,और कैंटीन का जो मालिक अखिल पढ़ा लिखा और अच्छा लड़का है, आरजू और अखिल दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे…  दोनों सहेलियों ने अपने दिल की बात एक दूसरे से कहीं ..आध्या को यह बात कम समझ में आई कि अखिल एक कैंटीन चलाता है, और तुम उसको पसंद करने लगी हो, तुम्हारा भविष्य तो सिक्योर नहीं है, लेकिन आरजू ने कहा ,”प्यारी आध्या भविष्य को सिक्योर करने के चक्कर में मैं अपने वर्तमान को क्यों बिगाड़ दूं, और अच्छा भला तो है अखिल, कमाता भी है ,मुझे पसंद ही करता है, और मुझे तो यह कंपनियों की जॉब अच्छी भी नहीं लग रही है, मैं तो सोच रही हूं, यह जॉब छोड़कर  अखिल के साथ कैंटीन में ही काम कर लूंगी.. आध्या उसकी बात पर हंसने लगी…

थोड़े दिनों बाद जब आध्या ऑफिस से घर आई, तो उसका मूड बहुत उखड़ा हुआ था, वह कुछ बात नहीं करना चाह रही थी, आरजू ने उस वक्त तो कुछ नहीं पूछा…. लेकिन अगले ही दिन सेटरडे था.. दोनों सहेलियां हमेशा की तरह घूमने निकल पड़ी, आरजू ने अपनी प्यारी सहेली आध्या के मन को पढ़ने की कोशिश की …

आध्या बोली आदर्श से मेरी दोस्ती टूट  गई, क्यों?

अरे क्या बताऊं तुम्हें? हर बात में रोक-टोक, ऐसा मत पहनो यह अच्छा नहीं लगेगा, यह मत करो, वह मत करो और ऐसी कई बातें हैं, जो मेरे दिल को चुभ गई है, मेरी प्यारी सहेली आरजू तुम सच कहती थी, पैसा या अच्छी सैलरी खुशियों का मापदंड नहीं है ,अपने सपनों को पूरा करने में भले ही वक्त लगे, लेकिन हमें उस बात के लिए तैयार रहना चाहिए, और बहुत अच्छे पैकेज से हम खुशियों को खरीद लेंगे, यह बिल्कुल सच नहीं है, अपने सपनों को पूरा करने के लिए हम हसेंगे भी, मुस्कुराएंगे भी, प्रकृति का आनंद भी लेंगे ,भले ही जीवन जीने के लिए सुविधाएं थोड़ी कम हो तो चलेगा ,लेकिन एक दूसरे के प्रति मान सम्मान ,आदर प्रेम, एक दूसरे के लिए थोड़ी स्पेस जरूरी है ….आध्या का मन भी हल्का हो गया था… आध्या और आरजू दोनों एक दूसरे से गले मिलकर अपने सपनों को   संजोने  लगी…

सुधा जैन

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