लगन – नताशा हर्ष गुरनानी

“पापा पापा आप ना मम्मा को कुछ कहते क्यो नहीं हमेशा मेरे साथ भेदभाव करती हैं। भैया के लिये हर चीज़ लेकर आती हैं और मेरे लिए कुछ नहीं” 

“भैया के लिये सब कुछ और मेरे लिए कुछ भी नहीं” रोते रोते पीहू बोली

“अरे अरे मेरी गुडिया रानी ऐसे रोते नही, पापा है ना, पापा लेकर आयेंगे अपनी गुडिया के लिए बताओ क्या चाहिए तुम्हें” विशाल नें पीहू को प्यार करते हुये पूछा

“पापा मुझे पेन्सिलें चाहिए, हर रंग की, मेरा मतलब रंगीन पेन्सिलें” कहते कहते पीहू का चेहरा खिल गया और विशाल का मुरझा गया।

रोहन कहता है “तू क्या करेगी इन रंगीन पेन्सिलो का,”  “भैया मुझे भी चित्रकारी करनी है, मुझे पेन्सिलें चाहिए” पीहू बोली।

 “पर कैसे” कहते कहते रोहन चुप हो गया।

बाहर आके विशाल ने देखा तो ममता की आँखों से आंसू बह रहे थे। कुछ कहने की दोनो में हिम्मत नही थी बस एक दूसरे को गले लगाया और एक दूसरे के आंसू पोछे।

दूसरे दिन पीहू की वही जिद की रंगीन पेन्सिलें चाहिए मतलब चाहिए। आखिर हार कर विशाल रंगीन पेन्सिलें ले तो आया पर……

पेन्सिलें देखकर पीहू तो ऐसे नाची जैसे जंगल में पहली बारिश देखकर मोर नाचता है।

पर अब आगे क्या विशाल और ममता इसी सोच में डूबे थे 

पर कुछ पल में ही कुछ ऐसा देखकर दोनो हक्के बक्के रह गये और अविरल आँखे बहती रही।

पीहू पैर की उंगली मे पेन्सिल दबाये कागज पर पूरी लगन के साथ चित्रकारी कर रही हैं और साथ ही साथ गाना भी गा रही है चंदा चमके चम चम  चीखे जो चन्नाचोर

तब विशाल, ममता और रोहन उसे गले लगाकर यही गाना गाने लगे चींटी चाटे चीनी चटोरी चीनीखोर

नताशा हर्ष गुरनानी

भोपाल

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