क्योकि मैं अब माँ हूँ – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“मम्मा मै कपड़े कहां बदलूं ?” बुआ के यहां शादी में आईं बारह साल की श्रीति अपनी मम्मी स्नेहा से पूछती है।

” बेटा यहां सब औरतें ही तो हैं और सब यहीं बदल रहे तुम भी यहीं बदल लो ना अब कोई और कमरा नहीं है यहां शादी का घर है बेटा समझो बात को !” स्नेहा ने श्रीति को समझाते हुए कहा।

” मम्मा आपको पता है मैं किसी के सामने नहीं बदल सकती कपड़े फिर भी बोल रहे हो !” श्रीति नाराज़ होती हुई बोली।

” जानती हूं बेटा पर कभी कभी एडजस्ट करना पड़ता है !” स्नेहा बोली।

” नहीं मम्मा मैं कभी एडजस्ट नहीं कर सकती इस मामले में !” श्रीति ये बोल अपने कपड़े उठा बाथरूम में चली गई और किसी तरह वहीं बदल कर आईं कपड़े।

वहीं श्रीति आज पंद्रह साल बाद खुद मां बनी है और अपने दो महीने के बच्चे को लेकर मायके आईं हुई है अपने छोटे भाई की शादी में।

” श्रीति ले बेटा मुन्ना रो रहा है भूखा है शायद !” स्नेहा काम करती श्रीति को बच्चा पकड़ाती हुई बोली।

श्रीति बच्चे को गोद में ले इधर उधर देखने लगी सारे कमरे मेहमानों से भरे थे और सभी कमरों में औरतें आदमी सब थे। बच्चा भूख से बिलबिला रहा था बोतल का दूध श्रीति ने अभी शुरू नहीं किया था। हार कर श्रीति वहीं एक कोने में बच्चे को दूध पिलाने लगी । वहां मौजूद सभी रिश्तेदार श्रीति को हैरानी से देख रहे थे क्योंकि सब श्रीति की आदत से वाकिफ थे।  पुरुष रिश्तेदार खुद से उठ कर बाहर चले गए पर श्रीति इन सबसे बेखबर बच्चे को दूध पिलाने में व्यस्त थी।

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” अरे बेटा मैं तो कमरा खाली करवाने गई थी तुम्हारे लिए !” तभी स्नेहा वहां आ बोली।

” मम्मी मुन्ना भूख से बेहाल था तो क्या कमरा खाली होने के इंतजार में इसे रोने देती !” श्रीति बेझिझक सबके सामने चुन्नी ढक कर बच्चे को दूध पिलाती बोली।

” पर बेटा तुझे किसी के सामने कपड़े तक बदलना पसंद नहीं था और अब….!” स्नेहा आश्चर्य से कभी श्रीति को कभी चारों तरह फैले रिश्तेदारों को देखती हुई बोली।

” मम्मी तब मैं एक लड़की थी अब एक मां हूं मां के लिए अपने बच्चे से बढ़कर कुछ नहीं होता फिर वो कैसे अपने बच्चे को भूखा रोते देख सकती है सिर्फ इसलिए कि उसके आस पास भीड़ है नहीं मां अपने बच्चे को दूध पिलाना शर्म की बात नहीं बल्कि गर्व की बात है वैसे भी मुन्ना के आने के बाद मैने एडजस्ट करना सीख लिया है। !” श्रीति मुस्कुरा कर बोली।

” सही कहा बेटा तूने लड़की जब मां बन जाती है उसे बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है अपने बच्चे के लिए यहां तक कि ऐसे मौकों पर शर्म का गहना भी । क्योंकि उस वक़्त औलाद की भूख मिटाना ही मां के लिए सबसे जरूरी होता है !” स्नेहा बेटी का माथा चूमते हुए बोली।

” मम्मी औलाद से बढ़कर कुछ नहीं ये भी तो मैने आपसे ही सीखा है …. अब आप संभालिए अपने नाती को इसका पेट भर गया अब मैं बेफिक्र हो बाकी काम देख सकती हूं !” मुन्ने को दूध पिला श्रीति मां को बच्चा पकड़ाती बोली।

स्नेहा मुन्ने को ले रिश्तेदारों के बीच आ गई और श्रीति अपने कपड़े ठीक कर काम में लग गई। मुन्ने और श्रीति दोनों के चेहरे पर संतोष था । मुन्ने को पेट भर जाने का संतोष और श्रीति को बच्चे का पेट भर देने का संतोष।

दोस्तों ये सच है एक लड़की जब मां बनती है उसमे बहुत बदलाव आता है एक छुई मुई सी लड़की अपनी औलाद की खातिर सब सह भी जाती है और अपने बच्चे के लिए शर्म का गहना भी त्याग देती है क्योंकि अपने बच्चे को भूखा नहीं देख सकती। आपके सामने भी कई बार ऐसी स्थिति आईं होंगी और अपने भी अपने बच्चे की भूख को महत्व दिया होगा। 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

#औलाद के मोह के कारण वो सह गई

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