क्या तूने सास को गोद लिया है? – संगीता अग्रवाल

“बेटा कहां रह गई तू तो आज आने वाली थी ना यहां ?” शारदा जी अपनी विवाहित बेटी शालिनी को फोन करके बोली।

” हां मां वो मांजी की तबियत अचानक खराब हो गई तो अस्पताल लाएं है उन्हे बस !” शालिनी बोली।

” अरे बहाने होंगे सब होती है कुछ सासें बहु के मायके जाने के नाम पर बहाने करती हैं !” शारदा जी बोली।

” मां कैसी बात कर रही हो आप आप भी तो किसी की सास बनोगी मांजी की तबियत सच में खराब है एक तो पहले ही गठिया का दर्द रहता है !” शालिनी बोली।

” ठीक है जैसे ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिले तू आ जाइयो हम इंतजार करेंगे !” शारदा जी ने बात खत्म करते हुए कहा।

” हम्म देखती हूं कैसी स्थिति रहती है उनकी तभी कोई फैसला ले पाऊंगी अभी रखती हूं दवाई लेने जाना है मुझे बाय!” शालिनी ने कहा और फोन रख दिया।

दो तीन दिन तक शालिनी की सास उमा जी अस्पताल में रही उनके पैर पैरालाइज हो गया था इसलिए वो खुद से उठ बैठ नही पाती थी इसलिए शालिनी ने मायके जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया और तन मन से सास की सेवा में जुट गई। समय से उनकी मालिश करती उन्हे व्यायाम करवाती। हर वो उपाय करती जिससे उमा जी खुद के पैरों पर खड़ी हो सकें।

” कैसी है बेटा तू कम से कम दो दिन को तो आजा बच्चों की छुट्टियां खत्म होने वाली हैं अब तो !” एक दिन शारदा जी ने फोन पर कहा।

” मां आप मम्मी जी को देखने क्यों नही आई आपकी बेटी की सास हैं वो बीमार हैं आपका फर्ज बनता है उन्हे देखने आने का !” शारदा जी की बात नजरंदाज करते हुए शालिनी शिकायत भरे लहजे में बोली।




” हां …वो मैं सोच ही रही थी आने की चल तेरे पापा से बात करती हूं फिर आते हैं हम जल्दी ही !” शारदा जी शालिनी की बात से हड़बड़ा कर बोली। 

” ठीक ही तो कह रही है शालिनी हमारा फर्ज है उसके ससुराल में कोई बीमार हो तो देखने जाना !” जब शारदा जी ने अपने पति विश्वनाथ को बताया तो उन्होंने कहा।

” हां चलिए कल ही चलते है मुझे अपनी बच्ची से भी मिलना है बेचारी ऐसे पचड़ों में फंसी है कि दो दिन भी पीहर आ आराम नही कर सकती।” शारदा जी बोली पर विश्वनाथ जी उन्हे सुनने को वहां नही थे वो तो कपड़े बदलने अंदर चले गए थे।

” बेटा ये क्या हाल बना रखा है तूने ?” अगले दिन शालिनी के घर उसे देख शारदा जी बोली।

” मां मांजी की देखभाल में सारा वक्त बीत जाता है इसलिए अपने लिए वक्त ही नही बस एक बार मांजी को उनके पैरों पर खड़ा कर दूं तभी चैन लूंगी !” शालिनी सास की मालिश करते हुए बोली।

” जीती रह मेरी बच्ची तूने मेरा सीना गर्व से भर दिया ऐसे ही सेवा करती रहो तुम्हे इसका फल जरूर मिलेगा !” विश्वनाथ जी बेटी के सिर पर हाथ रखकर बोले फिर नाती नातिन साथ खेलने लगे।

” तेरी ननद नही आई अपनी मां की देखभाल को क्या सारा ठेका तूने ही लिया है ?” शारदा जी पति के हटते ही बेटी से बोली।

” मां कैसी बात कर रही हो वहां दीदी बच्चों की परीक्षा में व्यस्त हैं कॉलेज की परीक्षा चल रही उनके बच्चों की वरना वो जरूर आती वैसे भी अपनो के काम करना कोई ठेका लेना थोड़ी होता !” शालिनी तनिक गुस्से से बोली।




” क्यों तूने क्या अपनी सास को गोद ही ले लिया जो सारा काम तू करेगी तेरी ननद तो बस बहाने कर रही और जब माल़ मिलने की बारी आएगी सबसे पहले आएगी !” शारदा जी फिर बोली।

” मां प्लीज धीरे बोलो और हां यही समझो मांजी को मैने गोद लिया है उनकी सारी जिम्मेदारी मैं खुशी खुशी उठा रही और आप मेरा मनोबल नही बढ़ा सकती तो ऐसे भी मत बोलिए!” शालिनी हल्के गुस्से में बोली।

” वाह बेटा तेरी जैसी बेटी तो किस्मत से मिलती ही है तेरे जैसी बहू भी नसीब वालों को मिलती है ईश्वर करे हमारे घर भी तेरे जैसी बहू आए बस ऐसे ही सास का ख्याल रखना अपनी हम चलते हैं अब !” विश्वनाथ जी पत्नी और बेटी की बात सुन बोले। उधर बिस्तर पर लेटी उमा जी मन ही मन सोच रही थी जरूर पिछले जन्मों के अच्छे कर्म है जो शालिनी बहु के रूप में मिली । उनके दिल से ढेरों आशीर्वाद निकल रहे थे।

दोस्तों सास ससुर की सेवा करना हर बहू का फर्ज है यहां कुछ लोग ये भी कहेंगे सारे फर्ज बहु के लिए क्यों पर एक बार अपने दिल पर हाथ रखकर सोचना ऐसी स्थिति में आप क्या करते। सास को गोद ले उसकी देखभाल करते या यातिमों की तरह छोड़ देते।

आपकी दोस्त

संगीता

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