नयी राह – नीलिमा सिंघल

सागर के किनारे बैठी हुई सुगंधा व्याकुल थी क्यूँ,,,,शायद खुद भी नहीं जानती थी, 

श्याम से उसका रिश्ता पति पत्नी जैसा ही था दोस्ती तो बिल्कुल नहीं नहीं,,जब भी अपने दिल की बात कहने की कोशिश करती थी श्याम या तो बात बदल देता था या उसको डांट कर चुप करवा देता था, 

ऑफिस मे लगातार लिए गलत फैसलों ने जैसे उनका जीवन चक्र भी रोक सा दिया था, 

जेवर घर सब तो बिक गया था सुगंधा कटु श्याम के करते चुकाने के चक्कर मे,,पर श्याम फिर भी उसका वो साथी नहीं बन पाया था जिसकी प्यास ज्यादातर हर लड़की को होती है,,,

जब भी ज्यादा बैचैन होती सागर के किनारे खड़ी हो जाती थी,,,,,और मन का सारा गुबार समंदर की लहरों के साथ साथ बह जाता था,,,

श्याम ने जब घर का किराया राशन के पैसे देने के लिए भी मना कर दिया था तब उसका गुबार पहली बार श्याम के सामने निकला था पर श्याम निर्लिप्त खड़ा रहा,,,बोलते बोलते सुगंधा थक गयी पर श्याम के माथे पर कोई शिकन तक नहीं आयी थी बल्कि उसने एक ब्लास्ट सा कर दिया ये बोलकर कि जल्दी ही वो सुगंधा को तलाक देने वाला है और कियारा 7 साल की अपने बच्ची की कस्टडी भी नहीं लेगा,,,

घर के काग़ज़ों के साथ साथ उसने तलाक के पेपर भी साइन कर दिए थे, ,,,श्याम ने एक बार फिर हमेशा की तरह उसको धोखा दे दिया ,,,,श्याम पर भरोसा करके बिना पढ़े ही सिग्नेचर करने का दुख सुगंधा को खाए जा रहा था,,,,,,,,और चली आयी थी समंदर किनारे। ।।।।

 

समय देखा रात के 2 बज रहे थे कियारा के लिए उसको लौटना था तो वापस घर चली आयी,,

 

देखा घर खुला हुआ था अंदर आई अपने कमरे का दरवाज़ा बंद देखकर बिना खटखटाए वापस आकर कियारा के कमरे मे सो गयी,,

 


9 बजे उसकी आंख खुली हड़बड़ा कर उठी आज कियारा  का स्कूल भी छुट गया था,,बाहर आयी तो उसके कमरे का दरवाज़ा अब भी बंद था,,,ऐसा कैसे हो सकता है श्याम तो 5 बजे उठने का आदि था,,

कमरे के बाहर आकर थोड़ा जायजा लिया पर कैसी भी हलचल नहीं सुनाई दे रही थी सुगंधा ने दरवाज़ा पीट दिया पर फिर भी सब शांत,,,,,,सुगंधा को समझ नहीं आ रहा था श्याम कमरे मे है तो दरवाज़ा क्यूँ नहीं खोल रहा,,बाहर है तो कमरा बंद कैसे है। ।।

बाहर आकार बढ़ई को तलाशा और बुला कर लाई,,बढ़ई ने थोड़ी मेहनत के बाद दरवाज़ा खोल दिया,,,,,अंदर से कुंडी बंद थी,,जैसे ही सुगंधा ने अन्दर कदम रखा चीख पड़ी सामने अस्त व्यस्त हालत मे श्याम लेता पड़ा था,,उसने जल्दी से डॉक्टर को फोन किया,,

डॉक्टर आए और जांच के बाद कहा कि श्याम अब जीवित नहीं है पास ही जहर की शिशि पड़ी थी,,,

श्याम ने खुद को मार डाला पर क्यूँ??

पोस्टमार्टम मे भी जहर से मौत की पुष्टि हो गयी,,

 

सुगंधा को बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था कल उसको तलाक देने वाला श्याम रात मे जहर खाकर आत्महत्या कैसे कर सकता है,,

डॉक्टर ने सुगंधा को एडमिट किया पर जैसे वो पागल हो गयी सबको घूरती रहती दवाईयां बेअसर हो रही थी डॉक्टर परेशान थे ,,,

कियारा अपने नन्हे नन्हे हाथो से माँ का ध्यान अपनी ओर खिंचने का प्रयास करती रहती,,पर सुगंधा जैसे पूरे होश खो बैठी थी,,,

 

एक दिन हॉस्पिटल मे अंकित आया,,,,अंकित जिसके ऑटो मे बैठकर सुगंधा ज्यादातर समंदर किनारे जाया करती थी,,,रोजाना के सफर मे जान पहचान हुई और दोनों दोस्त बन गए थे। ।

 

अंकित एक किन्नर था पर समाज ने उसको नहीं अपनाया और किन्नरों के सरदार के पास भेज दिया था 8 साल की उम्र मे ही भाग निकला और जगह जगह काम करते हुए अपनी जिंदगी गुजर रहा था,,

दौड़ भाग की जिंदगी मे वो मुंबई आ गया और यही बस गया था 18 साल की उम्र मे उसने कर चलाना सीखा और अब 25 साल की उम्र मे अपनी टैक्सी लेकर खुद ही सड़कों पर निकलता था ,,,, ऐसे ही एक बरसात के दिन उसकी नजर हैरान परेशान गोद मे बच्चे को उठाए सुगंधा पर पड़ी जो टैक्सी रोकने कटु प्रयास कर रही थी पर कोई नहीं रुक रही था,,,अंकित आगे आया और टैक्सी सुगंधा के सामने रोक दी,,सुगंधा ने जैसे आँखों से शुक्रिया बोला और टैक्सी मे बैठ गयी,,,कियारा बुखार से तप रही थी बारिश की वज़ह से बुखार और बढ़ गया था,,,,

 


अंकित ने दोनों को घर छोड़ा और अपनी झुग्गी मे चला आया,,,

4-5 दिन बाद अंकित ने एक बार फिर सुगंधा को देखा आ वो अकेली थी,,अंकित टैक्सी लेकर उसके पास आया,,,सुगंधा टैक्सी मे बैठ गयी और समंदर किनारे चलने को बोला,  अंकित सुगंधा को लेकर समंदर किनारे पहुंचा और उसको उतार कर दूसरी सवारी लेके चला गया 3 घण्टे बाद उसी सड़क पर आया तो सुगंधा को बैठे हुए पाया,, ऑटो रोका और उसको देखने लगा,,,,

अंकित को जब 10 मिनट हो गए खड़े खड़े तो वो ऑटो से उतरकर सुगंधा के पास पहुंचा और उसको बोला “मैडम कहीं जाना हो तो मैं छोड़ दूँ, अब बस घर ही जाना है,,,अंकित की आवाज से सुगंधा पलटी और अंकित की और देखते हुए उसके ऑटो की तरफ बढ़ गयी,,,,,,,रास्ते मे सुगंधा ने उसको बोला मैं लगातार रोज ही यहां आती हूं क्या तुम मुझे pick एंड ड्रॉप कर लिया करोगे,,

कभी-कभी ऑटो टैक्सी की बहुत मुश्किल हो जाती है। 

अंकित के हाँ बोलते ही सुगंधा ने 10 हजार रुपये निकाले और अंकित को पकड़ा दिए,,

आज तक अंकित पर किसी ने भी इतना भरोसा नहीं जताया था,,,,

धीरे-धीरे रोज की मुलाक़ातों ने उन्हें कब ड्राइवर और सवारी से दोस्त बना दिया उन्हें खुद पता नहीं चला,,,अंकित के किन्नर होने के राज का जब सुगंधा को पता चला तो हैरान तो जरूर हुई दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पड़ा था। 

 

सुगंधा की हालत देखकर अंकित जैसे रो ही पड़ा बहुत मुश्किल से खुद को सम्भाला और सुगंधा के पास जाकर खड़ा हो गया,,,, 

सुगंधा ने जैसे ही अंकित को देखा उसका दर्द उसके चेहरे पर सिमट आया ,,,  सुगंधा का निस्तेज चेहरा इस बात को बता रहा था कि वो अभी तक कितने गहरे सदमे में है,,,,,,

डॉक्टर ने अंकित को बोला इन्हें रुलाया जाना बहुत जरूरी है 20 दिन हो गए इनके पति को मरे हुए पर ये बेज़ान सी रहती है घर मे काम करने वाली आया कभी-कभी इनकी बेटी को यहां ले आती है पर उसको देखकर भी ये सदमे से बाहर नहीं आ पायी,,,,,   सुनकर अंकित पलटा और बाहर आ गया क्यूंकि अपनी दोस्त की हालत देखनी अब बहुत मुश्किल हो रही थी। 

 

अगले दिन अंकित फूलों का गुलदस्ता लेकर हॉस्पिटल आया और स्टूल पर बैठकर बोला ” सुगंधा जी क्या मेरा आना आपको अच्छा नहीं लगा, क्या मेरे लाए फूल बेकार है,,,

अंकित रोज आता और 3 महीने बीत गए लेकिन सुगंधा सदमे से बाहर ही नहीं आ रही थी,,,,,,,

उसको यही बात खाए जा रही थी कि श्याम उसको तलाक देने वाला था तो उसने आत्महत्या क्यूँ की,,,,

 

अंकित अपनी दोस्त को खोते हुए देख रहा था फिर अचानक एक vecancy का ad उसके हाथ लगा उसने पेपर लिया और हॉस्पिटल पहुंचा और आज अपने साथ कियारा को भी अपने साथ ले आया उसको आज विश्वास था कि आज वो अपनी दोस्त को वापस ले कर आएगा चाहे कुछ हो जाए। 

सुगंधा दरवाजे की तरफ ही देख रही थी जब उसको कियारा दिखी बहुत कमजोर लग रही थी अगले पल अंकित दिखाई दिया सवालिया निगाहों से देख रहा था उसको,,,,,, अंकित अंदर आया और स्टूल पर बैठ गया उसने गोदी में कियारा को बिठा लिया और हाथ के पेपर को सुगंधा की तरफ बढ़ाया,,,,,,,,,,जब सुगंधा के हाथ नहीं बढे तब अंकित ने बोला “सुगंधा तुम मुझे दोस्त मानती हो या मेरे किन्नर होने की वज़ह से दोस्ती तोड़ना चाहती हो “

सुगंधा अंकित की तरफ देखती रह गयी फिर उसके खामोश लबों से आवाज निकली “नहीं अंकित तुम जैसा दोस्त तो मैं बिल्कुल खोना नहीं चाहती मेरी गुड़िया को तुमने प्यार दिया सम्भाला मैं तुम्हें,,,,,,,,”बस बस बस   अंकित ने सुगंधा को चुप करते हुए बोला क्यूंकि डॉक्टर ने बताया था जब सुगंधा अपना मौन तोड़े तब ज्यादा देर बोलना भी खतरनाक हो सकता है,,,,

अंकित ने हाथ के पेपर सुगंधा को पकड़ाए और कियारा को लेकर चला गया,,,

 

सुगंधा ने पेपर देखे और पढ़ने शुरू किए वो जॉब vecancy के पेपर थे,,,,,,

 


अंकित ने फिर एक सच्चे दोस्त का फर्ज निभा दिया था और अंकित बहुत खुश था आज 4 महीने से ज्यादा लम्बे समय के बाद सुगंधा बोली थी उसने बाहर खड़ी सुगंधा की मेड को कियारा को दिया और उन्हें घर ड्रॉप किया। 

 

अगले दिन जब अंकित आया तो सुगंधा बिल्कुल ठीक थी और घर जाने को एकदम तैयार,,,,,एक ही रात मे ये बदलाव देखकर अंकित को अच्छा लगा उसने पूछा ” सुगंधा कैसे फील कर रही हो “

 

सुगंधा ने जवाब दिया “मैं बिल्कुल ठीक हुँ और नए सफर की तैयारी के लिए जो काम तुमने किया है उसका अहसान कभी नहीं भूल पाऊँगी:

 

“दोस्ती मे अहसान नहीं होता, सुगंधा, सिर्फ एहसास होता है , मैं खुश हूं लम्बे समय बाद तुम कियारा के साथ रहोगी “”

 

“आगे का सफर भी लम्बा और अंधकारमय है पर मैं अब हार नहीं मानूँगी  कभी ना कभी तो मुझे भी मंजिल मिलेगी ही,,”

“मंजिल मिलेगी,,रोशनी मिलेगी, खुशिया मिलेगी,, तुम्हें वो सब मिलेगा जिसकी चाहत करोगी “

 

“अंकित क्या तुम मेरे घर ने रह सकते हो मेरे साथ ” सुगंधा ने पूछा तो अंकित ने जबाव दिया 

“नहीं! सुगंधा  सब के लिए मुझे ऑटो वाला ही रहने दो वर्ना हमारी दोस्ती लोगों की आंखों का कांटा बन जाएगी,,,,,सभी को मेरा सच  नहीं मालूम इसीलिए दोस्ती कलंकित हो सकती है। ।।

 

अंकित ने डिस्चार्ज करवा कर सुगंधा को ऑटो मे बिठाया और घर तक ड्रॉप किया 

 

कौन कहता है कि आज के आधुनिक ज़माने मे सच्ची दोस्ती नहीं मिल सकती बस पहचान ने भर की देर होती है। ।।।

 

इतिश्री 

 

शुभांगी

 

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