कुटुंब – नीरजा नामदेव

रतन राजस्थान के एक छोटे से गांव से दिल्ली कॉलेज में पढ़ाई करने जाता है। वहां के माहौल में बहुत ही अंतर होता है। लेकिन वह धीरे-धीरे वहां के माहौल के अनुसार ढलने लगता है। वह पढ़ाई में तो होशियार रहता ही है साथ ही कॉलेज में होने वाली विभिन्न प्रतियोगिताओं में भी भाग लेता है। इस बार कॉलेज में वाद विवाद प्रतियोगिता होती है जिसका विषय होता है ‘संयुक्त परिवार और एकल परिवार में बेहतर कौन है’       एकल परिवार के पक्ष में विराट अपने तर्क रखता है। 

तब रतन संयुक्त परिवार के पक्ष में अपने तर्क रखता है जिसे विराट काट नहीं पाता ।रतन संयुक्त परिवार के पक्ष में कहता है”हमारा देश तो वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत को मानता आया है और संयुक्त परिवारों ने हमारी ग्राम्य संस्कृति के गौरव को बढ़ाया है।

जो घर संयुक्त परिवार का पोषक नहीं है उसकी शांति और समृद्धि सिर्फ एक भ्रम है।  संयुक्त परिवार से घर में खुशहाली होती है।

परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे के साथ रहते हैं, सुख-दुख बांटते हैं.  यह ग्रामीण संस्कृति की विशेषता है और आज भी कुछ परिवार ऐसे हैं जिन्होंने संयुक्त परिवार नाम की संस्था को बचाये रखा है।इतने बड़े परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था आसान नहीं है लेकिन आपसी प्यार और जुड़ाव हो तो मुश्किलें आसान हो जाती हैं। परिवार के सभी सदस्यों में कामों का बंटवारा होता है और सभी जिम्मेदारी से अपने कार्य पूरे करते हैं। परिवार की आमदनी भी एक जगह एकत्र होती है और सबको उनकी आवश्यकता अनुसार खर्च करने के लिए पैसे मिल जाते हैं। इस प्रकार से सभी खुश  रहते हैं ।घर के मुखिया  यह सारी व्यवस्था करते हैं तो सभी लोग इन सब व्यवस्थाओं से संतुष्ट रहते हैं।”




   इस प्रकार रतन को वाद विवाद प्रतियोगिता में विजेता घोषित किया जाता है। विराट रतन को बधाई देता है लेकिन कहता है ” तुमने जो कहा है वह सब किताबी बातें हैं ।मैं इन्हें नहीं मानता ।”  विराट स्वयं एक एकल परिवार में रहने वाला  है ।उसने कभी संयुक्त परिवार नहीं देखा है। उसकी बातें सुनकर रतन कहता है “यह सब किताबी बातें नहीं है मैं खुद एक बहुत बड़े संयुक्त परिवार से आया हूं मेरे परिवार में 152 सदस्य हैं उनमें से मैं तीसरी पीढ़ी का हूँ। मैंने जो बातें कही है वह सब तो मैं बचपन से अपने ही परिवार में देखता आ रहा हूं।” उसकी बातें सुनकर विराट को बहुत ही आश्चर्य होता है।वह कहता है “मैंने तो ऐसा परिवार कभी नहीं देखा। मैं चाहता हूं कि मैं तुम्हारा परिवार देखूँ।”

 तब रतन उसे छुट्टियों में अपने गांव आने का आमंत्रण देता है। कुछ ही दिनों बाद उनकी छुट्टियां होती है तो रतन के साथ विराट भी उसके साथ उसके गांव पहुंचता है। रतन के परिवार के सभी लोग उसका पारंपरिक रूप से स्वागत करते हैं। रतन के  ताऊ जी , पिताजी ,चाचा, दादी ,ताई ,मां,चाची,भैया, भाभी ,भाई बहन ,भतीजे, भतीजी सभी उनका स्वागत करने के लिए आ जाते हैं। विराट  उन्हें एकसाथ देखकर चकित रह जाता है । ऐसा लगता है कि जैसे पूरा गांव इकट्ठा हो गया है ।

वह देखता है कि उनका घर बहुत ही बड़ा है और बड़ा सा आंगन है जिसमें बहुत सारी चारपाइयाँ  बिछी हुई है उनमें रंग बिरंगी चादरें बिछी हुई हैं ,तकिए और गाव तकिये रखे हैं। जो बहुत ही सुंदर दिखाई दे रही हैं। पास ही नीम और कीकर के पेड़ हैं। एक चारपाई पर रतन के दादाजी बैठे हैं जिन्हें सब बाबा सा कहते हैं। उनके साथ उनका सेवक करमू भी है।रतन जाकर अपने दादा के चरण स्पर्श करता है। उसे देखकर विराट भी उनके पैर छूता है। दादाजी बहुत प्रेम से विराट से मिलते हैं और अपने पास बिठा लेते हैं। आसपास सभी सदस्यों के लिए कुर्सियां रखी होती हैं ।रतन बताता है ” शाम को हम सब यहीं एक साथ बैठते हैं और अपने दिन भर की बातों को एक दूसरे को बताते हैं ।अगर किसी को कोई समस्या होती है तो यहीं बातों बातों में उसकी समस्या सुलझ जाती है ।तब तक भोजन तैयार हो जाता है ।सब मिलकर भोजन करते हैं और तब तक आंगन में बिछी हुई चारपाई और उसकी चादरें भी ठंडी हो जाती है। 

फिर सब अपनी अपनी चारपाइयों में लेट कर चांद तारे देखते हैं। कोई कहानियां कहने लगता है तो कोई पहेलियां पूछता है और इस तरह बच्चों के ज्ञान का विकास होता है। हम तो ऐसे ही बड़े हुए हैं।” रतन की बातें सुनकर दादाजी मुस्कुराने लगते हैं और विराट से कहते हैं  “बेटा आज तुम भी यह सब देखना।” विराट को तो अब जल्दी ही शाम होने की प्रतीक्षा रहती है। वह भी इन सब चीजों का अनुभव करना चाहता है।

 थोड़ी देर में शाम हो जाती है और जैसा रतन ने बताया था शाम और रात को वैसा ही होता है। विराट को सब की बातें सुनकर और वहां का वातावरण देखकर नींद ही नहीं आती है। वह  इन सब का आनंद लेना चाहता है ।विराट के लिए यह बहुत ही अच्छा अनुभव है। वह अपने मन में सोचता है कि मैं इस परिवार के बारे में जरूर लिखूंगा और वापस जाकर अपने अनुभव बताऊंगा कि इतने बड़े संयुक्त परिवार में रहने में कितना आनंद आता है । धीरे-धीरे विराट को नींद आने लगती है सपनों में खो जाता है।

स्वरचित

नीरजा नामदेव

छत्तीसगढ़

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