एक अनकहा रिश्ता – मीनाक्षी सिंह

मेरा तबादला जब मथुरा से आगरा में हुआ तो मुझे गांव में ही रहना पड़ा ! बीटिया छोटी थी ! दूर से आना जाना ,बेटी को संभालना मुश्किल हो जाता इसलिये वही विद्यालय के पीछे रहने का निर्णय किया ! पतिदेव भी सहमत थे ! आ गए हम सामान लेकर अपने गांव ! 

मेरे घर से जुड़ा गांव के प्रधान जी का घर था ! दीवारें जुड़ी थी ! उनकी पत्नी से आते ,ज़ाते काम करते बातचीत हो जाया करती थी ! मेरे घर के सामने प्रधान जी का बाड़ा था ,जहां वो अपनी गाय ,भैंस,उनके बच्चें को बांधते थे ! एक दिन प्रधान जी की पत्नी मीरा जी ने मुझे चार ल्ड्डू दिये ! ये लिजिये मैडम जी ल्ड्डू ,हमाई भैंस ब्याए गयी एे (भैंस के बच्चा हुआ हैँ ) ,वो ऊँ पड़िय़ां से! गांव मे औरत के लड़की हो तो दुखी हो ज़ाते हैँ ,काश छोरा जो जाता तो ज्यादा बढ़िया था ! भैंस के लड़की हो तो ख़ुशी से झूम उठते हैँ ! उसकी खातिर भी किसी राजकुमारी से कम नहीं होती ! खूब दूध पिलाया जाता हैँ उसे ! भले ही घर में दूध कम पड़ जायें ! उसके लिए सारे इंतजाम किये ज़ाते हैँ !

उसकी माँ भैंस को भी खूब अच्छा खाने को दाना पानी मिलता हैँ ! अगर भैंस के पड्डा(लड़का ) हो जायें  तो बेचारे को भूखों मार देते हैँ ! कुछ दिनों बाद तो खबर आती हैँ  फलाने का पड्डा मर गया ! आज तक इस बात को ठीक से समझ नहीं पायी ! खैर छोड़िये ! आगे बढ़ते हैँ ! मीरा जी (प्रधान जी की पत्नी ) खूब सेवा करती थी भैंस और उसकी बीटिया की ! मेरी भी आते ज़ाते ,बच्चों को बाहर  घुमाते हुए भैंस पर नजर चली जाती ! मैं कई बार वहीं उसके पास खड़ी हो जाती ! उस पर ,उसके बच्चें पर हाथ फेर देती ! मीरा जी दूध काढ़ती तो मुझे आवाज लगाती ,मैडम जी आ जाओ ,डंडा  लेकर खड़ी हो जाओ ,तुम रहती हो खड़ी तो अच्छे से दूध दे देती हैँ !





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नहीं तो पैर ही मारती रहती हैँ !मेरा भी वहीं समय होता शाम को घुमाने का बच्चों का ! बच्चें खेलते रहते ,मैं मीरा जी की मदद कर देती ! मदद क्या ,शायद मुझे भी भैंस और बच्चें को देखने की आदत सी हो गयी थी ! अच्छा लगता था उनके पास आकर ! वो भी मुझे देखकर आवाज लगाते ! बच्चें भी उनके पास जाने से नहीं डरते थे ! जब कभी दो चार दिन के लिए मैं बाहर जाती तो लौटकर आने पर मुझे और बच्चों को देखकर दूर से ही रम्भाने लगते ! मैं भी उनसे मिलकर ही घर के अंदर जाती ! 

एक दिन सुबह बाहर काफी शोर हो रहा था ! पतिदेव बाहर आयें ! अंदर आकर कहते – रात प्रधान जी की भैंस मर गयी ! पता नहीं कैसे ! बिल्कुल स्वस्थ थी ! इतना कहकर वो वो सो गए ! पर मेरी आँखों की नींद गायब हो गयी ! एक बार सोचा – प्रधान जी की तो कई भैंसे हैँ ! शायद कोई और होगी ! जो बिमार थी शायद वो हो ! जानवर कोई भी हो ,उसके जाने का दुख तो होता पर अगर मेरी वही प्यारी भैंस होती तो शायद मेरा दुख दोगुना हो जाता !

मेरा मन नहीं माना ठंड में शाल ओढ़कर मैं बाहर आयी ! भीड़ के बीच में से निकलती हुई मैं उनके बाड़े में पहुँच गयी ! मीरा जी जोर जोर से रो रही थी ! भैंस को देखकर मेरी भी चीख निकल गयी ! ये तो मेरी ही भैंस थी जिस से मेरा अनकहा रिश्ता जुड़ चुका था ! पास में ही खड़ी उसकी बीटिया अपनी माँ को चांटने में लगी थी ! शायद वो उसे उठाना चाह रही थी की उसकी माँ उसे रोज की तरह पुचकारें !सभी अपना अपना कयास लगा रहे थे !





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रात में तो अच्छे से सोयी थी ! खूब दूध दिया ! बच्चें को दूध पिलाया ! अच्छे से चारा खाया ! शायद कोई सांप य़ा कीड़ा खा  गया होगा ! य़ा फिर जो जानवरों की बिमारी चल रही है ह्रदयआघात की ,कहीं उस से ही जान ना चली गयी हो ! कोई कुछ भी कहे पर मेरी भैंस तो अब इस दुनिया में नहीं थी !  मेरे आंसू अविरल बहते जा रहे थे ! 

मेरा बेटा और बेटी भी मुझे कमरे में ना पाकर बाहर आ गए थे ! पांच साल का मेरा बेटा बोलता – मम्मा ,ये हमारी भैंस को क्या हो गया हैँ ! सब इसको ऐसे धागा बांधकर क्यूँ ले जा रहे हैं ! ये इतना क्यूँ सो रही हैँ !अपनी प्यारी  भैंस को इस हाल में देख दोनों बच्चें रोने लगे ! मेरे कहने पर भी कि ये वो भैंस नहीं हैँ बेटा ! मम्मा देखो ,इसकी टेल छोटी हैँ ! ये मेरी भैंस हैँ ! मीरा जी से बोलता – आंटी ,मेरी भैंस को मत ले जाओ ! मैं इसके साथ खेलता हूँ ! ये मुझे मारती  भी नहीं है ! इसके बाबू को कौन प्यारी करेगा ! 

उसकी बीटिया अपनी माँ को देख बस आवाजें करती रही ! उसका  बस चलता तो शायद खूंटा तोड़ वो भी अपनी माँ के साथ चली जाती !मैं बस अपनी भैंस को देख सिस्कियां भरती रही ! अपनी प्यारी भैंस के सर पर अंत समय भी हाथ फेरते हुए मुझे लगा शायद मुझे पलटकर एक बार देख ले ! 

पाठकों ,पता नहीं आज के समय में कैसे इंसान इंसान को मार देता हैँ ! दूसरी तरफ कुछ लोगों को ज़ानवरों से भी इतना प्यार हो जाता हैँ ! उनसे अनकहा रिश्ता बन जाता हैँ ! 

अब मैं उस गांव में नहीं रहती ! अपने खुद के घर में आ गयी हूँ ! पर जब अपने गांव पढ़ाने जाती हूँ तो अपनी बीटिया ( भैंस के बच्चें ) से ज़रूर मिलती हूँ ! 

स्वरचित 

मौलिक अप्रकाशित 

मीनाक्षी सिंह 

आगरा

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