कुछ गुनाहों का प्रायश्चित नहीं होता – पूजा दत्ता : Moral Stories in Hindi

सारा काम ख़त्म करके चाय का कप लेकर बालकनी में बैठी ही थी कि दरवाज़े की घंटी बजी… इस समय कौन आया होगा, सोचती हुई गेट पर गई तो मेरी बचपन की सहेली सुमेधा सामने खड़ी थी।

“अरे सुमेधा, तुम… आओ ना… कितने दिन बाद आई हो…”

उसे बिठाकर मैं उसके लिए भी एक कप चाय लेने किचन में बढ़ गई… उसके हाथ में चाय का कप देकर मैंने खुश होते हुए कहा, “चल, अब अपन ख़ूब बातें करेंगे…”

मगर उसका बुझा हुआ चेहरा देखकर मैंने हैरानी से पूछा, “क्या हुआ?”

तो उसने कहा, “क्या बताऊँ पिहू… समझ नहीं आता वह पागल आदमी हमारा पीछा कब छोड़ेगा। बार-बार अब अपनी ग़लतियों की माफ़ी माँगता है, पर मैं कैसे माफ़ कर दूँ उसे? क्या वह नहीं जानता कि कुछ गुनाहों का कभी प्रायश्चित नहीं होता? और अब तो हमारा तलाक़ भी हो चुका है…”

जितनी देर सुमेधा रही, अपनी व्यथा सुनाती रही और अशांत मन लेकर ही उठकर चली गई…

पर अब मेरे मन में भी शांति कहाँ थी… सुमेधा, मेरी बचपन की सबसे प्यारी सहेली। लोग कहते थे कि एक जान हैं हम दोनों… भोली-भाली, मासूम, दुनिया की चालाकियों से बहुत दूर… 23 साल की होते ही उसकी शादी कर दी गई…

पर उसके बाद… उफ़्फ़… कैसा जानवर पति था उसका… बात-बात पर हाथ उठाना, बदतमीज़ी करना… कितने-कितने दिन तक भूखा रखना…

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जब विवाह के बाद पहली बार घर आई तो कोई उसे पहचान न सका… हर समय खिलखिलाकर हँसने वाली मेरी सहेली मुस्कुराना भी भूल चुकी थी… निस्तेज चेहरा, बुझी-बुझी सी आँखें… पता नहीं क्या सोचती रहती थी… मेरे बार-बार पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया था…

आख़िर एक बहुत प्यारी-सी बिटिया की माँ बनने का गौरव मिला… पर हाय रे विधाता… क़िस्मत में दुख लिखे थे तो दुख ही मिलते गए…

बाद में पता चला कि उसका पति कैसे-कैसे उस पर अत्याचार करता था और वह बेज़ुबान सी सब सहती रही… और 15 साल तक इतना सहने के बाद शायद ईश्वर को उस पर तरस आ गया… और तलाक़ के रूप में उसे छुटकारा मिल गया उस राक्षस से…

अपने दम पर अकेले अपनी बेटी का पालन-पोषण किया, और उसकी इस तपस्या का ही फल है कि आज उसकी बेटी अपने पैरों पर खड़ी है… दोनों माँ-बेटी के जीवन में अब खुशियाँ थीं…

और वह आदमी… तकलीफ़ और अकेलेपन को भोग रहा है।

कहते हैं भगवान की लाठी में आवाज़ नहीं होती… और जब ये मार उसको पड़ी तो माफ़ी याद आ गई… अब वह अंतिम समय में प्रायश्चित करना चाहता है…

पर गुनाहों का कोई प्रायश्चित नहीं होता… यही सोचकर एक ठंडी साँस लेकर मैं उठ खड़ी हुई…

पूजा दत्ता

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