नारी,
जो माँ है
बहन है,बेटी है,
छलनी हुए आँचल में
मुँह दबा रोतीं है .
द्रौपदी ,
तुम तो भाग्यवान थीं
तुम्हे कृष्ण मिले ,
दुर्योधन तो तब भी थे .
हम किसे पुकारें
बिखरी पड़ी यहाँ वहाँ
अस्मिता हमारी ,
घायल तन ,और
द्रवित मन लिए
तार-तार हुई नारी.
दुर्योधनों के कुटिल कृत्य
आम बात हुए
कोमल मृदुल मुकुल पर
हृदय भेदी आघात हुए.
नित नए दुर्योधनों की
फसलें आ रही है ,
नन्ही-नन्ही कोपलें
मसली जा रही है .
क्या ,कोई सुदर्शन चक्र नहीं
जो इस खरपतवार को काटेगा
क्या, कोई कृष्ण नहीं जो
नारी के इस दर्द को बांटेगा .
आह ,
एक द्रौपदी चाहिए
जो कृष्ण का आह्वान करे
बेखौफ घूम रहे दुर्योधन का ,
आकर जो संहार करे.
कृष्णा ,
तुम्हे फिर धरती पर
आना होगा ,
द्रौपदी की लुटती लाज को
एक बार फिर बचाना होगा.
नम्रता सरन “सोना”
भोपाल मध्यप्रदेश