कृष्णा ,तुम्हे आना होगा  –  नम्रता सरन “सोना”

नारी, 

जो माँ है 

बहन है,बेटी है,

छलनी हुए आँचल में 

मुँह दबा रोतीं है .

 

द्रौपदी ,

तुम तो भाग्यवान थीं 

तुम्हे कृष्ण मिले ,

दुर्योधन तो तब भी थे .

 

हम किसे पुकारें 

बिखरी पड़ी यहाँ वहाँ 

अस्मिता हमारी ,

घायल तन ,और 

द्रवित मन लिए 

तार-तार हुई नारी.

 

दुर्योधनों के कुटिल कृत्य 

आम बात हुए 

कोमल मृदुल मुकुल पर 

हृदय भेदी आघात हुए.

 

नित नए दुर्योधनों की 

फसलें आ रही है ,

नन्ही-नन्ही कोपलें 

मसली जा रही है .

 

क्या ,कोई सुदर्शन चक्र नहीं 

जो इस खरपतवार को काटेगा 

क्या, कोई कृष्ण नहीं जो 

नारी के इस दर्द को बांटेगा .

 

आह ,

एक द्रौपदी चाहिए 

जो कृष्ण का आह्वान करे 

बेखौफ घूम रहे दुर्योधन का ,

आकर जो संहार करे.

 

कृष्णा ,

तुम्हे फिर धरती पर

आना होगा ,

द्रौपदी की लुटती लाज को 

एक बार फिर बचाना होगा.

 

  नम्रता सरन “सोना”

भोपाल मध्यप्रदेश 

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