किसका है ये तुमको इंतजार मैं हूं  ना…………. सुधा जैन

 मेरी प्रिय परिचिता  बहन का आकस्मिक निधन हो गया। निधन के बाद उनके पुत्र, पुत्री पति, रिश्तेदार सभी बहुत दुखी हो गए ।रोने भी लगे।

पुत्र कहने लगे “हम तो अपनी मम्मी से कभी जी भर बात ही नहीं कर पाए”

मम्मी की किसी बात पर हमेशा गुस्सा ही आ जाता था, जब वह हिदायतें देती थी तो बुरा लग जाता था ,और हम डांट देते थे, हमें तो पता ही नहीं था कि वह हमें यूं असमय ही छोड़ कर चली जाएगी।

मेरा कहने का आशय यह है कि हम सदैव कुछ अच्छा कहने का, कुछ अच्छा करने का, कुछ अच्छा सोचने का सदैव इंतजार ही करते रहते हैं। जबकि हमें अच्छा करना, अच्छा सोचना, अच्छा कहना, इनके लिए किसी समय का इंतजार नहीं करना है। क्यों नहीं? हम वर्तमान का आनंद ले पाते हैं।

जब बारिश होती है, तो हम धूप का इंतजार करते हैं ,जब तेज धूप होती है तो हमें बारिश की बूंदे अच्छी लगती है ।तेज ठंड में हमें धूप का इंतजार रहता है, जब हम किसी के साथ होते हैं तो हम उसकी कमियां देखने लगते हैं ,हम हमारे व्यवहार को नहीं बदल पाते,। जब हम अपने बच्चों के साथ होते हैं तो क्यों?.. उनके साथ अपना पूरा प्यार नहीं उडेल पाते, क्यों…? उनकी कमियां देखते रहते हैं क्यों…..? हमारा व्यवहार उतना अच्छा नहीं रख पाते ,जितना रखना होता है क्यों नहीं ..…?हम हमारे हृदय के द्वार खोल देते /क्यों नही…..? हम बच्चों को उतना प्यार नहीं दे पाते जितना कि देना चाहिए ।

 क्यों नहीं…? बच्चे..माता-पिता से समय रहते अपने दिल के जज्बात नहीं कह पाते ,उनकी भावनाओं, उनके दिल को नहीं समझ पाते। उनके दिल को दुखाते  रहते हैं, और जब हमारे जीवन से वे चले जाते हैं तो उनकी एक एक बात को याद करके हम रोते रहते हैं।


जब हम किसी गरीब, दुखी बच्चे को  नंगे पैर देखते हैं तो क्यों ना उसी वक्त हम उसे चप्पल दिला दें? क्यों ना ठंड में कंपकपाते बच्चों और बड़ों को स्वेटर, शाल ,कंबल दिला दें।

जब हम किसी बूढ़े ,बच्चे या बीमार को भूखे को देखें तो उसे खाना खिला दें? क्यों ना राह में कोई घटना या दुर्घटना दिखे तो हम से जो भी मदद बन पड़े तत्काल कर दें। ,

किसी दूसरे का रास्ता ना देखें। क्यों नहीं ?

हमारे परिचित में से अगर कोई अस्पताल जा रहा हो तो सहायता के लिए तुरंत पहुंच जाएं, और वास्तविक मदद करें। हमारे परिचित जो अस्पताल में भर्ती हैं, तो उन्हें  देखने जाते समय उनके लिए भोजन फल, दूध, चाय, बिस्किट इन का प्रबंध करके जाएं, और यथोचित प्रबंध करने के बाद तुरंत वापिस आ जाएं। ज्यादा देर रुके नहीं। और अस्पताल में निराशा वाली बातें बिल्कुल ना करें। हमारे परिचितों में किसी बीमार के यहां जाए तो यथासंभव भोजन नाश्ता करने को टाले।

अगर हमारे अपने में से कोई कुछ अच्छा कर रहा है, कुछ अच्छा लिख रहे हैं, किसी का सहयोग कर रहे हैं, तो उनकी प्रशंसा करने में क्या हर्ज है ?उनके दुनिया से चले जाने के बाद उनकी प्रशंसा में बड़े-बड़े छंद पढ़ने से अच्छा है ,जीते जी प्रशंसा कर दी जाए। हम हमारे भाई बहनों से भी सुख दुख की बात करने में कितने दूर हो गए हैं? हर जगह हमारा ईगो टकरा जाता है ,कहीं हम शिकायतें करने लग जाते हैं, कहीं कमियां देखने लग जाते हैं। हमें ऐसा करना चाहिए जीते जी, कि बाद में हमारे ह्रदय में किसी के लिए “काश” ना रह जाए।



हम क्यों ना अभी से एक-एक पल एक-एक क्षण का आनंद लें। वास्तविक जीवन में किसी को हमारे कार्य से, व्यवहार से, शब्दों से, मदद मिल सके। उसके चेहरे पर मुस्कान ला सके,

ऐसा कार्य करें।

मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं ?

यह पूछने की बजाए मदद करने जज्बे को दिखा दे, जो भी परिस्थिति दिख रही है तुरंत अपनी तरफ से कोई एक्शन ले कर सकारात्मकता भरा कोई काम कर दें, यही जीवन की सच्चाई है। होता यह है कि हर वक्त हम इंतजार करते रहते हैं। कि हम अच्छा करेंगे, करेंगे, करेंगे। लेकिन जब हम अच्छा करने की सोचते हैं तब तक वह समय चला जाता है, इसलिए अच्छा करने की सोचना नहीं है, अच्छा  करके बताना है। इंतजार नहीं करना है।

जॉर्ज बर्नार्ड शा ने मरते समय हाथ जोड़कर यही बोला कि अच्छा जीवन जीना, और अच्छे काम करना, किसी का इंतजार मत करना, कि कोई अच्छा करेगा तब हम अच्छा करेंगे।

आइए , हम सब मिलकर एक ऐसा संवेदना वाला संसार बनाएं कि हमारे जीते जी ही हम कुछ अच्छा कर जाएं ।किसी को जीते जी ही कुछ अच्छा बोल जाएं ,किसी के मरने का इंतजार ना करें ।अपने माता ,पिता, भाई बहन ,मित्र, परिचित सभी के सुख दुख को सच में अपना सुख दुख समझे  तो सारा विश्व ही अपना परिवार है।  सारे विश्व के सुख और दुख हमारे हैं। वसुधैव कुटुंबकम की भावना सच्चे दिलों से लाएं ,और अपना किरदार बखूबी से निभाए ,किसी का इंतजार ना करें। मरने के बाद ही नहीं जीते जी भी किसी के लिए तालियां बजा दे।

किसका है यह तुमको इंतजार मैं हूं ना……..

रचना मौलिक एवं अप्रकाशित

सुधा जैन

 

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