किसकी नज़र? – डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : भैया, आप मेरे लिए एक मोबाईल ले आना। मेरे सभी दोस्तों के पास एक से बढ़कर एक अच्छे कंपनी की मोबाईल है। सब कहते हैं कि बहुत काम का चीज़ है जब चाहो एक ऐप् की सहायता से मैथ का डाऊट क्लियर कर सकते हैं। अब आप तो यहां हो नहीं की मुझे मैथ्स में हेल्प करोगे और पिताजी को मोतियाबिंद की वजह से दिखता ही नहीं है। 

अभिषेक, अनुज का छोटा भाई एक ही साँस में सारा वाक्य बिना रुके बोल गया।

   अनुज बोला-” अच्छा- अच्छा ठीक है भाई लेता आऊंगा। टेंशन नहीं करो।”

छोटी कहाँ है ? उससे भी तो बात कराओ मेरी।

भैया वह नकचढ़ी है ।मूहँ फुलाकर बैठी है दूसरे कमरे में।

“क्यों?”

अभिषेक बोला-”   मैंने पहले आपसे बात कर रहा हूं न इसीलिए।”

” ओहो….बात तो सही है तुमसे पहले उसका अधिकार है। सबसे छोटी बहन है हमारी। कहाँ है मेरी गुड़िया बुलाना उसे।”

ज्वाइनिंग के बाद पहली बार अनुज ने घर पर फोन किया था। पिछले चार सालों से यू .पी .एस .सी की तैयारी करने के चक्कर में वह घर  परिवार से दूर  दिल्ली में था। हर बार कुछ कुछ नम्बरों के कारण वह पिछड़ जा रहा था। इधर  उसको  पढ़ाने के  चक्कर में  पिताजी  की  माली  हालत  खराब हो चुकी थी फिर भी उन्होंने कभी  हिम्मत नहीं हारी और  लगातर  अनुज को पैसा भेजते  रहे। उसने क्षुब्ध होकर घर आना तो दूर घर वालों से यहां तक कि माँ से भी बात करना बंद कर दिया था। 

चौथी बार परीक्षा के समय उसने अपना इरादा बदल दिया और एक प्राइवेट कंपनी में इन्टरव्यू देने चला गया। उसे विश्वास ही नहीं हुआ जब उसे सेलेक्ट होने का कॉल आया। उसकी उम्मीद से दसगुना सैलरी पैकेज पर!! अनुज का सपना साकार हो गया था। अब उसके पास इतने पैसे थे कि वह अपने और अपने परिवार की खुशियां खरीद सकता था।





भाई -बहन  की बातों को सुनकर मुस्कराते हुए हाल चाल पूछने के लिए माँ भाग कर बाहर वाले कमरे में आयी तो देखा दोनों छोटे भाई बहन पहले से ही फोन पर लटके हुए हैं। माँ को हाथ के इशारे से बगल में बैठा दिया। वे अपनी बारी आने के के इंतजार में बैठी रहीं। बेटे की नई- नई नौकरी लगी थी नामी कंपनी में। अच्छी सैलरी के साथ -साथ सारी सुविधाएं बंगला, गाड़ी ड्राईवर सब कुछ उसे मिला था। माँ की खुशी तो देखते बन रही थी। पूरे मुहल्ले में दो दो बार मिठाई बटवा चुकी थी। एक नौकरी का ,और दूसरा पहली सैलरी मिलने का।

पैर जमीन पर नहीं था आसमान के सारे सितारे उनके आँचल में थे। जिंदगी के अंधियारा पल खत्म हो चला था। पिताजी भी बहुत खुश थे बेटे की कामयाबी ने उनका सीना चौरा कर दिया था। जो भी मिलने आता उसे अपने बेटे की कामयाबी की कहानी जी भर सुनाते।

“भैया कैसे हो?

“हाँ, छोटी मैं ठीक हुँ। तेरा पढ़ाई लिखाई कैसा चल रहा है ?तुझे भी कुछ मंगवाना है?

भैया आप मेरे लिए वो वाला जींस ले आना जो कहीं-

कहीं पर कटी -फटी हुई रहती है।

हा हा हा हा हा हा हा हा ……

दोनों तरफ से ठहाकों से कमरा गूंज उठा। अभिषेक ने बहन को चिढ़ाया…..फिर से एक बार बोलो तो  कैसा जींस चाहिए तुम्हें!

छोटी एकदम से बौखला गई बोली-” भैया आपको मेरा मज़ाक बनाना था तो फिर पूछा क्यूं  कि मुझे क्या चाहिए। “

अनुज बोला -“अरे नहीं… तु तो मेरी लाडली बहन है तुझे जो चाहिए मैं लेकर आऊंगा।”

अब थोड़ा माँ से बात कराओ। छोटी ने फोन माँ को पकड़ा दिया।

बच्चों की चुहलबाजी सुनकर माँ की आंखों में पानी भर आया था। आंखें पोछते हुए बोली-” बेटा कैसा है तु? खाना खाया? क्या खाया? आज क्या खाया? कहाँ खाया? होटल में या किसी ने घर में आकर बनाया?

माँ- माँ- माँ  एक बार में कितने सवाल पूछोगी….

हाँ मैं खाना खा चुका हूं। एक कुक रखा है वही खाना बनाता है। कोई दिक्कत नहीं है खाना खाने को लेकर। अब बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या लाऊँ?




माँ ने झिड़कते हुए कहा-” मुझे कुछ नहीं चाहिए मेरे लिए तुम जल्दी आओ। “

दो साल हो गये हैं तुम्हें माँ के हाथ की रोटी खाए हुए। लाना ही है तो अपने पिता जी के लिए एक पावर वाला चश्मा लेते आना। इधर कम दिखने लगा है। बहुत दिनों से उन्होंने दिखाया भी नहीं डॉक्टर से।

“माँ तुम चिंता मत करो। मैं जल्दी ही पिताजी के आंखों का ऑपरेशन करवा दूँगा। अब किसी बात की परेशानी नहीं है। पैसों की तो बिल्कुल भी नहीं। तुम्हारे आशीर्वाद से तुम्हारा बेटा एक अच्छे मुकाम पर पहुँच गया है। मेरी वजह से पूरे परिवार को अनेकों ग़म झेलना पड़ा है ।लेकिन अब और हमें कोई भी दुःख नहीं झेलना है ।

अनुज बीच में रूककर बोला -” माँ मेरे इस जॉब से पिताजी खुश हैं न?”

माँ बोली-” बेटा तुम ऐसे क्यूं बोल रहे हो। कौन सा पिता अपने बच्चे की कामयाबी पर दुःखी होता है?

नहीं माँ बस यूं ही।  इस बात का मलाल तो रहेगा ही क्योंकि  पिताजी मुझे आई. ए .एस बनता देखना चाहते थे ।उन्होंने मुझे पढ़ाने के लिए अपनी कितनी खुशियों का  त्याग किया। । सारे खेत गिरवी रख दिए। अपने सारे खर्चों को सीमित कर लिया ताकि मेरी फ़ीस में कोई कटौती नहीं करनी पड़े। अंत- अंत तक अपने पेंशन पर भी लोन ले लिया और मैं……।

“ओह बेटा तू क्या लेकर बैठ गया। तूने कोशिश तो की थी न! एक नहीं दो -दो बार इंटरव्यू तक पहुंच कर छट गया। भाग्य भी कोई चीज होता है। कोई माने या ना माने मैं तो मानती हूँ। और बेटा मेहनत कभी बेकार थोड़े ही जाता है। आज तू जहाँ है वहां अपनी पढ़ाई लिखाई के दम पर ही है। “

  अनुज मायूसी से बोला-”  लेकिन माँ ,पिताजी का दिल तो तोड़ा है मैंने ।तभी तो वो कभी बात नहीं करते हैं मुझसे।”

बेटा बाप का दिल समुद्र की तरह धीर -गंभीर होता है उसका थाह लगाना मुश्किल है। हर पिता अपने बच्चों की कामयाबी पर फक्र करता है।




माँ हंस कर बोली जब बाप बनेगा तब पूछूंगी। माँ की बात सुनकर अनुज जोड़ से ठहाका लगाकर हंस पड़ा।

पिताजी  कमरे  के दरवाजे पर खड़े होकर माँ बेटे की बातें सुनकर भाव – विह्वल हो रहे थे। “उनके दिल से  एक आवाज निकली हाँ मुझे उसकी खुशी चाहिए उसकी खुशी में ही मेरी खुशी है ।”

पिता की आवाज सुनते ही अनुज की आंखे भर आई। उसने ठान ली की वह अपने पिता के कंधे से सारी जिम्मेदारियों को अपने ऊपर ले लेगा।और उन्हें वो सभी खुशियां देगा जो उसे पढ़ाने की खातिर जिसे पिता ने त्याग कर दिया था।

होली आने वाली थी अनुज ने कंपनी से एक सप्ताह की छुट्टियां ले ली। भाई, बहन के लिए ढेर सारे गिफ्ट खरीदे और पिताजी के लिए चश्मा लिया।

सुबह उठकर वह सोच ही रहा था कि सबको पैक कर लूं तभी फोन की घंटी बजी। उधर से किसी अनजाने आदमी की आवाज थी -” मैं पारस हॉस्पिटल से बोल रहा हूं आपके पिताजी यहां भर्ती हुए हैं जितनी जल्दी हो सके पैसों का इंतजाम कर के आइए। “

अनुज स्तब्ध होकर कभी फोन को देख रहा था और कभी पिता जी के चश्मे को!!

उसने आनन फानन में फ्लाइट के टिकट लिये और घर के लिए निकल पड़ा। घर पहुंचने पर पता चला। दो दिन से लगभग चार डिग्री बुखार था पिताजी को चेकअप करवाने गये तो कोरोना निकला।डॉक्टर ने वापस घर आने ही नहीं दिया। माँ कोने में बैठी सिसकियाँ ले रही थी अनुज को देखते ही उससे लिपट कर रोने लगी-” बेटा पिताजी को बचा लो।”

माँ मैं आ गया हूँ न पिताजी को कुछ नहीं होगा। अनुज ने भाई को बोला कि तुम माँ को संभालो मैं पिताजी को लेकर आता हूं।

अनुज भागकर हॉस्पिटल पहुंचा। डॉक्टर के पास पिताजी की  तबीयत के विषय में जाकर पूछना चाहा तभी उसे देखते ही डॉक्टर ने कहा -” आप ही अनुज हैं?”

“जी डॉक्टर”

अंतिम समय में आप का ही नाम ले रहे थे। शायद वो  आपसे मिलना चाहते थे। आपने आने में देर कर दी। सॉरी अब वे नहीं रहे। उनकी बॉडी को भी पैक कर दी गयी है आप दूर से ही उनका दर्शन कर सकते हैं। अनुज धम से वहीं जमीन पर बैठ गया। क्रूर काल ने उसकी खुशियों को ग़म में बदल दिया था ।

#कभी_खुशी_कभी_ग़म 

स्वरचित एवं मौलिक

डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर, बिहार

 

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