कुल्हड़ वाला दूध –  बालेश्वर गुप्ता : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : मम्मी मम्मी ,क्या मैं थोड़ा दूध ले लूं,आज बहुत मन कर रहा है।वो अपने नुक्कड़ पर दूध बेचता है ना मम्मी,वहां लोग कुल्हड़ में दूध पी रहे थे।कुल्हड़ में दूध पीने में अच्छा लगता है ना? पहले तो मैं एक साथ दो दो कुल्हड़ में दूध पी लेता था।फिर भी पापा पूछते थे बेटा और लेगा ,बोल।मैं ही मना कर देता था।

      बेटा तुझे पता तो है, हमारे वो दिन नही रहे।सुबह चाय के लिये दूध बचा कर रखा है।

       मम्मी ऐसा करो मेरी चाय जितना दूध दे दो मैं सुबह चाय नही पिऊंगा।देखो मैं कुल्हड़ ले आया हूँ,थोड़ा पानी मिलाकर पी लूंगा,मेरी आज बहुत इच्छा हो रही है, कुल्हड़ में दूध पीने की।

        बराबर के कमरे में से विक्रम  सब सुन रहा था।खूब अच्छे से व्यापार चल रहा था पर कमाई और बढ़ाने के चक्कर मे चलते व्यापार को बंद कर अपनी जमा पूंजी के साथ बैंक से भी कर्ज ले एक फैक्ट्री साझे में खोल ली। कुछ ही समय मे फैक्टरी और साझीदार धोखा दे गये, सब कुछ तबाह हो गया।अपने पास कुछ रहा नही ऊपर से बैंक के रिकवरी के नोटिस और वसूली की कार्यवाही, शुरु हो गई।

काम धंधा भी नही रहा।समझ ही नही आ रहा था कि क्या किया जाये?मुन्ना अभी 10 वर्ष का ही है,आगे उसकी पढाई लिखाई का खर्च कैसे वहन होगा, घर का खर्च कैसे चलेगा,ये सब चिंताये विक्रम को खाये जा रही थी।और आज तो विक्रम अंदर तक टूट गया ,उसका मुन्ना अपनी माँ से दूध मांग रहा था, कह रहा था पानी मिलाकर पी लूंगा।

विक्रम को अपने से ग्लानि हो रही थी।मजबूरियां व्यक्ति को क्या बिल्कुल नपुंसक बना देती है?क्या अब कोई मार्ग नही,क्या अब पत्नी और बेटे के साथ जहर ही पीना पड़ेगा?जहर पीना पड़ेगा सोचते ही मुन्ना का खिलखिलाता चेहरा सामने आ गया,मानो कह रहा है पापा नही मांगूगा दूध, पर जहर तो मत पिलाओ।

       अपनी आँखों के आंसुओं को कमीज की आस्तीन से पौंछते हुए विक्रम उठा और चुपचाप आलमारी से दो चांदी के सिक्के निकाल जेब मे डाल लिये, हर दीवाली पर विक्रम चांदी के कुछ सिक्के जरूर खरीदता था।घर से निकल विक्रम उन चांदी के सिक्कों को सर्राफ के यहाँ बेचकर  उसी नुक्कड़ पर दूध वाले के पास आता है।विक्रम ने एक लीटर गर्म दूध खूब मलाइ डलवा कर ख़रीदा साथ ही वो तीन कुल्हड़ लेना नही भूला,आखिर उसके मुन्ना को कुल्हड़ का दूध अच्छा लगता है ना।




   घर आ विक्रम जोर से मुन्ना को आवाज लगाता है,रे मुन्ना देख तो मैं तेरे लिये क्या लाया हूँ,अरे कुल्हड़ वाला दूध,चल बुला अपनी मम्मी को तीनों पियेंगे।मुन्ना विक्रम से अतिरेक में चिपट जाता है।आज विक्रम की खुशी देख उसका चेहरा खिल गया था।

         विक्रम ने अपनी सब हिचक छोड़ ,अपने एक प्लाट को बेचा, पत्नी के गहने बेचे और अपने पुराने व्यवसाय को ही छोटे रूप में शुरू कर दिया, बैंक से भी मोहलत ले ली।व्यक्ति के साहस पर ईश्वर भी साथ देता है।विक्रम का व्यवसाय चल निकला,इतना कि घर का खर्च और मुन्ना की पढ़ाई चल सके।

       मुन्ना 18 वर्ष का हो गया, टयूशन पढ़ाकर अपनी पढाई का खर्च मुन्ना खुद निकालने लगा। ग्रेजुएट होते ही एक कंपनी में कम वेतन की नौकरी भी करनी शुरु कर दी।विक्रम ने अपने मुन्ना के लिये क्या सोचा था, पर समय ने क्या कर दिया,सोच सोच कर विक्रम मानो शून्य में खो जाता।

      मेहनती मुन्ना पर एक दूसरी कम्पनी की नजर पड़ी और मुन्ना को उस कंपनी ने अच्छे वेतन पर अपने यहाँ नियुक्त कर लिया। इधर विक्रम का व्यवसाय भी गति पकड़ने लगा था।पुराने अच्छे दिन लौटने लगे थे।

       मुन्ना अब 45 वर्ष का हो गया,विक्रम 73 वर्ष का।मुन्ना विक्रम और अपनी मम्मी को अपने ही पास रखता है।आज मुन्ना अपनी कंपनी में बड़ा अधिकारी है, लाखों का वेतन है।

     विक्रम की पूँजी तो बस इतनी है कि मुन्ना अब कभी भी जोर से आवाज दे बोलता है पापा जल्दी आओ देखो मैं आपके लिये क्या लाया हूँ,कुल्हड़ वाला दूध।

     कल और आज में अंतर यह है कि आज दीवाली पर खरीदे चांदी के सिक्के नही बिकते।

            बालेश्वर गुप्ता

                      पुणे(महाराष्ट्र)

मौलिक,अप्रकाशित,सत्य घटना पर आधारित।

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