” खुलने लगी गांठ ” – डॉ. सुनील शर्मा

शाम के पांच बजने वाले थे. सुमित दिन भर की फाइलें लेकर बॉस के केबिन में गया और हस्ताक्षर कराने लगा. कृष्ण कांत जी उसके बॉस अवश्य थे लेकिन बहुत ही अनुभवी तथा शालीन प्रकृति के थे. काम करने वाले कर्मचारियों की कद्र करते थे. आज भी पूछ बैठे ‘ कल तो दिवाली है,क्या प्रोग्राम है. ‘ सुमित ने अनमने भाव से कहा कि वह दीवाली नहीं मनाता. बचपन में ही दिवाली के दिन उसके माता पिता की एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई थी. बुआ ने उसे पाला था. अब तो बुआ भी नहीं रहीं. सुमित तो चला गया लेकिन कृष्ण कांत जी कुछ सोच में पड़ गए.

अगले दिन सुबह सुमित और शालिनी नाश्ता कर ही रहे थे कि कृष्ण कांत जी का फोन आया. ‘ शाम को पत्नी को लेकर  हमारे यहां आना. ‘ सुमित का बिल्कुल मन नहीं था लेकिन शालिनी ने समझाया कि बॉस हैं, ऐसे मना करना ठीक नहीं. थोड़ी देर को हो आएंगे. काफी दिन से उन्हें डिनर पर बुलाया भी नहीं, न ही हम गए.

शाम को मिठाई और कुछ उपहार लेकर दोनों कृष्ण कांत जी के घर पहुंचे. उनकी पत्नी ने पूजा की सभी तैयारियां की हुई थीं. लक्ष्मी पूजन के बाद कृष्ण कांत जी बोले ‘ तुम्हें एक जगह ले चलता हूं, अच्छा लगेगा ‘ . चारों कृष्ण कांत जी की कार में बैठ कर निकल गए.

शहर के दूसरे कोने पर कार एक वृद्धाश्रम के सामने रुकी. संस्था के संचालक कृष्ण कांत जी के दोस्त थे. कृष्ण कांत जी अक्सर यहां आते थे. आज भी दीवाली के अवसर पर वृद्धाश्रम के निवासियों के लिए उपहार तथा मिठाइयां लाए थे. अंदर एक हाल में उत्सव का माहौल था. कई आगे आकर छोटे मोटे आइटम प्रस्तुत कर रहे थे. भजन, गीत व कविताओं और चुटकुलों का दौर चल रहा था. बाद में सबने मिलकर खाना भी खाया. सुमित और शालिनी को बहुत ही अच्छा लगा.

सुमित और शालिनी अक्सर ही वहां जाने लगे. संचालक महोदय से पूछकर वहां के निवासियों की आम ज़रुरत की कुछ वस्तुएं भी ले जाते. वृद्ध जन भी उनसे अपनत्व का व्यवहार पाकर खुश थे. सुमित के मन की गांठ धीरे धीरे खुलने लगी थी. इस दीवाली उसने अंधेरे से उजाले की ओर कदम बढ़ाया था. खुशियों ने उसके घर का भी रुख किया था.

– डॉ. सुनील शर्मा

गुरुग्राम, हरियाणा

मौलिक एवं स्वरचित

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