खूब निभाया जिम्मेदारी – उमा वर्मा

 बिटिया ने जब जन्म लिया था तो पापा बड़ा सा मिठाई का डिब्बा लेकर अस्पताल पहुँचे थे ,हेड सिस्टर ने टोक दिया था ” वर्मा जी, मिठाई लेकर आये हैं? अरे बेटी हुई है ।खुशी किस बात की? आपको तो  रोना चाहिए ।” सिस्टर, आगे से ऐसी बातें न करें ।मेरी बेटी मेरी लक्ष्मी है ।मैं बेटी ही चाहता था “। दुबली पतली सी बेटी का नाम पापा ने रश्मि रखा।तो छोटी सी देख कर माँ ने मिनी पुकारा ।धीरे-धीरे मिनी खेलते कूदते बड़ी होने  लगी थी ।एक दम शान्त, समझदार और होशियार ।हाँ शुरुआत में पढ़ाई में थोड़ी कमजोर थी।माँ चिंता करती ।पापा दिलासा देते ।” सब ठीक हो जाएगा “। दुबली पतली तो बहुत थी।पापा न जाने कहाँ कहाँ से जड़ी बूटी लाते,खुद ही घोटते ।शायद मेरी बेटी थोड़ी अच्छी हो जाये।उसके स्वास्थय के लिए माँ केला और दूध खिलाने लगी ।लेकिन मिनी का बदन जस के तस रहा ।दौड़ कर डाकटर के यहाँ गई ” देखिए न डाक्टर साहब, मेरी बेटी कितनी दुबली पतली सी है ” डॉक्टर ने चेक किया ” सब कुछ ठीक है ” चिंता की कोई बात नहीं है ।समय आने पर ठीक हो जाएगी ।कोई बीमारी नहीं होना चाहिये ।माँ को संतोष हो गया ।मिनी की शिक्षा आगे बढ़ने लगी ।ग्रेजुएट हो गई तो पापा को बेटी की शादी की चिंता हुई ।एक अच्छा घर वर देख कर शादी भी हो गई ।परिवार अच्छा था ।




पति सीधे सादे, पत्रकार थे।मिनी खुश थी।समय पर एक बेटे की माँ भी बन गई थी ।जीवन चलता रहता है ।नहीं जानती थी कि काल पीछा कर रहा है ।पति बीमार रहने लगे।जाँच में पता चला उनकी किडनी खराब हो गई थी ।शुगर हाइ लेवल पर था ।और दौड़ धूप के बीच एक दिन वे चले गये ।मिनी के सामने पहाड़ टूट पड़ा था ।क्या करेगी, कैसे रहेगी? स्कूल में पढ़ाती तो पहले से ही थी।लेकिन बेटे की शिक्षा बाकी थी।कौन करेगा अब? पति अस्पताल में थे तभी कातर निगाहों से देखा था ” मै तो अब जा ही रहा हूँ, बेटे की परवरिश और पढ़ाई की जिम्मेदारी तुम निभाओगी ना? ” और उनकी आँखे बंद हो गई थी ।तेरह दिन रोने धोने और रसमोरिवाज में निकल गया ।तब माँ ने आँसू पोछते हुए कहा था-” बेटा, अब तुम्हारे सामने पूरी जिंदगी पड़ी है ।बेटे की ओर ध्यान दो।तुम खुद मजबूत रहोगी तो सब ठीक हो जाएगा ।बेटे की जिम्मेदारी तुम पर छोड़ गये हैं दामाद जी उसके तरफ ध्यान दो।और मिनी ने अपने आँसू पोंछ लिए ।सबसे बड़ी जिम्मेदारी निभाने का समय आ गया था ।सुबह स्कूल जाती ।दो बजे आकर रसोई में लगती ।सबको खिलाने के बाद खुद खाती ।तब तक टयूशन के लिए बच्चों का आना शुरू हो जाता ।पंद्रह पंद्रह बच्चों के टयूशन पढ़ाना आसान नहीं था ।थक कर चूर हो जाती ।फिर शाम का चाय नाश्ता की तैयारी होती ।और उसके बाद रात के खाने की तैयारी ।उसे कुछ नहीं सोचना चाहिए, बेटे की परवरिश और पढ़ाई की जिम्मेदारी भी तो उठानी है ।मानसिक रूप से माँ का सहयोग मिलता ।” बेटा, तुम थकना नहीं, तुम बहुत हिम्मत वाली हो ” जीवन अनवरत चलने लगा ।




सुख दुःख को महसूस करती रही मिनी ।बेटे को एडमिशन के लिए हैदराबाद जाना था ।माँ बेटा दोनों साथ थे।।ट्रेन में न जाने कहाँ झपकी लग गई ।एयर बैग गायब हो गया ।अब क्या करेगी? बहुत विकट प्रश्न था ।बहुत सारे कपड़े तो थे ही, चलो कोई बात नहीं है ।पर बच्चे का सार्टिफिकेट, बहुत सारे जरूरी कागजात, कहाँ से लाऊं? सिर पकड़ कर बैठ गयी वह ।रोते हुए घर लौट आई।कुछ ही दिन रह गये थे एडमिशन का समय आने में ।सोच में डूबी थी कि फोन बजने लगा।” हलो,मैडम आप का नाम रश्मि है क्या? रेलवे लाइन पर एक एयर बैग मिला है, उसमें आप का पता मिला ।और कुछ जरूरी सार्टिफिकेट था ।शायद आप के बेटे का एडमिशन होना था ।मैंने नजदीक के थाने में जमा कर दिया था ।आप आकर ले जाएँ ।ईश्वर आप के बेटे की राह में मदद  करेंगे ।” हलो, भाई साहब आप कहाँ से बोल रहे हैं, और कौन हैं ” ? फोन कट गया था ।हैरान परेशान मिनी अपने परिवार और भैया को लेकर गई ।सबकुछ सही सलामत, कागज वगैरह मिल गया ।लाख लाख ईश्वर को धन्यवाद देती रही ।न जाने कौन अजनबी था? मन में एक विचार कौंध गया ।अदृश्य रूप से शायद पति ही थे।बेटे की चिंता में मदद करने आये थे ।बेटा इन्जीनियर बन गया ।मिनी बहुत खुश थी।उसका सपना पूरा हो गया ।जिसे पति के साथ मिलकर उसने भी देखा था ।एक जिम्मेदारी तो पूरी हो गई ।अब बेटे की जोड़ी लगा कर वह जिम्मेदारी भी पूरी कर देनी है ।जी जान से जुट गयी वह ।उसे लगता उसके पास समय बहुत कम है ।पता नहीं क्यों ऐसा लगने लगा था तभी बार बार माँ से जिक्र कर बैठती ” मै अपनी जिम्मेदारी पूरी करके चली जाउंगी माँ ” ” ऐसा नहीं कहते बेटा, अभी तो पूरी जिंदगी पड़ी है तुम्हारे सामने ” ।फिर एक अच्छी कन्या से ब्याह तय हो गया ।बेटा बहू दोनों की जोड़ी को सभी ने खूब सराहा ।बेटा शादी के एक सप्ताह के  बाद पत्नी को लेकर चला गया दिल्ली ।उसकी छुट्टी खत्म हो गई है ।माँ को आने का वादा कर के ।” माँ मै टिकट भेज देता हूँ, आ जाना ” ” साथ कैसे जाती, अभी तो शादी वाले घर की लेन देन बाकी है ।पूरा घर अस्त व्यस्त है ।सबकुछ निबटा लूंगी तो आती हूँ बेटा ।बहू बहुत प्यारी मिली है ।अभी तो जी भर के देखा भी नहीं ।बात भी नहीं की।मिनी बेटे बहू के यादोँ के सहारे दिन काट रही थी ।पति जो सौंप गये थे उसे अच्छी तरह निभा दिया ।अब चैन की सांस लेने को समय ही समय है।और एक दिन खाना खा कर सोयी तो उठी ही नहीं ।अचानक सबकुछ खत्म हो गया ।परिवार के लोग समझ नहीं पा रहे हैं ।आखिर अचानक? अम्मा का रो रो कर बुरा हाल था ।कैसे जियेगी वह? बुढापे में बच्चे का जाना बहुत तकलीफ दायक था ।उनकी मिनी क्यों चली गई? आखिर हुआ क्या था उसे? कुछ समझ नहीं पा रही वह ।अधूरे प्रश्न बार बार कचोटते हैं 

#जिम्मेदारी 

।उमा वर्मा ।नोयेडा ।स्वरचित ।और अप्रकाशित ।

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