दस रुपए का दूध – गीतू महाजन

कनिका बहुत परेशान थी क्योंकि उसकी कामवाली बाई अपनी सास के बीमार होने की वजह से 1 महीने के लिए गांव चली गई थी।एक-दो दिन की बात होती तो कनिका संभाल लेती लेकिन एक महीना तो सारा काम स्वयं करना बहुत मुश्किल था और अगले हफ्ते तो उसके सास ससुर भी आने वाले थे।उनके आने से काम की थोड़ी अधिकता तो हो ही जानी थी और कनिका सोच रही थी अगर वह काम ही करती रहेगी तो मम्मी जी और पापा जी की देखभाल कैसे कर पाएगी। 

यही सोचकर उसने आसपास के घरों में काम करने वाली बाईयों से भी काम करने के लिए पूछा लेकिन सब ने अपनी अपनी मजबूरी बता दी कि उनके पास तो समय ही नहीं है और सिर्फ 1 महीने के लिए कोई भी काम नहीं करना चाहती थी।तभी कनिका को अपनी सहेली रितु का ध्यान आया जो दूसरी सोसाइटी में रहती थी।कनिका ने उसे फोन किया और उसे अपनी परेशानी बताई।रितु ने उसे आश्वासन देते हुए कहा कि वह शाम तक कोई ना कोई इंतज़ाम ज़रूर कर लेगी और शाम होते-होते ऋतु का फोन आया और उसने उसे बताया कि उसकी अपनी काम वाली की बेटी ने भी घरों में काम करना अभी अभी शुरू कया है और उसके पास सिर्फ दो ही घर है इसीलिए वह काम करने को राज़ी हो गई है।कनिका यह बात सुनकर खुश हो गई और उसे अगले दिन आने के लिए बोल दिया।

अगले दिन सुबह जब घंटी बजी तो कनिका के दरवाज़ा खोलने पर एक सोलह सत्रह वर्ष की लड़की खड़ी थी।”मुझे रितु आंटी ने भेजा है”,वह बोली।

“अंदर आ जाओ”, कनिका ने दरवाज़े से हटते हुए कहा। 

“क्या नाम है तुम्हारा”? 

“जी मेरा नाम वंदना है”। 

“बहुत प्यारा नाम है तुम्हारा”, यह बात सुनकर वह लड़की मुस्कुरा दी थी।

“भाभी, क्या-क्या काम करना है”? उसके पूछने पर कनिका ने उसे काम समझाया और पूछा,” क्या इतना काम कर लोगी”?

“हां भाभी, ज़रूर कर लूंगी…मैं दो घरों में और भी काम करती हूं और छोटे होते से ही घर का काम भी संभालती आई हूं तो यह काम मेरे लिए मुश्किल नहीं है”,उसने कहा और वह काम पर लग गई।देखते ही देखते उसने सारा काम निपटा दिया और जाने के लिए खड़ी हो गई।

“अच्छा भाभी, मैं चलती हूं”। 




कनिका ने उसे रोकते हुए कहा,” रुक जा,तेरे लिए चाय और नाश्ता रखा है वह खाकर चली जाना।वैसे भी 11:00 बजने को है तो तुझे भूख लग गई होगी”। 

यह बात सुनकर वंदना मुस्कुराते हुए रसोई घर में चली गई और वहां बैठकर उसने अपना चाय नाश्ता खत्म किया और बर्तन धोकर करीने से रख दिए और कनिका को जाते हुए बोल गई कि वह शाम के बर्तन करने के लिए ठीक 4:00 बजे आ जाएगी।

कनिका ने देखा कि वंदना ने बहुत अच्छे तरीके से काम किया था और उसका काम बहुत साफ सुथरा था..बल्कि अगर कहा जाए तो वह काम करने में कनिका की अपनी कामवाली राधा से भी ज़्यादा बेहतर थी।एक पल के लिए कनिका को लगा कि उसे राधा को हटाकर वंदना को ही रख लेना चाहिए पर फिर उसने सोचा कि शुरू शुरू में तो सब अच्छा ही काम करती है धीरे-धीरे सब एक जैसे ही काम करना शुरु कर देती हैं और यह सोचकर कनिका दूसरे काम करने में व्यस्त हो गई।

कनिका के पति एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते थे और उसका बेटा अंशुल आठवीं कक्षा में पढ़ता था।उसके सास-ससुर उसी के जेठ जेठानी के पास मेरठ में रहते थे और बीच-बीच में उसके पास गुड़गांव आ जाया करते।कनिका की सास एक समझदार और अच्छी महिला थी और कनिका की भी अपने सास-ससुर के साथ बहुत बनती और उसका अपनी जेठानी के साथ भी बहुत प्यार था।सब मिलकर त्यौहारों पर इकट्ठे होते और पूरा परिवार उस समय खुशियों में डूब जाता।

खैर, कनिका वंदना के आने से थोड़ी आश्वस्त हो गई थी और उसने वंदना के साथ मिलकर सास ससुर के लिए कमरा भी तैयार कर दिया था और उनके सुविधा अनुसार सारा सामान भी जुटा लिया था ताकि उनको कोई असुविधा ना हो और वंदना को भी बोल दिया था कि अगर अंकल आंटी जी उसे कोई काम करने को कहें तो वह मना ना करे।

“नहीं भाभी, मैं क्यों मना करूंगी..भला बड़ों का काम करने से आशीर्वाद ही तो मिलता है”।

एक छोटी सी बच्ची की इतनी समझदार बातें सुनकर कनिका हैरान रह गई फिर उसने सोचा कि इतनी छोटी उम्र में जहां आजकल की कई लड़कियां मोबाईल में अपना समय बिताती रहती हैं वहां वंदना कैसे अपना काम पूरी ज़िम्मेदारी से करती है।

कुछ दिनों बाद कनिका के सास ससुर भी आ गए थे और उन्हें भी वंदना का काम देख कर बड़ी हैरानगी हुई और साथ-साथ खुशी भी की वह बहुत ही साफ सुथरा काम करती थी और साथ ही खुद भी बहुत साफ-सुथरी बनकर रहती थी।मज़ाल है कि 1 दिन भी कोई गंदा या मैला कुचैला कपड़ा उसने पहना हो।उसने हमेशा साफ और धुला हुआ कपड़ा पहना होता और बालों की एक साधारण सी चोटी बनाकर रखती और आंखों में काजल ज़रूर लगाती जिससे उसकी बड़ी-बड़ी आंखें और भी सुंदर दिखाई देती।

दिन ऐसे ही बीत रहे थे कि राधा का गांव से कनिका को फोन आ गया कि उसकी सास अभी भी बीमार है और उसे और समय लग सकता है।वंदना के होने से अब कनिका को कोई चिंता नहीं थी..इसलिए कनिका ने उससे कहा कि तुम आराम से अपनी सास की देखभाल करो और यहां की चिंता छोड़ दो।




1 दिन वंदना बर्तन धो रही थी तो उसने देखा कि कनिका के बेटे अंशुल ने आधा गिलास दूध छोड़ रखा था।वंदना ने पूछा,” भाभी,आज अंशुल भैया पूरा दूध पीकर नहीं गए क्या”?

“नहीं, ऐसे ही नखरे करता है कभी-कभी या शायद उसका सुबह-सुबह मन नहीं होगा..तू ऐसा कर इस दूध को चिड़ियों वाले बर्तन में डाल दे।कनिका ने अपने घर के बाहर पक्षियों के खाने के लिए मिट्टी के कटोरे रखे थे जिन्हें वह रोज़ साफ करती और उसमें इसी तरह खाना और पानी डाल देती। उसके घर के बाहर बहुत सारे पक्षी रोज़ खाना खाने आते थे।कनिका के सास ससुर को कनिका का ऐसा करना बहुत पसंद आता था।

वंदना उस कटोरे में दूध डालकर आई तो कनिका ने उसे पूछ लिया,” क्या तेरे भाई बहन भी ऐसे ही नखरे करते हैं दूध पीने में”? वंदना ने कनिका को बता रखा था कि उसके तीन छोटे भाई बहन थे। 

“भाभी, घर में दूध होगा तो वो नखरे करेंगे ना”।

“क्यों, तू और मां कमाते तो हो और साथ में तेरा बापू भी तो कुछ कमाता होगा”। 

“भाभी मेरे पिताजी, बेलदारी (मज़दूरी) का काम करते थे. लेकिन पिछले साल जहां वो काम करते थे वहां एक छज्जा गिर जाने से उनकी कमर में बहुत चोट आ गई जिससे उन्हें बिस्तर पर ही काफी महीनों तक आराम करना पड़ा।अब वह थोड़ा-थोड़ा चल तो सकते हैं लेकिन अभी भी काम पर नहीं जा सकते।उन्हीं की बिमारी की वजह से मुझे काम पर लगना पड़ा और आपको तो पता है कि इतनी महंगाई में घर का खर्चा ही बड़ी मुश्किल से निकलता है।ऊपर से कमरे का किराया भी देना पड़ता है तो मैं हर रोज़ सुबह दस रुपए का दूध लेकर आती हूं”।

“दस रूपए के दूध से क्या होता है भला”, कनिका की आंखें उसकी बात सुन फटी की फटी रह गई।

“भाभी, उस दस रूपए के दूध से हम चाय बनाते हैं जिसमें पानी ज़्यादा और दूध कम होता है और वही चाय हम रोटी के साथ बापू और भाई बहनों को दे देते हैं”।

“और तू और तेरी मां क्या खाती हैं “,?कनिका ने पूछा। 

“मैं और मां तो आप लोगों के घरों से ही चाय नाश्ता कर लेते हैं तो इसीलिए घर से कुछ नहीं खाकर आते”।

“और दोपहर का खाना”।

“दोपहर को तो मां या मुझे बहुत बार आप लोगों के घरों से बची हुई सब्ज़ी मिल जाती है तो वही ले जाकर उसके साथ रोटी बनाकर खा लेते हैं और अगर जिस दिन सब्ज़ी ना मिले तो उस दिन चटनी रोटी बना लेते हैं और सिर्फ रात को ही सब्ज़ी रोटी यां दाल रोटी बनती है”, यह बात बोलकर वंदना अपने काम में लग गई पर कनिका को सोचने पर मजबूर कर गई कि जहां एक तरफ उसका बेटा खाने की इतनी चीज़ें होने के बावजूद इतने नखरे दिखाता है या उसका बेटा ही क्या अधिकतर घरों में ऐसा देखने को मिल जाता है लेकिन वही वंदना जैसे बच्चे भी हैं जो अपनी मजबूरी की वजह से घर की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए मजबूर हैं और इस मजबूरी ने हीं उन्हें कितना  परिपक्व कर दिया है कि आज उसे ही फर्क ही नहीं पड़ता कि उसे घर में दूध मिल रहा है या नहीं।




उसका ध्यान अपने छोटे भाई बहनों के लिए और अपने पिता के प्रति अपना कर्तव्य निभाने में लगा हुआ है।मात्र दस रूपए के दूध से ही वे बच्चे अपना पेट भरते हैं और फिर भी उन्हें जीवन से शिकायतें कम है।

कनिका सोच रही थी कि हमारा समाज कैसे दो वर्गों में बंट चुका है।जहां एक तरफ शादी विवाह या अन्य समारोहों में अन्न की इतनी बर्बादी हो रही है वहीं दूसरी तरफ वंदना जैसे लोग भी हैं जिनके घरों में

 खर्चे की दर को न्यूनतम तक लाने का सोचा जाता है। जो खाने के एक एक कौर को बड़ी मुश्किल से कमाते हैं और जो बचा तो कुछ नहीं पाते लेकिन उनके सुबह उठते ही उनका मकसद यही होता है कि रात को वो भूखे पेट ना सोए और इसी में वंदना जैसे बहुत से बच्चे आ जाते हैं आते हैं जो कि छोटी उम्र से ही अपने घर के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभानी शुरू कर देते हैं।

 कनिका के मन में वंदना के लिए दया के साथ-साथ गर्व भी उमड़ आया था कि वह बच्ची अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही थी और कहां कैसे खर्चा बच सकता है इसकी जुगत भी लगा रही थी। 

कनिका ने सोचा कि आज से वह रोज़ एक सब्जी बनाकर उसके घर वालों के लिए दे दिया करेगी ताकि  दोपहर को उनको भरपेट भोजन मिल सके और राधा के आने के बाद भी उसे अपने घर में किन्हीं और कामों के लिए रख लेगी। कनिका ने मन ही मन तय कर लिया था कि अब से रोज़ 1 लीटर दूध का पैकेट भी वंदना को दे दिया करेगी ताकि उस बच्ची को रोज़ सुबह उठकर काम पर आने से पहले दस रूपए के दूध के लिए भागना ना पड़े।कनिका को लगा कि अब कुछ ज़िम्मेदारी निभाने की बारी उसकी भी थी।

#स्वरचित 

#अप्रकाशित 

#ज़िम्मेदारी 

गीतू महाजन।

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