आग – डॉ पुष्पा सक्सेना 

होस्टल में आग की तरह बात फैल गई। जया न चीखी, न चिल्लाई। बस सीधी लपट बनी निश्चेष्ट खड़ी हो गई थी। कमरे की पार्टनर सुप्रिया चीख पड़ी थी। रात के गहरे सन्नाटे में उसकी चीख दूर-दूर तक पहॅुंच गई थी। किसी छात्रा ने जया को यूं जलते देख पूरी बाल्टी-भर पानी उॅंडेल दिया था।

खबर पाते ही होस्टेल-वार्डेन, प्राचार्या सब पहुँच गई थीं। काँलेज की कार में जया को, डाल पास के मेडिकल काँलेज में पहॅुंचाया गया था। जया पूरे होश में थी। डाँक्टर देखकर स्तब्ध रह गए थे-

कमाल के जीवट वाली लड़की है! इतना जलने के बाद एक बार कराही तक नही! इतनी शान्त कैसे रह सकी थी वह?

प्राचार्य मिसेज चक्रवर्ती ने बहुत स्नेह से माथे पर हाथ धर जया से कहा,

घबराना नहीं मेरी बच्ची, एकदम ठीक हो जाओगी। अपने पापा का फोन-नम्बर तो बताना बेटी, उन्हें बुला देते हैं।

गहरी वितृष्णा जया के चेहरे पर उभर आई थी। कोई उत्तर न था। इंटेंसिव केयर के कक्ष के बाहर आ मिसेज चक्रवर्ती पास खड़े डाँक्टर से कहने लगी,

लड़की बेहद सहम गई है। न जाने कैसी सूनी आँखों से ताक रही है। मुझे तो डर लग रहा है! कहीं स्थिति गम्भीर तो नहीं डाँक्टर?।

साठ प्रतिशत जला रोगी बहुत गम्भीर ही होता है। पर ताज्जुब है, यह लड़की पूरे होशोहवास में है। न जाने कैसे इतना दर्द सह रही है? मुझे तो लगता है इसने सोच-समझकर आत्महत्या की चेष्टा की है।

नामुमकिन डाँक्टर! ये हमारे काँलेज की सबसे मेधावी छात्रा है। अभी बी ए पार्ट वन में पूरे काँलेज में इसने टाँप किया है। पढ़ाई के अलावा कभी यह कुछ सोच भी सकती है, मैं नहीं मानती डाँक्टर!

हो सकता है, पर मैं भी अपने पिछले वर्षों के अनुभव के आधार पर ही कह रहा हूँ। दर्द पीने के इसके सब्र की हद हो गई हैए मैडम! जैसे भी हो, इसकी फ्रेंड्स, माता-पिता से पता करिए।




डाँक्टर, यह बच तो जाएगी न? व्यग्रता मिसेज चक्रवर्ती के कण्ठ से फूट पड़ी थी।

कह नहीं सकता। हो सकता है अपनी तीव्र इच्छा-शक्ति यह मरने के लिए ही लगाए। तब मर जाना अवश्यभावी है। फिलहाल नींद के इंजेक्शन के बाद भी यह सो पाएगी, मुझे नहीं लगता।

गम्भीर डाँक्टर का मुख निहारती मिसेज चक्रवर्ती अब सचमुच भयभीत हो उठी थी। पास खड़ी वार्डेन का सहारा ले अस्पताल के बरामदे में पड़ी बेंच पर वह निढाल-सी बैठ गई थीं।

डेढ वर्ष पूर्व यही लड़की जब अपने सेना में कर्नल पिता के साथ आई थी तो कितनी निरीह, सहमी-सी लग रही थी! कुछ पीलापन लिये गेहूँवे चेहरे पर शान्त नयन बहुत भले लग रहे थे। इण्टरमीडिएट विज्ञान में पूरे प्रान्त में द्वितीय पोजीशन लाने वाली उस साधारण-सी लड़की का रिजल्ट देख वह आश्चर्य कर उठी थीं। उससे पूछे हर प्रश्न का उत्तर जब उसके पिता ने देना शुरू किया, तो वे अपने को रोक न सकीं,

कर्नल दत्ता, प्लीज लड़की को बोलने दीजिए। हाँ तो जया, तुम विज्ञान क्यों छोड़ रही हो?

एक बार दृष्टि उठा पिता के चेहरे को ताक जया ने दृष्टि नीचे कर ली थी। उत्तर उसी दबंग अफसर ने दिया था,

अरे लड़की है। क्या करेगी साइंस लेकर? इसकी माँ होती, तो शायद अब तक इसकी शादी भी कर देती। ये तो जिद कर रही थी डाँक्टरी पढ़ेगी, पर सिर्फ लड़कियों के लिए किसी मेडिकल काँलेज की यहाँ सुविधा भी तो नहीं है। बस बी ए पास कर ले तो शादी कर छुट्टी पाऊॅं। मानो किसी बोझ से मुक्ति पाने के भाव से बात समाप्त कर डाली थी।

बहुत आश्चर्य से मिसेज चक्रवर्ती उस मॅुंहफट पिता को देखती रह गई-

पर अब तो जमाना बहुत बदल चुका है, कर्नल दत्ता! इतनी इंटेलिजेंट लड़की को इस तरह ट्रीट करना क्या ठीक होगा? मैं तो सोचती थी कि सेना के अधिकारी अपने बच्चों को अधिक स्वतन्त्रता देते हैं, वे अधिक उदार होते हैं, पर आप तो…

उनकी बात काट कर्नल दत्ता बोल पड़े थे,

आप इन बातों को नहीं समझेंगी, मैडम! पूरे देश की रक्षा कर सकता हूँ, पर अपने परिवार की रक्षा का दंभ नहीं भरता। मेरा परिवार तो समाज की दया पर आश्रित है। बात समाप्त करते कर्नल दत्ता के चेहरे पर एक उदास परत-सी छा गई थी-




आपके यहाँ गल्र्स होस्टल की व्यवस्था तो ठीक है न? बाहर के आदमी तो अन्दर नहीं जा सकते?

मिसेज चक्रवर्ती हॅंस पड़ी थीं,

आप तो एकदम रूढि़वादी बातें करते है, कर्नल! बेफिक्र रहिए, यहाँ बाहर की मक्खी तक निषिद्ध है।

कभी घर की मक्खी ही बेहद जहरीली सिद्ध होती है, मैडम! क्हते हुए कर्नल दत्ता के स्वर में जाने कितनी कडुआहट घुल गई थी।

इस बीच जया ने एक बार भी सिर ऊपर नहीं उठाया। मानो जमीन की ओर ताकते रहना बहुत आकर्षक काम था।

तो ठीक है। लीजिए सम्हालिए अपनी वार्ड को। मैं आँफिस में फीस जमा कर देता हूँ। कहते हुए कर्नल दत्ता मुड़कर खड़े हो गए। जया के झुके चेहरे पर एक निमिष दुष्टिपात कर ‘ओ के , बाई! ठीक से रहना’ का आदेश सुना वह चले गए थे। पुत्री को छोड़कर जाते समय कोई दुःख, कोई सेंटीमेंट न दिखाना शायद आर्मी की ट्रेनिंग होगी।

उनके बाहर जाते ही मिसेज चक्रवर्ती ने बहुत प्यार से उस सिर झुकाए बैठी लड़की को इंगित कर कहा था,

मैं तुम्हारे मन की बात समझती हूँ जया! मेडिकल काँलेज की जगह तुम्हें इस आर्ट्स काँलेज में आना जरूर बुरा लग रहा होगा, पर हम जो चाहते हैं, हमेशा वही तो नहीं मिल पाता न? तुम यहाँ भी टाँप करके दिखाओं, तब बात है!

जया की आँखें एक पल उनके चेहरे पर टिक पुनः फिसलती हुई धरती पर जा लगी थीं। न जाने क्यों, उस भावुक-सी दिखती लड़की के प्रति वे आवश्यकता से अधिक सदय हो उठी थीं। उसे दिलासा-सा देती बोली थीं,

आओ तुम्हारा परिचय और लड़कियों से करा दूं। यहाँ भी एक से एक तेज लड़कियाँ हैं। फिर किंचित् मुस्करा के बोली थीं, ।

मैं भी कुछ और बनना चाहती थी, पर आज जहाँ हूँ, बहुत खुश हूँ। तुम जैसी अनेकों प्रतिभाशाली लड़कियों के साथ हूँ। अगर कुछ और बनती तो इतने सारे प्यारे चेहरे एक-साथ भला देखने को मिलते मुझे? और हाँ, टु बी वेरी फ्रेंक, टीनेजर्स के साथ मैं अपने को आज भी उम्र की उस दहलीज पर पाती हूँ जहाँ तुम हो। कहती वे जोर से हॅंस पड़ी थीं।




जया के ओठ शायद मुस्कराने के लिए उद्यत हो कुछ खिंचे, फिर सिकुड़कर तुरन्त ही पूर्ववत् आ गए थे। मानो कोई गलती करते अचानक उसे अपनी भूल याद आ गई थी।

टेबिल पर रखी घण्टी बजा मिसेज चक्रवर्ती ने सुप्रिया को बुलाने का आदेश दिया था। बहुत प्रतिभाशाली और वाचाल सुप्रिया ही जया का मौन तोड़ सकेगी।

सुप्रिया, यह तुम्हारी रूममेट रहेगी। इसका सबसे परिचय करा देना। हाँ, जया कुछ शर्मीली है, इसका पूरा दायित्व तुम पर है। जाओ जया, तुम्हारा सामान कमरे में पहॅुंच जाएगा। कहती मिसेज चक्रवर्ती व्यस्त हो उठी थीं।

दो दिन बाद ही सुप्रिया उनके कमरे में हाजिर थी,

मैडम, मैं जया के साथ कमरा शेयर नहीं करूँगी। वह तो पत्थर की मूर्ति की तरह निश्चल बैठी रहती है। हर बात के उत्तर में बस सिर हिलाकर हाँ या ना कर देती है। आप समझ नहीं सकतीं, उसका साथ कितना बोरिंग है।

सुप्रिया! उस लड़की के मन में जरूर कोई काँम्प्लेक्स, कोई गुत्थी है। तुम मनोविज्ञान की छात्रा हो। मैंने जान-बूझकर उस लड़की को तुम्हारे साथ रखा है, ताकि तुम उसकी समस्या सुलझा सको। यह लड़की तुम्हारे लिए चैलेंज है। मुझे पूरा विश्वास है, तुम जीतोगी।

सुप्रिया के मुड़ते ही उन्होंने फिर पुकारा था,

उसकी समस्या जैसे-जैसे सुलझाती जाओ, मुझे खबर देती रहना। तुम्हें कभी मेरी जरूरत हो तो मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ। बेस्ट आँफ लक माई गर्ल!

सुप्रिया ने उनकी चुनौती स्वीकार कर ली थी। जया के रूप में दिन-रात पढ़ने के लिए उसे मानो जीती.जागती पुस्तक मिल गई थी। एक दिन उल्लास से दमकते चेहरे के साथ सुप्रिया फिर उनके कमरे में पहॅुंची थी-

मैडम, जया अब एकदम ठीक हो जाएगी। आप नहीं जानतीं उसके पापा कितने क्रुएल हैं। घर में एकदम आर्मी का डिसिप्लिन रखते हैं। अगर उनके मन के विरूद्ध कोई सोचे भी, तो वे उसे खत्म कर डालेंगे।

जया की मम्मी बहुत परेशान रहती थीं। अन्ततः दो छोटी बच्चियों को उनके पिता के संरक्षण में छोड़ इस जगत से विदा ले ली। मातृविहीना बच्चियों को पिता का प्यार कभी न मिल पाया। रिश्तेदारी की एक वृद्धा ने जैसे-तैसे उन्हें बड़ा कर दिया। जया और उसकी दीदी अभिन्न थीं। अपने हर दुःख-सुख बाँटती वे कब बड़ी हो गई, पता ही न लगा।

फिर काँलेज में दीदी का अफेयर शुरू हो गया था। मनीष के पास निर्धनता की अपार सम्पत्ति थी। विधवा माँ, छोटे भाई के साथ ट्यूशन्स करता मनीष एम एस-सी में पहॅुंच गया था। जया के घर के सामने ही एक छोटी कोठरी में पूरा परिवार रहता था। मनीष एम एस-सी में जरूर टाँप करेगा, जया की दीदी को विश्वास था। बस, उसके बाद वह किसी-न-किसी प्रतियोगिता में जरूर आएगा, फिर दीदी और उसका विवाह होगा………………..




जया की दीदी अपने मोहक सपनों में जया को भी सम्मिलित रखती थीं। जया की समझ में नहीं आता था, दीदी जल्दी से मनीष जी से विवाह क्यों नहीं कर लेतीं? सुनकर दीदी हॅंस देती थीं,

पगली, जब तक मनीष कोई बड़ा आँफीसर नहीं बन जाता, भला पापा उससे बात भी करेंगे?

जया की इण्टरमीडिएट की परीक्षा समाप्त हुई थी। सब सहेलियों ने पिक्चर जाने का प्रोग्राम बनाया था। पिक्चर से लौटने के बाद घर के सामने लगी भीड़ ने जया को सहमा दिया था। अन्दर जाने पर जो दृश्य सामने था, उसे देख जया मूर्छित हो गई थी। दीदी और मनीष दोनों के निश्चेष्ट शरीर ड्राइंगरूम में पड़े थे।

पुलिस इंस्पेक्टर पापा से कुछ पूछ रहा था। जया की स्थिति पागलों-सी हो गई थी। सब पापा को सांत्वना दे रहे थे,

क्या करेंगे कर्नल साहब, आज के लड़के-लड़कियाँ माता-पिता को कुछ नहीं समझते। अरे अगर आपने बेटी को अभी विवाह न करने के लिए कहा तो क्या गलत था? लड़का अपने पैरों पर खड़ा हो जाता तब क्या हॅंसी-खुशी विवाह न कर देते? बाप के बारे में एक पल को भी न सोचा।

एक और आवाज उभरी,

कमाल है, अगर पिता ने विवाह कुछ दिन बाद करने को कहा, तो उनकी पिस्तौल से उनके सामने आत्महत्या कर डाली! ये भी न सोचा, बेचारे बाप के दिल पर क्या गुजरेगी? किन मुश्किलों में बेटी को बड़ा किया, क्या यही दिन देखने के लिए?

देखने में तो मीता सीधी गऊ थी, पर अन्दर इतना क्रोध भरा था कौन जानता था?

जया विक्षिप्त-सी घूमती,




दीदी ने तो स्वयं कहा था, वह अपना विवाह नहीं करेंगी, फिर ये क्या हो गया, पापा?

होना क्या था! पढ़कर दिमाग खराब हो गया था उसका। मेरा सम्मान मिट्टी में मिला गई। खबरदार जो भूलकर भी उसका नाम मेरे सामने लिया तूने। भूल जा, तेरी कोई बहिन भी थी।

पापा से झिड़की खा जया मौन भले ही हो गई, पर अन्तर्द्वंद बढ्ता गया-

दीदी, तुमने ऐसा क्यों किया? अपनी जया को अकेला छोड़ गई? एक बार भी उसके लिए कुछ नहीं सोचा?

जानती हैं मैडम, आज पहली बार जया बहुत रोई है, वर्ना वह तो पत्थर हो चुकी थी। अब वह एकदम ठीक हो जाएगी। सुप्रिया उत्साह में कहती गई और मिसेज चक्रवर्ती का मन उस अकेली जया के लिए भर आया था। ‘पुअर चाइल्ड’ बस उनके मुख से इतना ही निकला था।

जया की कहानी सुन लेने के बाद वे उसके प्रति अत्यधिक सतर्क हो उठी थीं। प्रायः उसे अपने कक्ष में बुला उसका हालचाल पूछतीं। वे भूल जातीं कि वे एक कड़ी प्राचार्या के रूप में प्रसिद्ध हैं। गर्ल्स काँलेज के कम्पाउंड में ही उनका बॅंगला था। पति जयन्त चक्रवर्ती विवाह के दो वर्षो बाद ही उन्हें अकेला छोड़कर चले गए थे। बहुतों ने उनसे पुनर्विवाह का आग्रह किया, पर यह एकाकी जीवन ही उन्हें रास आया।

यूं तो काँलेज की सभी लड़कियाँ उनकी अपनी थीं, पर मातृविहीना इस जया के प्रति उनका ममत्व कुछ अधिक ही हो उठा था। यूँ अब जया साथिनों से खुलने लगी थी, चेहरे पर ताजगी आने लगी थी। सुप्रिया ठीक ही कहती है, कुछ दिनों में वह बिल्कुल सामान्य जरूर हो जाएगी। कभी इंगलिश आँनर्स की कक्षा लेतीं मिसेज चक्रवर्ती जया को खोया पातीं तो फौरन टोक देतीं, जया, जिन्दगी की सचाई से भाग जाना बहुत आसान है, पर उस सचाई से जूझना, उस पर विजय पाना बहुत कठिन है।

पर मैं तो जिन्दगी की कठोर धरा पर ही सोती-जागती हूँ, मैडम! स्पने देखने का परिणाम अपनी आँखों से देख चुकी हूँ।

मिसेज चक्रवर्ती स्तब्ध रह जातीं।

परीक्षा के दिनों में जया पुस्तकों में खो गई थी। एक बार फिर वही मौन! पर परीक्षा-परिणाम देख मिसेज चक्रवर्ती उछल पड़ी थीं। जया ने पूरे काँलेज में सर्वोच्च् अंक पा विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान पाया था।

इस बार तुम्हें पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम आना है जया, समझीं? उत्साहित वे कहती गई।

उत्तर में जया मौन रह गई थी। दशहरे की छुट्टियों में जया घर गई थी। लौटकर आई तो लगा, वह बुझी राख बनकर वापस आई है। होस्टल और कक्षा की छात्राएँ पूछ-पूछकर हार गई, पर वह नहीं खुली। सुप्रिया ने लाख सिर पटका, जया मौन ही बनी रही। आखिर इसे हुआ क्या? स्वयं उन्होंने सोचा था, शायद घर जाकर बहिन की याद फिर जाता हो गई होगी, इसीलिए चुप पड़ गई है। दो-चार दिनों में स्वतः सामान्य हो ही जाएगी।




और आज वह जलकर सचमुच राख बन गई है। जया में अब बचा ही क्या है? सब-कुछ जलकर भस्म हो चुका है। डाँक्टर कह रहे हैं उसने स्वयं आत्महत्या की चेष्टा की है- पर क्यों? बेचैन मिसेज चक्रवर्ती ने बाहर आ ड्राइवर से वापस गर्ल्स होस्टेल चलने को कहा था। भय और आतंक से लड़कियाँ सिमटकर काँमन रूम में आ गई थीं। उन्हें देखते ही सब दौड़ पड़ीं

जया बच जाएगी न, मैडम?

भगवान से प्रार्थना करो, वह अच्छी हो जाएगी।

पर वे खुद क्या उसके बचने के लिए आश्वस्त थीं? कहाँ बचेगा वह शान्त कमल-सा चेहरा? उस वीभत्स चेहरे के साथ कहाँ जाएगी जया? उद्विग्न मिसेज चक्रवर्ती जया के कमरे में घुस गई थीं। दरबान से उसके सन्दूक का ताला तुड़वा उन्होंने कमरा बन्द कर लिया था।

सन्दूक का पट उठाते ही एक मुस्कराती युवती का चित्र सामने था। निश्चय ही वह जया की दीदी रही होगी। कपड़ों को उलटते-पुलटते जया के हाथ की लिखाई में एक लिफाफा दिखाई दिया। लिफाफे के अन्दर एक छोटी-सी पाकेट डायरी थी। पृष्ठ पलटती मिसेज चक्रवर्ती ने पढ़ना शुरू कर दिया था,

दीदी पापा से कितना डरती हैं! मनीष कितने अच्छे हैं! दोनों की शादी के बाद मैं पापा को छोड़ दीदी के साथ चली जाऊॅंगी। पापा के पास मन क्यों, बुझा-बुझा, सहमा-सा रहता है। मनीष और दीदी के साथ जी खोलकर कितना हॅंस पाती हूँ!”

दीदी कितनी परम्परावादी हैं! विवाह पापा के आशीर्वाद के साथ ही करेंगी वर्ना जिन्दगी-भर कुंआरी बैठी रहेंगी! जैसे दीदी पापा को नहीं जानतीं। और ये मनीष जी भी कितने अजीब हैं! अपनी जरा-सी भी बात नहीं रखते। जो दीदी कहेंगी, वही करेंगे।”

ये अचानक क्या हो गया है? मैं कैसे विश्वास करूँ दीदी और मनीष जी पापा से लड़े होंगे? नहीं, मेरी दीदी कभी पापा को नाराज नहीं कर सकती थी। फिर स्वयं दीदी ने ही तो कहा था- मनीष की नौकरी लगने के बाद ही विवाह करेंगी। सच किससे पता करूँ? पापा से बात करते भी डर लगता है।

दशहरे की छुट्टियाँ- आज घूमते हुए आम के बाग की ओर निकल गई। मन बहुत उदास है, इसी बाग में दीदी के साथ कच्चे-पक्के आम चुनते थे। माली-नहीं, रामू काका की बेटी फुलवा के साथ कितना खेलते थे। कहाँ गई फुलवा? अरे वाह, खूब गहनों में सजी फुलवा अपनी झोंपड़ी में ही मिल गई। मानो अपना कोई बहुत आत्मीय मिल गया।

फुलवा! हम दोनों लिपटकर रोए जा रहे हैं,

कहाँ चली गई थी, फुलवा? देख, दीदी हमें अकेला छोड़ गई है। जानती है, दीदी ने एक पल को भी मेरा ख्याल नहीं किया। क्यों किया दीदी ने ऐसा, फुलवा?

फुलवा चुप रही।

फुलवा, चुप क्यों है? बता न फुलवा, दीदी ने क्यों किया ऐसा?

दीदी ने कहाँ किया जया, वो तो साहिब………… बात अधूरी छोड़ फुलवा आतंकित हो चुप क्यों हो जाती है?

सच बता फुलवा, तुझे मेरी कसम! …………क्या हुआ था?

किसी से कहोगी तो नहीं?

किसी से नही कहूँगी। सच, जल्दी बता, क्या हुआ था?

मॅुह पर उॅंगली रख चुप रहने का संकेत दे फुलवा मुझे एकान्त में खींच ले गई थी। फुसफुसाते हुए फुलवा ने बताना शुरू किया था-




कर्नल साहिब उस दिन अचानक दोपहर में आ गए थे। दीदी मनीष के साथ कमरे में थीं। बाहर का दरवाजा खोल मैं ही निगोड़ी उस दिन कचरा फेंकने बाहर गई थी। धड़धड़ाते हुए कर्नल साहिब जैसे ही अन्दर पहॅुंचे, उन दोनों को कमरे में पा, उनका पारा ऊपर चढ़ गया। बहुत संकोच से मनीष ने जब बताना चाहा- वे दोनों विवाह करना चाहते हैं पर उनके आशीर्वाद के बिना विवाह असम्भव है- बिना सोचे कर्नल साहिब ने धाँय से मनीष पर गोली चला दी थी। मनीष धरती पर लोट गए थे। दीदी ने पापा के हाथ से पिस्तौल छीन अपने सीने में दाग ली थी। दीदी चीखीं। मैं जैसे ही वहाँ पहॅुंची, साहिब ने धमकी-भरे स्वर में कहा था-

खबरदार, किसी से कुछ नहीं कहना! तुम घर पर ही हो। फौरन बाहर भाग जाओ। अपने बापू को भेज देना। अगर कुछ मुंह से निकला तो खत्म कर दूंगा।

पागलों की तरह भाग नदी-किनारे पहुंच न जाने कितनी देर मैं रोती रही। तभी बापू मुझे खोजते आ पहॅुंचे थे-

‘हमने बरसों इस घर का नमक खाया हैं, अगर तेरे मॅुंह से कुछ अनाप-शनाप निकला तो मैं तेरा पिता नहीं, फुलवा!’ बस पिस्तौल पर तो दीदी की उॅंगलियों के निशान थे ही। तेरे पापा तो जाड़ों में हमेशा दस्ताने पहनते हैं। तो बस, आत्महत्या का मामला आसानी से बन गया न! कर्नल साहिब ने एक महीने में ही मेरी शादी करा दी ताकि बापू और आभार से दब जाएँ। पर सच मान जया, मैं रातों को सो नहीं पाती।

‘खूनी’ …………. मेरा जी चाहा था, जोरों से चीख पडूं, पर शक्ति जवाब दे गई थी। पापा किस सफाई से बच गए! मेरा रोम-रोम पापा से घृणा करता है। मैं उनका मॅुंह भी नहीं देखना चाहती। इसीलिए मुझसे कहा था बी ए कर डालो, काँलेज में लड़कों का साथ मैं पसन्द नहीं करता। जबरदस्ती बी ए में मेरा एडमीशन करा गए। हाँ, प्रिंसिपल को देखकर लगता है, माँ ऐसी ही रही होंगी। सुप्रिया भी दीदी की तरह बातें करती है।

कल पापा मेरी शादी की बातें कर रहे थे। कौन होते हैं वे मेरे? मेरी स्नेही दीदी के हत्यारे से मेरा क्या सम्बन्ध? पापा से बदला लेना है। क्या शादी के बाद आत्महत्या करूँ।? नहीं, तब तो दोष उस पति-नामधारी जीव का होगा। पापा को स्पष्ट लिख दूँगी- मैं उनकी असलियत जानती हूँ, उनसे बदला लेने के लिए मर रही हूँ, पर मेरे मरने से पापा का क्या बिगड़ेगा? वे क्या जानें, प्यार किसे कहते हैं?

याद आ रही है रजनीश की- मनीष का शायद कजिन था। मेरे पास जब भी आता, दीदी और मनीष मुझे छेड़ते थे, मैं लाल पड़ जाया करती थी। वह भी डाँक्टरी पढ़ना चाहता था। मैं भी डाँक्टर बनना चाहती थी। उसके पास इच्छा-पूर्ति के साधन नहीं थे और मैं साधन होते हुए भी विवश थी। पापा भला उसे स्वीकार कर पाते? ऊॅंह, अब रजनीश न जाने कहाँ होगा। एक खूनी की बेटी से भला कोई विवाह करता है?

पापा ने दीदी को मारा है। क्या वे नहीं जानते थे, मनीष के बिना दीदी नहीं रह सकतीं? मनीष को मार पापा ने दीदी के जीवित रहने की हर सम्भावना खत्म कर दी थी। अच्छा हुआ, जो दीदी ने अपने को समाप्त कर डाला। घुट-घुटकर मरना तो नहीं पड़ा। दो दिन पहले पापा दीदी को कुलक्षणी ठहरा मुझे उपदेश दे रहे थे। पापा चाहते हैं, उनका कहना मान मैं खानदान का नाम ऊॅंचा करूँ। क्या प्यार करना पाप है? प्यार जैसी पवित्र चीज पर लांछन पापा ही लगा सकते हें, जो प्यार का आस्तित्व ही नहीं जानते। मेरा रोम-रोम जल रहा है। इस आग से क्या चिता की आग ज्यादा ठण्डी नहीं होगी? पापा एक पल को भी अपने को अपराधी क्यों नहीं मानते? दीदी की उन्हें बिल्कुल याद नहीं आती, वर्ना मरने के बाद भी वे दीदी को दोषी ठहराते? अब और मैं जीना नहीं चाहती, अपने को और नहीं समझा सकती।

मिसेज चक्रवर्ती स्तब्ध रह गई। धिक्कार है उनके प्राचार्यात्व को! लड़की मन की आग में जलती रही और वे कुछ भी न जान सकीं। जया की लिखाई में उसके पापा के नाम एक लिफाफा था। जी में आया, जया का वह पत्र सीधे पुलिस को थमा दें, ताकि उस खूनी को दण्डित किया जा सके, पर वह कुशल खिलाड़ी दूसरी बेटी की आत्महत्या का कारण भी खोज, स्वयं बच जाएगा। एक माली की बेटी की बात पर कौन विश्वास करेगा, जब कि स्वयं उसका पिता स्वामी के पक्ष में साक्षी देगा। क्या भय से वह लड़की मॅुंह भी खोल सकेगी? कहीं जया पिता से घृणा करने के कारण समाज की दृष्टि में दोषी न ठहरा दी जाए!

पत्र और डायरी को यत्न से अपने पर्स में धर वे कमरे से बाहर आ गई थीं। यह पत्र वे स्वयं उसके पिता को देंगी ताकि बेटी द्वारा दिए दण्ड को वह कैसे सहेगा, देख सकें।

बाहर सबके चेहरों पर लिखे प्रश्न देख शांत-निर्विकार स्वर में बोलीं,

कहीं कुछ नहीं मिला। कमरे में दिया जल रहा था लगता है, लौ से दुर्घटना हो गई।

बोझिल कदमों से अपने को खींचती पलॅंग पर पड़ आँखें मूंद ली थीं, बस अब और दुःख सहने को जया न रहे। शायद वे बुदबुदाई थीं।

डॉ पुष्पा सक्सेना 

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