खाली कोना-रीटा मक्कड़

आज  नीरजा की आंखों से नींद कोसों दूर भाग गई थी।दिमाग को विचारों की उथल पुथल ने घेर रखा था। उसको खुद को ही समझ नही आ  रहा था कि वो अंदर से खुश है या उदास है ।

एक बार कहीं पढ़ा था कि ज़िन्दगी एक किताब है जिसमे हर दिन हम नए पन्ने पलटते हैं और पढ़ते हैं  ज्यों ज्यों इसमें हम नए पन्ने पढ़ते जाते हैं पुराने शायद धुँधले पड़ते जाते हैं।

लेकिन कुछ पन्ने या शायद कुछ यादें ऐसी अवश्य होती हैं जो उम्र भर इंसान के साथ चलती रहती हैं। फिर चाहे वो कड़वी हों या मीठी।

ज़िन्दगी में चाहे सब कुछ मिल जाये वो यादें मन के एक खाली कोने में हमेशां अपनी जगह बना कर रखती हैं और कभी न कभी किसी अकेले पन के पलों में या तो वो चेहरे पर मुस्कान लाती हैं या फिर आंखों को भिगो जाती हैं।

लेकिन आज तो ….आज का दिन तो समझ से परे था। जब  उमर के इस पड़ाव पर वो उस किताब के जिन पन्नो की स्याही ही वो मिटा चुकी थी। वो फिर से उसके सामने इस तरह दोबारा जाग्रत होंगे ये तो उसने कभी सोचा भी नही था।

आज अचानक से वो नाम जो कभी उसके दिल मे बसा करता था इस तरह से उसके सामने आ गया था कि वो तो हक्की बक्की ही रह गयी थी। नाम के साथ फोन नम्बर,

और जब उसने उस नाम को 2..3 बार पढ़ा तो उसका दिल धक धक करने लगा कि हो न हो ये वही होगा।

क्योंकि उसको पता था कि उसने कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद अपने पापा का बिज़नेस जॉइन कर लिया था। लेकिन साथ साथ उसने एस्ट्रोलॉजर और वास्तु की पढ़ाई भी शौकिया तौर पर की थी और इस काम से लोगों की मदद करके उसे बहुत खुशी मिलती थी।


उसकी एक दोस्त ने जब उसको बताया कि उसने अपना घर बनाने के लिए किसी की वास्तु में मदद ली है और वो बहुत अच्छा एस्ट्रोलॉजर भी है तो उसने भी अपनी दोस्त को उसका नम्बर भेजने के लिए कहा।

जब उसने अपनी समस्या के लिए या यूं कहिये कि अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए फोन लगाया तो वो एक ही बार मे उस आवाज को पहचान गयी । फिर बातों का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि दोनों को ही समय का पता ही नही चला।

वो कहते हैं ना कि किसी किसी की ज़िंदगी मे काश …काश ही रह जाता है।काश उस समय दोनो में से किसी ने पहल की होती।काश दोनो ये ना सोचते कि पता नही वो मुझसे प्यार करता है या करती है या नही तो आज ज़िन्दगी की तस्वीर कुछ और ही होती।

और आज उम्र के इस पड़ाव पे आकर पता चला कि वो भी उससे उतना ही प्यार करता था जितना वो करती थी। लेकिन तीस साल पहले समय ही ऐसा था कि माँ बाप ने जब नीरजा की शादी कहीं और कर दी तो उसने भी माँ बाप की मर्जी से ही शादी कर ली और दोनो ने ही अपने अधूरे प्यार को अपने दिल के एक कोने में दबा दिया और अपनी ज़िंदगी मे आगे बढ़ गए।

अब जब सामने आए भी तो उस समय जब ज़िन्दगी में एक ठहराव सा आ जाता है। किसी से कोई शिकवा, शिकायत नही रहती। दोनो ने अपनी अपनी बातें करके अंत मे यही फैसला किया कि वो कभी भी सामने आये तो किसी पर जाहिर नही होने देंगे कि वो एक दूसरे को जानते हैं और इन यादों को  बाकी की ज़िंदगी फिर से दिल के उसी कोने में वापिस दबा देंगे।


सारी रात नीरजा कभी उन मीठे पलों को याद करके मुस्कुराने लगती और कभी  उदासी  से उसकी आंखें भीग जाती कि काश हम कह पाते।

विचारों के इन्ही उतार चढ़ाव में कब सुबह हो गयी पता ही नही चला। खिड़की से जब भोर के उजाले की किरणें उसके कमरे में आई तो उसने पास में सोए हुए अपने पति का चेहरा देखा कितना शांत और बेफिक्र।

उसने हाथ जोड़ कर भगवान का शुक्रिया अदा किया और चल पड़ी अपने रोज के कामों की शुरुआत करने

लेकिन आज मन मे एक सकून था ।

नही तो सारी जिंदगी मन में ये उलझन तो रह ही जाती कि जिससे वो इतना प्यार करती थी उसके मन मे भी उसके लिए कुछ था भी कि नही।

कम  से कम मरने से पहले दिल का कोई कोना खाली तो नही रहेगा ।

मौलिक रचना

रीटा मक्कड़

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