उसकी छोटी-छोटी आँखों में नमी भर गई थी। पलकें भीग रही थीं, उसे बहुत दर्द हो रहा था। आज वह अपनी माँ के लिए बहुत बेचैन हो रही थी। माँ को सबसे ज़्यादा झकझोर कर उसे बचाने की कोशिश में लगी थी।
वह दिखाना चाहती थी कि, “माँ, मैं तेरे साथ हूँ, तू टूट मत, मुझे बचा ले।” तभी किसी ने माँ को जोर से धक्का मारा और माँ नीचे गिर पड़ी। नीचे गिरते ही मुझे लगा कि मेरी जान निकल जायेगी, लेकिन माँ गिरते ही उठकर बैठ गई और मुझे समझाने लगी। तब मेरी जान में जान आई।
घर के सभी लोग जोर-जोर से समझाने की कोशिश कर रहे थे, पर वह समझ नहीं पा रही थी कि लोग क्या कर रहे हैं। लेकिन इतना तो समझ रही थी कि सब मेरी माँ से नाराज़ हैं। ऐसा क्या किया था माँ ने? इतनी तो अच्छी थी, मुझसे इतना प्यार करती थी, तो फिर सब क्यों समझा रहे थे? उस पर हाथ क्यों उठा रहे थे?
मुझे कुछ समझ नहीं आया। तभी फिर से माँ की चीख सुनाई दी और किसी के ज़ोर से समझाने की आवाज़ आई।
तुरंत ही एक झुंड दौड़कर आ गया, “अब खत्म ही कर दो, ले चलो छोटे डॉक्टर को बुला लाओ।”
डॉक्टर की बात सुनकर माँ को क्या हो गया? क्यों माँ ज़मीन पर पड़ी छटपटा रही है? कभी किसी के, तो कभी किसी के पैर पकड़कर माफी माँग रही है। बार-बार रो-रोकर डॉक्टर को न बुलाने को क्यों कह रही है?
तभी दरवाजा धक्का देकर खुला और माँ जोर से चिल्ला कर बेसुध हो गई। बेसुधी की हालत में ही वह बहुत भारी हो गई थी।
मुझ पर यह झटका बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मुझे और मेरे बच्चे को इस दुनिया में कोई नहीं चाहता है।
तभी सब लोगों से डॉक्टर ने पूछा कि क्या हुआ?
तभी वहाँ खडे़ एक आदमी ने डॉक्टर के कान में कुछ कहा ,उस बात को डॉक्टर ने बेसुधी की हालत में ही कुँआरी माँ को “इंजेक्शन” लगा दिया।
पर जैसे ही माँ को इंजेक्शन लगा, मेरे हाथ-पैरों में सुन्नपन होने लगा, हाथों की उंगलियों की नसें दबने लगीं।
पूरा शरीर दर्द की लहरों से कांपने लगा, मेरी गर्दन काम नहीं कर रही थी।
मैं माँ को गले लगाना चाहती थी, पर मेरी आवाज़ गले में ही घुट गई।
और तभी मेरे शरीर में बर्फ-सी ठंडक फैलनी शुरू हो गई।
माँ के मुंह और नाक से ठंडक महसूस होने लगी और मेरी भी गर्दन की नस से ठंडक बाहर निकलने लगी।
मैंने माँ की तरफ देखा तो लगा जैसे वह मृत्यु के गर्त में धीरे-धीरे समा रही हो, और उसके अंदर भी कुछ समा रहा था।
और एक क्षण के लिए उसे ऐसा लगा जैसे माँ कह रही हो, “मेरे बच्चे, मैं तुझे जन्म नहीं दे सकी, पर मेरे कसूर की सजा तुझे क्यों मिली?” क्यों इस दुनिया में नफरत करना आसान है और प्रेम करना इतना कठिन ।
निरुपमा कपूर
आगरा