सुनिए देखिए जरा मानसी ने पति रमेश को अपने गले में पहना हार दिखाते हुए बोला कैसा लग रहा। अच्छा है, पति ने उत्तर दिया मगर तुम इसे कहां से उठा लाई, अरेऽऽ चोर उचक्का समझा क्या मुझे ? उठाकर नहीं लाई सुनार से किश्तों में खरीदा है बस दस हजार रुपए महीने की किश्त देनी होगी ज्यादा नहीं, इतना तो आप आसानी से दे सकते हो देखों मैं आपके लिए करवा चौथ का ब्रत भी तो रखती हूँ मेरे आस-पास सभी पड़ोसन महिलाओं के पास कितने सुंदर सुंदर हार हैं ।
एक मैं ही हूँ, जिसका गला हमेशा सूना सूना रहता है। एक चाँदी का मंगलसूत्र ही है मेरे पास ले देकर वहीं पहने रहती हूँ । हर तीज त्यौहार में, शादी को नौ साल हो गए लेकिन आपसे इतना नहीं हुआ मेरे लिए एक हार ही खरीद सको ये तो मेरी ही हिम्मत मेरा दिमाग जो खरीद लिया बस आपको कुछ नहीं करना महिने की किश्त ही देनी होगी। मानसी ऐसे इठलाती बलखाती बोली जैसे जाने कितनी बहादुरी का काम कर दिया हो।
रमेश ने एक बार मानसी की तरफ देखा और सर पकड़ कर बैठ गया । हे भगवान दस हजार महिने की किश्त कहां से लायेगा ले देकर पचास हजार आते हाथ में जिसमें फ्लैट का किराया, बच्चों का एडमिशन कराया, उसमें खर्चा हुआ अब महिने भर की फीस बच्चों के स्कूल बस की फीस मेड का खर्चा राशन पानी दूध बिजली का बिल कैसे होगा सब…? पहले ही बजट को मुश्किल से संतुलित किया था। बोला मानसी तुमसे किसने कहा था हार किश्तों में लेने को…मानसी थोड़ा रूकी रमेश के मुह में देखा फिर सकपका कर बोली -क्या मतलब तुम खरीद कर देने वाले थे क्या ?
अरे पहले बताना था मैंने खामख्वाह पड़ोसन की खुशामद की, सुनार वो बड़े बाजार में नुक्कड़ की दुकान वाला उसके भाई का साला जो है बिना एडवांस लिए आसानी से मान गया और पता है, सभी पडोसनों को भी दिलवाती है वो गहने…रमेश मानसी की समझ पर झुंझलाया मानसी तुमको कुछ समझ है या नहीं, कहां से आयेंगे दस हजार पहले ही तनख्वाह को घर में एडजस्ट करना मुश्किल हो रहा ऊपर से तुम हो कि खर्चा लेकर बैठ गई ।
मानसी बोली आप परेशान न हों मैं करती हूँ न कुछ न कुछ सब बचा लुंगी बस आप देने को तैयार रहना। देखना इस करवा चौथ पर यही हार पहनूंगी अभी दिखाया नहीं मैंने किसी को सरप्राइज होगा देखना कैसे जलेंगी सब, आपको तो मेरे स्टेटस का बिल्कुल भी ख्याल नहीं है एक मैं हर साल आपके लिए करवा चौथ का ब्रत रखती हूँ लम्बी उम्र की दुआएं मांगती हूँ..मानसी उत्साहित हो बोली।
रमेश क्या करता ? मानसी सुनने वाली तो थी नहीं सोचने लगा वैसे तो मानसी व्यवहार कुशल अच्छी पत्नी एक अच्छी माँ के सभी गुण मौजूद थे उसमें ये गहनों का लालच पता नहीं कहां से आ गया आज जाने कैसे गहने उसकी प्राथमिकताओं की सूची में ऊपर हो गये। ये अड़ोस-पड़ोस की देखा-देखी और वो पडोसन जिसके भाई का साला सुनार है काम धाम चलता नहीं होगा उसका और वो पड़ोसन इन भोली भाली महिलाओं को ललचाकर अपने जाल में फंसाकर गहने बिकवा दिया करती होगी किश्तों का लालच दे, चूना लगा देती जाने… ये मानसी को समझ कैसे आयेगा?
दूसरे दिन मानसी भोर सवेरे ही उठ गई बच्चों का नाश्ता बैग सभी पैक कर पति से बोली चलिए उठ जाइये आप भी नहा धो लीजिए। लेकिन मैं तो आठ बजे तक उठता हूँ। मुझे तो नौ बजे जाना ऑफिस अभी तो सात बजे हैं बच्चों को जाना आठ बजे तो, राकेश अलसाई आवाज में बोला… हाँ तो, किश्त का इंतजाम नहीं करना आज से वैन से नहीं आप अपनी बाइक से छोड़ेंगे बच्चों को वैन के पैसे बच जायेंगे।
रमेश ने माथा पीट लिया मतलब चैन से सोना भी दुश्वार नहीं अब तो ये मानसी तो हाथ धोकर पीछे पड़ गई किश्त के चक्कर में जाने क्या क्या करवायेगी ? मरता क्या न करता उठा नहा-धोकर बच्चों को स्कूल छोड़ने निकल पड़ा। छोड़कर आ रहा रास्ते में बाईक खराब हो गई एक घन्टा ठीक करवाने में निकल गया मैकेनिक कह रहा शाम को ले जाये अब ऑफिस भी जाना तो कुछ ज्यादा ले दे अर्जेंट काम करवाया।
रमेश घर पहुँचा तो मानसी ने नाश्ते में बनाये परांठे ही लंच के लिए पैक कर बोली आज से नाश्ता लंच एक ही बना लेंगे। रमेश को तो दोपहर लंच में चावल पुलाव दाल सब्जी खाना पसंद था पर क्या कहता चुपचाप लंच बाक्स बैग में रख लिया, कलेष तो करना नहीं था घर में…जाने क्या क्या देखने को मिलेगा इस किश्त के चक्कर में, खैर जैसे चल रहा चलने दो ..?
इस बाईक को ठीक करवाने के चक्कर में ऑफिस भी देर से पहुँचा ऊपर से बड़े अधिकारी की डांट खाकर सारा दिन मुड अलग खराब रहा । घर आया तो पत्नी ने रात के खाने में परांठे और दही सामने रख दिए बोली सब्जी ताजा नहीं आ रही दोनों ठैली पर सड़ा गला सामान भरा था । जिसे खाकर पेट खराब नहीं करना हमने, अब बड़े बाजार जाकर सब्जी लाने का समय तो बच्चों के साथ मिलता नहीं कह रहा सब्जी वाला लायेगा दो चार दिन में मंडी से ताजा सब्जियां।
रमेश ने चुपचाप परांठे और दही गटक लिए फिर पत्नी को ए सी चलाने को कह लेपटॉप में काम करने लगा। आधा घंटा हो गया गर्मी शबाब पर ए सी की हवा महसूस नहीं हो रही देखा पत्नी आराम से कुछ कपड़ों को व्यवस्थित कर रही ।
रमेश ने आवाज लगाई मानसी ए सी ऑन कर दो कहां है रीमोट लाओ मुझे दो मानसी बोली- क्या जरूरत है..? पंखा तेज कर देती हूँ । खिड़की खोल दीजिए, देखिए कितनी ठन्डी हवा आ रही है। ताज़ा हवा सेहत के लिए अच्छी होती है। पता है आपको ऊपर फ्लैट में रहने वाले वर्मा जी की रीढ़ की हड्डी खराब हो गई डाक्टर का कहना ए सी अवाइड करना होगा। आप भी सारा दिन ऑफिस में ए सी में रहते हो सेहत का ख्याल है की नहीं आप को तो फिक्र है नहीं, मुझे तो ख्याल रखना होगा न, और वैसे भी बिजली का फालतू बिल बचेगा किश्त भी देनी है, मानसी इतने गर्व से बोली जैसे जाने कितना बड़ा काम कर रही हो ।
रमेश का तो माथा ही ठनक गया सीधे लेटकर लम्बी सांस लेकर बोला इस किश्त के लिए जाने कितने पापड बेलने पड़ेंगे। दूसरे दिन सन्डे सुबह सुबह खटर पटर की आवाज सुनकर रमेश बाहर आया तो देखा मानसी अचार पापड़ बनाने में लगी वो बोला अरे मानसी यह क्या कर रही हो ?
इतना अचार पापड़ क्या होगा इसका ? अजी कुछ नहीं ये शाम तक बना कर देने है एक संस्था से कान्टैक्ट मिला है बहुत अच्छा पैसा मिल रहा मैंने ले लिया हाथ में, सन्डे को खाली रहती हूँ सबकी छुट्टी तो आराम से पूरा कर भिजवा दूंगी शाम तक, कल मेड मायरा को कह दिया था छत पर सूखा कर रख गई सभी सामान अब किश्त आराम से दी जा सकती है मानसी बोली ।
तभी बड़े बच्चे के कमरे में रोने की आवाज आती है मम्मी मम्मी मानसी दौड़कर जाती तो देखा उसके सर में बहुत दर्द बता रहा और बुखार भी काफी तेज वो घबराकर उसको डाक्टर के पास लेकर जाते हैं वो टैस्ट करने को कहता डेंगू निकलता है डॉक्टर बच्चे का विशेष ध्यान रखने और मच्छरों से एहतियात बरतने को कहता है। मानसी कहती हैं इसकी देखभाल में तो सब काम छूट जायेगा हे भगवान अब किश्त का क्या होगा? मैं तो करवा चौथ तक सभी किश्त चुकाने की सोच रही थी ।
किश्त का नाम सुनते ही रमेश गुस्से से चिल्लाता है किश्त किश्त किश्त मै तंग आ गया हूँ यह शब्द सुन सुनकर भाड़ में जाए तुम्हारी किश्त तुम्हारा करवा चौथ का ब्रत रातभर गर्मी से परेशान नींद नहीं आई, खिड़कियां खोल मच्छरों का आगमन रात भर उनका गीत कानों में बजता रहा काट काटकर कर बुरा हाल कर दिया। बच्चा अलग बीमार कर दिया भरी दौपहरी में धूप में लाती हो कम से कम वैन में बचाव तो होता था उसका ।
क्या करना ऐसे गहने ? जिसके लिए इतनी कीमत चुकानी पड़ रही है दो पल का चैन सुकून नहीं इन गहनों के चक्कर से अच्छा कुछ पढ़ने घूमने व्यायाम या सहेलियों के साथ हंसी-मजाक में समय बिताओ जिसमें स्वस्थ मंनोरंजन होगा तुम्हारा,.. मानसी बोली- लेकिन मैं करवा चौथ के ब्रत की सोच रही उसमें पहनने के लिए गहने…बस करो ऐसा ही चलता रहा तो हो जायेगा करवा चौथ सब तुम्हारा रमेश गुस्से में बोला ।
मानसी बोली- कैसी बातें करते हो..? ब्रत तो तुम्हारे लिए रखना ही है मुझे पत्नी का धर्म निभाना है ….
ऐसा करना,.तुम बिना गहने पहने इस बार मेरे लिए ब्रत रख पत्नी धर्म निभा लेना रमेश बोला, और मैं भी तुम्हारे साथ तुम्हारे लिए ब्रत रख लुंगा पति धर्म निभा लुंगा बराबर हो जायेगा हिसाब ठीक है।
नहीं, नहीं कैसी बात करते हैं आप..? आप कहां ब्रत रखेंगे आप को भूखा रहने को डाक्टर ने मना जो किया है मुझे नहीं चाहिए गहने वहने मेरे लिए आप और बच्चे ही गहनों से कम हो क्या ? मेरा तो दिमाग ही खराब हो गया था जो पड़ोसन के चक्कर में आ गई और अपना सुख चैन हराम कर लिया मानसी बात की गम्भीरता को समझ बोली ।
ऐसा करती हूँ मै गहना वापस कर आती हूँ जब आपके पास पैसा हो तब ही दिलवा देना मुझे कोई जल्दी नहीं है मेरे लिए तो मेरा पति मेरे बच्चे सही-सलामत रहें मुझे और क्या चाहिए ? भाड़ में जाए गहना कहते हुए, मानसी ने ए सी आन कर दिया। पति रमेश ने भी लम्बी गहरी चैन की सांस ली बोला- शुक्र है देर आये दुरूस्त आये गहने का भूत भगाये ।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया