कभी-कभी जिद्दी होना भी अच्छा है – डॉ. पारुल अग्रवाल

अपर्णा काफ़ी समझदार लड़की थी। जिसमें वैसे तो सभी अच्छे ही गुण थे पर वो स्वभाव से थोड़ी जिद्दी भीं थी।जो एक बार करने की ठान लेती वो करके ही मानती। उसके मम्मी- पापा को भी कई बार उसका हठी स्वभाव देखकर यही लगता था की ये शादी के बाद ससुराल में कैसे सबके साथ रह पाएगी। खैर,शादी भी हो गई। शादी एक बहुत अच्छे नौकरीपेशा लड़के से हो गई पर ससुराल में बाकी सब लोगों का व्यापार था। थोड़े दिन ससुराल में रहने के बाद ही उसे ये अहसास हो गया था कि वहां पर घर की महिलाओं में उसके लिए एक अलग ही तरह का व्यवहार है क्योंकि वो नौकरी करती है। उन लोगों को लगता था की वो अपने परिवार का ध्यान उस तरह से नहीं रख पाएगी जैसे वो लोग रखती हैं। कुछ समय बाद वो अपने पति के साथ उस शहर में आ गई जहां उन दोनो की नौकरी थी।

कभी किसी अवसर पर ससुराल के सब लोगों का मिलना जुलना चलता रहता पर उन लोगों के व्यवहार में उसके लिए कोई बदलाव ना था। अब तो उसके एक बेटी भी हो गई थी।कई बार तो उसने अपने पीठ पीछे लोगों को ये भी बोलते सुना कि नौकरी और गृहस्थी एक साथ नहीं चल सकती, जिन घर की औरतें नौकरी करती हैं वो बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं दे सकती। बुरा तो उसको बहुत लगता पर फिर भी वो चुप रही। समय अपनी गति से चल रहा था, पर अचानक उसकी बेटी बहुत बीमार रहने लगी, बेटी का ख्याल रखने के लिए परिवार का कोई भी साथ नहीं था। बल्कि उसे तब भी यही सुनने को मिला हमने तो पहले भी बोला था की बच्चे की तरफ ध्यान दो, तब तो किसी ने हमारी सुनी नहीं। इस तरह की बातें सुनकर उसने कुछ किसी को ना बोलकर अपने पति से सलाह करके अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। साथ-साथ उसने ये भी निर्णय लिया की ये उसकी खुद की लड़ाई है जिसे उसे खुद ही लड़ना है।

थोड़े दिन की देखभाल के बाद बेटी ठीक हो गई । कुछ समय बाद जब उसने स्कूल जाना शुरू किया तब अपर्णा ने भी अपनी पढ़ाई नए सिरे से शुरू की। वो दिन भर बेटी और परिवार का ख्याल रखती और रात को खूब दिल लगाकर पढ़ती।उसका चयन बहुत बड़ी पोस्ट पर हो गया। जिससे उसको दोबारा से पहले से भी अच्छी नौकरी मिल गई । अब उसको समाज में भी अपनी एक अलग पहचान मिल गई थी। अपर्णा की देखादेखी घर में जो और भी बहू आ रही थी वो भी उसी की तरह नौकरी करना चाहती थी। ससुराल का माहौल भी थोड़ा बदल गया था क्योंकि अब अपनी आजकल की बहु के साथ तो समझौता करके चलने में ही भलाई थी। ये अपर्णा की ज़िद ही थी,जिसने उसे आज अपनी पहचान दिलवा दी थी। अपर्णा के मम्मी-पापा को भी आज अपनी बेटी पर नाज़ था। इस तरह अपर्णा की जो ज़िद उसके माता-पिता को उसकी एक कमज़ोरी की तरह लगती थी,वो ही आज उसे समाज एक नाम दिला गई थी।

ऐसी ही बहुत सारी खूबी हम सभी में होती हैं, बस जरूरत होती है पहचाने की। ये जरुरी नहीं है की अगर कोई जिद्दी है स्पेशली लड़की तो वो गलत है। कई बार जिद भी इंसान को मंजिल तक जाने का जुनून देती है।

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

 

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