आज अचानक रात में अपनी तीनों बेटियों और दामादों को देखकर उमा देवी की आंखों में आंसू भर आए, और कमजोर आवाज में बोली-” आप लोग अचानक रात में कैसे आ गए, चलो अच्छा ही हुआ आप सब एक साथ आ गए, मुझे अब शमशान घाट छोड़कर ही वापस जाना। ”
उन सब लोगों ने जब यह बात सुनी तो उनकी भी आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने कहा-” आप ऐसा क्यों कह रही हो मम्मी, हम तो आपको सही सलामत देखना चाहते हैं। ”
बेटियों ने कहा-” भाई सुमित का फोन आया था, कि आप डॉक्टर के पास जाने के लिए मान नहीं रही हो, और डॉक्टर ने कहा है कि आपको खून चढ़ाना बेहद जरूरी है। इसीलिए हम दौड़े चले आए। ”
कल सुबह ही हम डॉक्टर के पास चलेंगे। मम्मी ने कहा-” मेरे शरीर में बिल्कुल ताकत नहीं है, मैं अब नहीं बचूंगी और वैसे भी मेरी जीने की इच्छा खत्म हो चुकी है। ”
वह सब लोग मम्मी की हालत समझ रहे थे इसीलिए उन्होंने उस समय ना तो मम्मी से कुछ कहा और ना ही पूछा। सुबह वह मम्मी को लेकर डॉक्टर साहब के पास गए, डॉक्टर ने उन्हें चेक करने के बाद खून चढ़ाने के लिए अस्पताल में एडमिट कर लिया।
डॉक्टर साहब ने कहा -” आप लोगों ने अच्छा किया जो मेरे कहने पर आपने जल्दी फैसला ले लिया और इन्हें यहां ले आए वरना कुछ भी हो सकता था। ”
2 दिन अस्पताल में रहने के बाद, मम्मी को अपने शरीर में थोड़ी ताकत महसूस हुई और अस्पताल में ही सबके पूछने पर, उन्होंने कहा कि मेरी बहू सीमा मेरा बहुत तिरस्कार करती है, हर छोटी बड़ी बात में मुझे ऐसे सुनाती है जैसे कि मैं उसकी बहू और वह मेरी सास है। मैं अपना तिरस्कार कब तक सहूं, मुझे अब बर्दाश्त नहीं होता इसीलिए मेरी जीने की इच्छा खत्म हो चुकी है। ”
उनकी बात सबको सच लग रही थी क्योंकि सबको पता था कि उमा देवी बहुत ही शांत स्वभाव की समझदार और मिलनसार हैं।
पूछने पर उन्होंने बताया कि” शादी के इतने साल बीत जाने पर भी उसे खाना बनाना नहीं आता, मेरे दांत टूट चुके हैं और मैं खाना अच्छी तरह चबा नहीं सकती और वह दाल हो या सब्जी, कच्ची पक्की बनाकर मेरे आगे परोस देती है, यहां तक की उसके बच्चों को और उसके पति को भी, उसके हाथ का खाना पसंद नहीं आता जैसे तैसे हम लोग खाने को निगल लेते हैं, अगर हम उसे कुछ कहते हैं तो वह रसोई में जाकर बर्तनों को और सामान को पटक पटक कर गुस्सा निकलती है।
कभी-कभी बाहर पड़ोसियों से जाकर गप्पे लड़ाने लगती है और इतनी व्यस्त हो जाती है कि गैस पर सब्जी रखी है भूल जाती है और कितनी बार सब्जी जल चुकी है। अगर पानी जाने का समय हो जाता है तो मैं उठकर बाल्टिया भर देती थी, तो वह सारी भर्तियों का पानी नाली में गिरा देती है और उनको धोकर दोबारा भरती है, मेरे साथ ऐसा व्यवहार करती है मानो मैं कोई अछूत हूं। जब मैं ठीक थी तो कभी-कभी अपने लिए चाय बना लेती थी, तब मैं अपनी बहू के लिए भी चाय बना लेती थी,
लेकिन वह मेरे हाथ की चाय फेंक देती थी और उसे बर्तन को मांजने खड़ी हो जाती थी। और कभी-कभी तो मुझसे तू तडाक से बात करती है। एक बार मैंने कहा कि आंगन गंदा हो रहा है मैं अपनी पोती के साथ मिलकर धो लेती हूं। तब उसने बड़बड़ाना शुरू कर दिया कि कैसे बातें बना रही है जैसे मैं कभी आंगन धोती ही नहीं हूं, और उसे समय सचमुच आंगन बहुत गंदा था और ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने दो महीने से झाडू तक नहीं लगाया है।
जब इसके मायके वाले आने वाले होते हैं , तब यह बहुत ही ध्यान से अच्छा स्वादिष्ट खाना बनाती है और उसे देखकर बच्चे समझ जाते हैं कि आज मामा मामी आने वाले हैं, और अगर हम उनसे कहें कि यह खाना बनाना नहीं जानती, तो वह लोग कभी मानेंगे ही नहीं।
मेरे बेटे ने इसे कई बार समझाया है कि पूजा पाठ करना बहुत अच्छी बात है, लेकिन जब पति को और बच्चों को जब सुबह जाना हो तो,उस समय अपने पूजा पाठ के चक्कर में रोज उन्हें लेट करवा देना,सही नहीं है और फिर वह लोग जल्दी पहुंचने के चक्कर में अपना वाहन तेज चलाएंगे,,यह भी सही नहीं है, लेकिन यह समझने को तैयार ही नहीं है।
दूसरों के सामने यह मुझसे अच्छे से बात करती है लेकिन पीठ पीछे छोटी-बडी बातों में मेरा अपमान करती है, जब मैं बीमार नहीं थी तो हर तरह से मैं इसकी मदद करती थी। गर्म कपड़े अंदर रखना, डस्टिंग करना,सब्जियां लाकर देना,उन्हें धोकर काट कर देना, घर का राशन पानी लाना सब काम मैं ही करती थी,यह सिर्फ खाने और कपड़े धोने का काम करती थी, यहां तक कि मैं बैंक का काम भी खुद जाकर करती थी और जब मैं बीमार हो गई तो इसे खिचड़ी या दलिया बनाकर देने में भी बहुत आफत लगती है। कभी-कभी तो ताना मार कर कहती है खुद बना लो। मेरे शरीर में अगर ताकत होती, तो मैं खुद ही बना लेती।
थोड़े-थोड़े दिनों में मुझे जानबूझकर बताती रहती है कि मेरी उस सहेली की सास मर गई, आज उस दूसरी सहेली की सास भी मर गई, मुझे लगता है कि इसके मन में भी यही है इसीलिए मेरी अब जीने की इच्छा नहीं है। ” इतना कहकर उनकी आंखों में आंसू आ गए और वह उदास हो गई।
तब सब ने मिलकर सीमा को प्यार से समझाया। थोड़े दिनों तक सब कुछ ठीक था, लेकिन बाद में वह अपनी पुरानी लाइन पर चलने लगी। उसके माता-पिता तो थे नहीं, जो उसे महसूस होता।
लेकिन एक बार कुछ ऐसा हुआ कि उसके मन में थोड़ा बहुत पश्चाताप जागा,लेकिन वह पूरी तरह सुधरी नहीं। हुआ यूं कि वह एक बार जब अपने मायके पहुंची, तब उसकी भाभी ने एक छोटी सी बात पर उसका बहुत अपमान किया और अपने पति से उल्टी सीधी शिकायतें लगाकर उसका मायके में आना बंद करवा दिया और उसने जो खाना अब मायके में पहुंचकर,अपनी भाभी को खुश करने के लिए बनाया था, वह उसने डस्टबिन में डाल दिया यह कहकर कि हमें तुम्हारे हाथ का कुछ भी नहीं खाना। तब यह अपनी सास के सामने यानी कि उमा देवी के सामने बहुत रोई थी।
तब उन्होंने प्यार से समझाया था-” देखो सीमा, जहां पर आदर ना हो, वहां जाने का क्या फायदा, अपना घर अपना ही होता है। तुम्हारी दूसरी वाली भाभी अगर तुम्हारा सम्मान करती है तो तुम वहां जा सकती हो। अब अपने मन को शांत करो और सब कुछ भूल जाओ। ”
उसे दिन शायद सीमा को थोड़ा पश्चाताप हुआ था लेकिन थोड़े दिनों बाद उसने फिर वही लाइन पकड़ ली।
तब बहनों ने अपने भाई को समझाया कि तुम्हें ही कठोर कदम उठाना पड़ेगा, तुम्हें टेंशन ना हो जाए इसीलिए कई बातें मम्मी तुम्हें बताती नहीं है, लेकिन तुम्हें खुद समझना होगा और तुम अपनी पत्नी के साथ कठोरता से पेश आओ और उसे कहो कि मैं मां का अपमान बिल्कुल सहन नहीं करूंगा। अगर तुम मां का सम्मान करोगी तो तुम यहां रह सकती हो वरना अपना रास्ता नापो, हालांकि यह बात गलत है लेकिन उसे लाइन पर लाने का और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा।
उमा देवी की तीनों बेटियों ने भी उससे यही बात कही कि तुम्हें हर हाल में मां का सम्मान करना होगा,अगर हमें पता लगा कि तुमने किसी बात में मां का तिरस्कार किया है तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।
और फिर उन भाई बहनों की यह धमकी काम कर गई, धीरे-धीरे सीमा अपनी आदतों को सुधारने लगी, और शायद वह एक दिन पूरी तरह सुधर जाए, शायद इसी डर से कि मेरा तो मायका भी नहीं है।
अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली
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