” बेटा, तुम पढ़ी लिखी, समझदार हो…….तुम जो भी फैसला लेना चाहो ले सकती हो, हम तुमसे कुछ नहीं कहेंगे….” ममता ने अपनी बेटी प्रीती से कहा।
“अरे ये क्या कह रही हो आप, अपनी बेटी को समझाने के बजाय उसे ही उल्टी पट्टी पढ़ा रही हो….”प्रीती की सास शोभना जी नाराज होते हुए ममता से बोलीं।
“माफ करना बहिन जी, हमारी बेटी कोई दूध पीती बच्ची नहीं है जो हम उसे पढ़ाएंगे आखिर वो भी पढ़ी लिखी है, समझदार है….”
“वो तो दिख रहा है कि कितनी समझदार है तभी तो अपने सास श्वसुर को छोड़कर अगल रहने की बात कर रही है और हमारे बेटे को हमसे दूर करना चाहती है….और आप लोग हैं कि उसे समझाने की बजाय उसे ही बढ़ावा दे रहे हैं…ये उल्टी पट्टी नहीं है तो क्या है….”
ये सभी बहस प्रीती की ससुराल में हो रही थी जहां प्रीती के माता पिता को खुद शोभना जी ने अपनी बहू प्रीती की शिकायत करने और उसे समझाने के लिए बुलाया था।
हुआ यूं कि प्रीती अपनी पसंद से अपने पति अनिकेत के साथ अपनी 1 साल की बेटी के लिए कुछ शॉपिंग कर लाई जो पहले से शोभना जी को पता नहीं था….बस इसी बात को लेकर घर में हंगामा हो गया और बात इतनी बढ़ गई कि आज प्रीती और अनिकेत ने घर से अलग रहने का फैसला ले लिया ….
इसी वजह से शोभना जी ने प्रीती के घर फोन कर उसके माता पिता को बुला लिया। ये आज पहली बार नहीं था इससे पहले भी प्रीती की शादी के 3 सालों में उसके माता पिता को कई बार बुलाया गया था और हर बार इन्हीं बातों को लेकर झगड़ा होता था कि प्रीती ने शोभना जी से बिना पूछे रसोई में कुछ क्यों बना लिया या शॉपिंग क्यों कर ली और अगर कभी उसका पति अनिकेत उसका साथ दे देता
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तो उसे भी जोरू का गुलाम कहकर चुप करा दिया जाता जिसका गुस्सा भी फिर अनिकेत प्रीती पर निकालता…. लेकिन हर बार वो अपनी बेटी को ही समझाकर जाते थे कि तुम्हें बड़ों से पूछ लेना चाहिए आखिर वह तुम्हारे सास श्वसुर हैं लेकिन आज प्रीती के माता पिता उसे समझाने के बजाय उसके साथ थे।
” बहिन जी, आज आपको हमारा अपनी बेटी के पक्ष में बोलना उल्टी पट्टी लग रहा है जबकि आज तक हम हमेशा अपनी ही बेटी को समझाते आए हैं तब आपने कुछ नहीं कहा… हम अपनी बेटी को कोई उल्टी पट्टी नहीं पढ़ा रहे….काश आपने अपने बेटे को सीधी पट्टी पढ़ाई होती कि वो आपकी बातों में आकर प्रीती को न डांटा करे जहां तक कि वह एक दो बार प्रीती पर हाथ भी उठा चुका है तब भी हम चुप रहे…वो आपके कहने के अनुसार ही करता है और मेरी बेटी भी आपके और आपके परिवार के नियमानुसार चलती है।
लेकिन आप ही बताइए कि क्या इन दोनों को अपनी बच्ची के लिए भी कुछ खरीदने का या उसके लिए फैसले लेने का अधिकार नहीं है।….जरा आप ही सोचिए कि आप हमेशा कहती रहती है कि हमारे जमाने में ये….. हमारे जमाने में वो….हमारी सास ऐसी…….. तो क्या आपको वो सब अच्छा लगता था और अगर नहीं लगता था तो फिर आप अपनी बहू से क्यों अपेक्षा कर रहीं है,…क्यों नहीं चाहतीं कि जो आपको अच्छा लगता था अगर वो आपको नहीं मिला तो आप बेटे बहुओं को दें जिससे वो भी खुश रहे और आपके साथ भी प्यार और सम्मान से रहें….
जरूरी नहीं है कि जो हमने और आपने सहा वही आज के बच्चे सहे….आज के बच्चे स्वाभिमान और आत्मसम्मान दोनों चाहते हैं….देखिए बहिन जी आज आप और मैं एक ही जगह हैं अर्थात आप भी बेटे और बेटी की मां है और मैं भी मगर अफसोस कि आप बेटी और बहू में फर्क करती हैं
जबकि आज तक हमने कभी नहीं किया और यही कारण है कि मेरी बहू 7 सालों के बाद भी मेरा सम्मान करती है मेरे साथ ही प्यार से रहती है मेरी बहू और बेटी दोनों ही संस्कारी हैं लेकिन इतना रोक टोक करेंगे तो एक न एक दिन तो…..माफ करना बहिन जी इस बार आप मेरी बातों को समझने की कोशिश कीजिए वरना न तो अब हम आपसे कुछ कहेंगे और न अपनी बेटी से …..”
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“बेटा, इस बार हमें एक अवसर दे दो….आज घर से मत जाओ….मैं डर गई थी और परिवारों को देखकर जिनमें बहुएं अपनी सास की जरा भी कद्र नहीं करतीं और इसलिए सोचती थी कि पूरा कंट्रोल अपने हाथ में रखूंगी …..लेकिन भूल गई थी कि सभी बहुएं एक जैसी नहीं होती… वो भी प्रेम और सम्मान चाहती हैं….अब आगे से ऐसा नहीं होगा हम दोनों मिलकर इस परिवार को चलाएंगे …और बहन जी अब हम आगे से आपको भी परेशान नहीं करेंगे अब अगर कोई बात होगी भी तो हम दोनों सास बहुएं मिलकर सुलझा लिया करेंगे आखिर ये है तो हमारा ही परिवार…”कहते हुए शोभना जी ने अपने परिवार को बिखरने से बचा लिया।
प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’
मथुरा (उत्तर प्रदेश)
मुहावरा तथा लघुकथा प्रतियोगिता #उल्टी पट्टी