जीवन धारा –  कविता भड़ाना

“कितना समय है मेरे पास डॉक्टर साहब”

सीमा ने केबिन में बैठे डाक्टर आशुतोष से पूछा तो उन्होंने बेहद गंभीर आवाज में कहा.. अधिक से अधिक 6 महीने ही है आपके पास क्योंकि ये ब्रेन ट्यूमर बहुत तेज़ी से फैलता जा रहा है … गहन विचार करने के बाद सीमा ने बड़ी शांति से पूछा…

क्या मेरे जीने की कोई भी आस नहीं बची डाक्टर?…मेरी दोनों बेटियां मेरे बगैर कैसे रहेंगी..अभी तो उन्होंने ये संसार ठीक से ना देखा है और ना ही समझा है, उन्हें सुबह स्कूल के लिए जगाना, उनकी पसंद का खाना बनाना, स्कूल छोड़ना, लाना सब में ही तो करती हूं… कितनी खुश और बेफिक्री से दोनों हंसती खिलखिलाती है और मैं भी तो उनके बगैर एक पल रहने की नहीं सोच सकती, उनके बाल बनाना, पढ़ाई लिखाई सब में ही देखती हूं… मैं चली गई तो इन दोनों का क्या होगा…और कहकर सुबक सुबक कर रोने लगी…..

तभी घबराएं से रवि ने केबिन में कदम रखा और सुबकती हुई सीमा को कस कर गले लगा लिया….मत रो सीमा देखो मैं रवि तुम्हारा पति, तुम्हे कही नही जाने दूंगा…अच्छे से अच्छा इलाज कराऊंगा चाहें मुझे अपने आपको ही क्यों ना बेचना पड़ जाए पर तुम्हे नहीं जानें दूंगा और उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े…

कितनी प्यारी हंसती खेलती दुनिया थी रवि और सीमा की, दो प्यारी बेटियों से घर में हर समय खुशियां बिखरी रहती लेकिन साल भर पहले एक फंक्शन में गई सीमा को चक्कर और खून की उल्टी होने पर जांच कराई तो पता चला कि उसे ब्रेन ट्यूमर है…

तभी से इस परिवार को मानो किसी की नजर ही लग गई…. रात दिन दवाईयों, डायलिसिस और भयंकर सर दर्द से सीमा टूट चुकी थी और बस भगवान से अपनी मौत ही मांगती पर मांगने पर मौत भी कहा मिलती है..

 पूरे घर के बोझिल वातावरण से दोनों छोटी बच्चियों ने जैसे हंसना मुस्कुराना ही छोड़ दिया था..मां को हो रही भयंकर पीड़ा में देखकर दोनों चुपके चुपके रोती..एक दिन सीमा ने देखा उसकी छोटी बेटी मंदिर में बैठी रो रही है और भगवान से प्रार्थना कर रही है..




 “मेरी मम्मी को ठीक कर दो भगवान, मैं नही रह सकती उनके बिना , नही तो मुझे भी उनके साथ बुला लो “गुस्से और मां को खोने के “आक्रोश” में वो छोटी बच्ची अपना सर तेज़ी से पटकने लगती है… तब सीमा ने अपनी बेटी को रोका और गले से लगा कर बोली “तेरी मां कही नही जायेगी मेरी बच्ची”… 

 अंदर से टूट चुकी सीमा ने आज अपने बच्चों के खातिर खुद को मजबूत किया और डॉक्टर को फोन लगा कर बोली “मैं ऑपरेशन के लिए आ रही हूं…

 हार मान चुकी मैं, अब जीवन की ये जंग भी जीतूंगी” 6 महीने नही कम से कम 6 साल और जिऊंगी चाहे कितने भी कष्ट इस शरीर पर उठाने पड़े और अपनी बेटी को गले लगा लिया.. रवि और बड़ी बेटी के भी आंसुओं की झड़ी लगी हुई थी… दरअसल डॉक्टर आशुतोष ने ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन के लिए बोला था, जिसमे खतरा अधिक होता है और कई बार मरीज की ऑपरेशन के समय मृत्यु भी हो जाती है लेकिन अगर ऑपरेशन कामयाब हो जाए तो मरीज पूरी तरह ठीक तो नही होता पर डायलिसिस और दवाईयों से कई कई साल तक जीवन जी लेता है.. 

 आखिर हिम्मत हार चुकी एक मां अपने बच्चो के लिए मृत्यु से भी लड़ने को तैयार हो गई, ऑपरेशन के लिए जाने से पहले उसने सैलून जाकर, वहा के स्टाफ से स्त्री के सौंदर्य के प्रतीक अपने बालों को शेव करने को कहा.. 

 ऐसी हिम्मती और जुनून से भरी महिला के सम्मान में वहा मौजूद हेयर ड्रेसर ने भी सीमा के साथ खुद के भी बालों में हंसते मुस्कुराते उस्तरा चला कर खुद के बाल भी निकाल दिए और देखते ही देखते वहा मौजूद अन्य लोगों ने भी कैंसर से पीड़ित महिला को मानसिक पीड़ा से बचाने के लिए अपने बालों को उस्तरे से शेव कर दिया… सीमा की आंखों से आंसू बह चले और एक दृढ़ संकल्प कर चल दी नए जीवन की ओर…..

 अब इसे ईश्वर का वरदान कहें, सीमा का दृढ़ संकल्प या उस छोटी बच्ची की प्रार्थना.. आज 10 साल बाद सीमा बिल्कुल ठीक है, हालांकि अब भी ढेर सारी दवाईयों के सहारे वह जीवन जी रही है लेकिन ये सब वो खुशी खुशी झेल रहीं है, सिर्फ अपने बच्चों और पति की खातिर….

 ईश्वर के प्रति बेटी के “आक्रोश” ने जीवन से उदासीन हो चुकी मां को नया जीवन दे ही दिया ….

 स्वरचित, मौलिक रचना

 #आक्रोश

 कविता भड़ाना

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