जिम्मेदार – ऋतु अग्रवाल

रम्यक अक्सर ऑफिस देर से आता। बाॅस उससे नाराज रहते। कभी-कभी देर से आने के लिए डाँटते भी पर रम्यक को बर्खास्त नहीं करते थे। एक तो वह मृदु स्वभाव का व्यक्ति था, दूसरे प्रत्येक कार्य को निपुणता के साथ करता था पर इसके अलावा कुछ ऐसा भी था कि बाॅस उसे काम पर रखे हुए थे और जो हम सबकी समझ से परे था।

एक दो बार ऐसा भी हुआ कि रम्यक ने लगातार दो-तीन दिन की छुट्टी ली। पर बाॅस ने उसकी सैलरी नहीं काटी। इतने खडूस बॉस का किसी पर इतना मेहरबान होना हम सबको बड़ा अजीब लगता। अब ऑफिस में तरह-तरह की बातें होने लगी थी। कुछ लोग तो कहते कि रम्यक शायद बॉस का रिश्तेदार है इसलिए बॉस उसके साथ नरमाई से पेश आते हैं।यह बातें उड़ते उड़ते बॉस और रम्यक तक भी पहुँचती थी पर दोनों तटस्थ ही रहते।

यह सिलसिला लगभग छह-सात महीने तक चला। फिर एक दिन बाॅस जब ऑफिस आए तो उनके हाथ में मिठाई के डिब्बे थे।चपरासी सबको मिठाई बाँट रहा था। हम सब उत्सुक थे कि आखिर यह मिठाई किस खुशी में बाँटी जा रही है। उत्सुकता रोके नहीं रुक रही थी पर चपरासी को कुछ पता नहीं था और बाॅस से पूछने की हिम्मत किसी में थी नहीं।सभी लोग अपने काम में लगे रहे।



लंचटाइम में बॉस अपने केबिन से बाहर निकले और हम सब के बीच आकर बोले,”दोस्तों आज एक बहुत बड़ी खुशखबरी है। हम सबके प्यारे साथी रम्यक, जिनकी माताजी पिछले सात महीने से पैरालाइसिस की समस्या को झेल रही थी, आज काफी हद तक ठीक हो चुकी हैं और अपने व्यक्तिगत स्वयं करने  लगी हैं। पर हमारे रम्यक ने हमें अपनी माताजी के स्वास्थ्य के बारे में कुछ भी नहीं बताया था और वह बच्चा अकेला ही सब कुछ मैनेज करने की कोशिश कर रहा था।

“सर! प्लीज आप रहने दीजिए ना! कुछ मत कहिए।” रम्यक की आवाज में संकोच था।

“नहीं, रम्यक! मैं चाहता हूँ कि हम सब तुम से प्रेरणा ले और इसके लिए मैं सब को यह बात बताना चाहता हूँ जिसके लिए पिछले सात महीने से तुम कठोर मेहनत कर रहे हो।आप सब सुनिए, आज से लगभग सात महीने पहले रम्यक की माताजी को लकवे का दौरा आया था जिसके कारण वह पूरी तरह बिस्तर पर आ गई थीं। रम्यक ने उनकी सेवा करने के लिए छुट्टी का आवेदन किया था पर अगर मैं उसे छुट्टी देता तो वह आर्थिक रुप से असहाय हो जाता।

तब मेरी डाक्टर पत्नी ने अपने अस्पताल की एक नर्स को उनकी सेवा के लिए नियुक्त कर दिया। पर रम्यक ने अपनी माँ की सेवा का सारा भार नर्स पर न छोड़कर अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाई। अपनी माता जी के सभी व्यक्तिगत कार्य वह स्वयं करता था जिसकी वजह से उसे कभी-कभी ऑफिस आने में देर हो जाया करती थी। सब कुछ जानते हुए भी मैं उसे डाँट लगा देता था



ताकि ऑफिस का अनुशासन भंग न हो। रम्यक ने मुझे मना किया था कि मैं इस बारे में ऑफिस में किसी को न बताऊँ ताकि वह निर्विघ्न अपना ऑफिस का कार्य पूरा करता रहे। इस होनहार और कर्तव्यनिष्ठ बच्चे पर मुझे गर्व है।”

हम सब ताली बजा रहे थे। बॉस के खडूसपन के पीछे उनकी सहृदयता को सराह रहे थे और सोच रहे थे कि आजकल की युवा पीढ़ी के बारे में जो हमारा नजरिया है कि वे बहुत स्वार्थी हैं,में बदलाव लाने की कितनी जरूरत है?

यह कहानी पूर्णतया मौलिक है।

स्वरचित

ऋतु अग्रवाल

मेरठ

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