जीवनसंगिनी – गीता वाधवानी 

आज रवि और शोभा विवाह के अटूट बंधन में बंध गए थे। दोनों बहुत खुश थे। प्रेम विवाह था और साथ में शोभा की माता जी का आशीर्वाद भी था। 

शोभा कमरे में दुल्हन के रूप में सजी संवरी रवि का इंतजार कर रही थी। तभी रवि को उसके दोस्तों ने और शोभा की बहन यानी कि रवि की साली साहिबा मोना ने हंसते हुए रवि को अंदर की तरफ धकेल दिया और सभी खिलखिलाते हुए वहां से चले गए। 

शोभा की छोटी बहन थी मोना। मोना खुले मिजाज वाली आधुनिक लड़की थी और शोभा हंसमुख, भारतीय परंपराओं में ढली थी। 

रवि अंदर कमरे में आया और शोभा के पास आकर बैठ गया। शोभा कुछ और सिमट गई। रवि ने प्यार से उसका हाथ पकड़ा और बातें करनी शुरू कर दी। बातें करते करते उसने एक सुंदर सा ग्रीटिंग कार्ड, जिसमें बहुत सारे लाल गुलाब के फूल बने हुए थे और साथ में चमकते हीरो से जड़ा एक ब्रेसलेट शोभा को उपहार में दिया। दोनों के जीवन की प्यार भरी शुरुआत हो चुकी थी। 

रवि जब अपनी पढ़ाई कर रहा था, अब उसके पिता का देहांत हो गया था और माताजी तो पहले ही गुजर चुकी थी। रवि ने पढ़ लिख कर स्वयं ही अपनी मेहनत से एक छोटा सा कपड़ा बनाने का कारखाना शुरू किया था। काम बहुत अच्छा चल रहा था। रवि एक बंगला भी खरीद चुका था और कार भी ले चुका था। उसके रिश्तेदारों में बस एक दूर की चाची थी जोकि रवि की तरक्की से खुश कम होती थी और जलती ज्यादा थी। 




शोभा की बहन मोना कभी-कभी शोभा के यहां रहने आ जाती थी। जब भी वह रहने आती थी, रवि के साथ जीजाजी जीजाजी कहते हुए खुल्लम-खल्ला मजाक करती थी। 

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कभी कहती, जीजा जी, आप दीदी से मिलने से पहले मुझसे क्यों नहीं मिले, कितनी अच्छी जोड़ी लगती हमारी और फिर हंसने लगती। 

रवि कहता-“तुम भी क्या बोलती रहती हो मोना।” 

मोना-“सच कह रही हूं जीजा जी, आप हैं ही इतने दिलकश, वैसे अभी भी क्या देर हुई है “और फिर ठहाका मारकर हंस पड़ती। 

रवि मजाक समझ कर हंस देता और शोभा भी ज्यादा ध्यान नहीं देती थी। धीरे-धीरे समय बीता। शोभा गर्भवती थी। शोभा को 4 महीने हो चुके थे और रवि भी बहुत खुश था। शोभा की मदद करने के लिए रवि ने चाची को संदेश भेजा, पर उन्होंने आने से मना कर दिया। रवि शोभा की मां को बुलाना चाहता था लेकिन उनकी स्वयं की तबीयत बहुत खराब थी इसीलिए वो आ ना सकी और उन्होंने मोना को भेज दिया। 

मोना खुशी खुशी आ गई। उसे आए 10 दिन हो गए थे। उसने अपने मजाक फिर से शुरू कर दिए थे और अब तो शोभा को कभी-कभी लगता था कि रवि उसकी बातों में रुचि ले रहा है। 

इसी तरह एक हफ्ता और बीत गया। मोना एक दिन सुबह सुबह तैयार हो गई और बोली कि मैं जीजाजी के साथ कारखाना देखने जा रही हूं। शोभा ने कहा-“तुम्हें मां ने मेरी मदद के लिए भेजा है, तुम कारखाने जाकर क्या करोगी?” 




लेकिन वह नहीं मानी और रवि के साथ चली गई। अगले दिन वह शोभा के पास आई और बोली-“दीदी, मैंने यह गोल्डन कलर का टॉप और काली जींस पहनी है इसके साथ हाथ में पहनने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है, आपके पास कुछ है तो दीजिए।” 

शोभा-“अलमारी में से ले लो” 

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मोना ने अलमारी में से वही ब्रेसलेट निकाला जो रवि ने शोभा को शादी वाले दिन दिया था। शोभा ने उसे रोका। इतनी देर में कमरे में रवि आ गया और बोला-“पहनने दो शोभा, एक बार पहनने से घिसेगा नहीं।” 

शोभा को बहुत बुरा लगा पर वह चुप रही। दोनों कारखाने का बहाना करके पिक्चर देखने चले गए। अगले दिन जब बातों बातों में मोना के मुंह से पिक्चर देखने की बात निकली, तब शोभा को पता लगा। 

उसे लग रहा था कि रवि मोना के आकर्षण में फंस रहा है और इधर उसके स्वयं के शरीर में परिवर्तन होते जा रहे थे। रवि मोना को बहुत सारे कीमती उपहार भी दिलवाता था। धीरे-धीरे दोनों का साथ घूमना और बातें करना बढ़ता जा रहा था। 1 दिन शोभा ने देखा कि दोनों आलिंगन अवस्था में खड़े हैं तब वह बहुत जोर से चीखी और दोनों को बहुत डांटा। उसने अपनी मां को फोन करके सारी बात बताई और कहा कि मोना को यहां से वापस ले जाओ। मोना की मां  आईं और मोना को दो थप्पड़ मार कर वापस ले गई। 

शोभा ने रवि को भी समझाया-“मैं तुमसे ज्यादा अपनी बहन को पहचानती हूं। बचपन से उसके स्वभाव में लालच है। वह तुम्हारे नाम और पैसे से आकर्षित हो रही है लेकिन तुम तो समझदार हो, तुम यह क्या कर रहे हो?” 




रवि-“ऐसा कुछ नहीं है, मोना मॉडर्न है। मेरे साथ चलती हुई कितनी अच्छी लगती है और उसे कारखाने के काम भी कितनी जल्दी समझ में आ रहे हैं। मुझे तो वह बहुत अच्छी लगने लगी है।” 

यह सब सुनकर शोभा रो पड़ी और वह सोच रही थी कि एक तरफ पति है और दूसरी तरफ बहन, बद्दुआ भी नहीं दे सकती। 

मोना अपनी मां से लड़ झगड़ कर, दो दिन बाद फिर वापस आ गई और रवि के साथ कारखाने जाने लगी। 

रात को चौकीदार का फोन आया-“साहब, कारखाने में आग लग गई है, जल्दी आइए।” 

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रवि ने तुरंत गाड़ी निकाली और कारखाने की तरफ भागा। फायर ब्रिगेड वाले पहुंच चुके थे लेकिन कारखाने की आग इतनी भयानक थी कि सब कुछ जलकर खाक हो गया। 

रवि बहुत तनाव में था और घर आकर रोने लगा। बार-बार कह रहा था कि सब कुछ खत्म हो गया। शोभा उसे दिलासा दे रही थी और हिम्मत बंधा रही थी। 

शोभा-“रवि, तुम परेशान मत हो, हम फिर से शुरुआत करेंगे। तुम बिल्कुल मत घबराओ, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं।” 

मोना को उनकी परेशानियों से कोई लेना-देना नहीं था। वह 2 दिन रहकर, वापस घर चली गई। शोभा रवि के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी थी। 

सबसे पहले उन्होंने नई शुरुआत करने के लिए पास के बाजार में एक छोटी सी दुकान किराए पर ली। उसमें माल भरने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे तब उन्होंने बंगला बेचने की तैयारी की। 

बंगला बिकते बिकते एक महीना लग गया। इसी समय में एक किराए का घर भी ढूंढा। रवि ने गाड़ी बेच दी और एक स्कूटर ले लिया। शोभा को 7 महीने पूरे हो चुके थे। 

इन मुश्किलों भरे 3 महीनों में मोना ने एक बार भी उनके घर झांका तक नहीं। 




रवि अब अच्छी तरह समझ चुका था कि शोभा उसकी सच्ची जीवन साथी है और मोना एक छलावा। वह शोभा की डिलीवरी के लिए बहुत चिंतित था और उसके लिए कुछ पैसे बैंक में रखना चाहता था इसीलिए उसने गाड़ी बेचकर स्कूटर लिया था। 

मन ही मन वह शोभा की बहुत इज्जत करने लगा था। वह सोचता रहता था कि इतनी मुश्किल घड़ी में शोभा ने कभी मुझसे कोई शिकायत नहीं की और ना ही कभी मुझसे कुछ मांगा। बस चुपचाप हंसते-हंसते मेरा साथ निभाती गई और मैं बेवकूफ उसे धोखा देने चला था। 

आज रवि और शोभा बहुत खुश थे क्योंकि उनके यहां एक छोटी सी सुंदर सी परी ने जन्म लिया था। आज रवि ने सच्चे मन से शोभा से माफी मांगी और उससे कहा -“तुम ही सच्चे अर्थों में मेरी सच्ची जीवनसंगिनी हो।” 

#5वां_जन्मोत्सव 

स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली

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