जब पोते ने अपने दादा – दादी का बदला अपने माता – पिता से लिया !!- स्वाति जैन : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : बेटा , तेरी बहुत याद आ रही हैं , कब आ रहा हैं तू ?? पुरे तीन साल हो गए तुझे देखे , अब रहा नहीं जाता , गायत्री फोन पर अपने बेटे गौरव से बोली !!

गौरव बोला मम्मी , मेरी पंद्रह दिनों बाद मुंबई में मींटींग हैं , जिसके सिलसिले में मैं मुंबई आनेवाला हुं , तब गांव भी आऊंगा और यह बताओ घर में सब कैसे हैं दादा – दादी , पापा !!

गायत्री बोली सभी ठीक हैं बेटा , बस तु जल्दी से आजा !!

फोन रखकर गौरव को अपना परिवार याद आ गया , वह भी सभी को बहुत याद करता था और खासकर अपने दादा – दादी को !! दादा- दादी के प्रति उसका विशेष लगाव था , बचपन में उन्हीं के साथ ज्यादा रहा करता था !! जब से पढ़ाई के सिलसिले में विदेश आया तब से वापस भारत जाने की संभावनाए बहुत कम हो पाती थी , पढ़ाई जैसे ही खत्म हुई विदेश में ही नौकरी भी लग गई मगर इस बार उसे खुशी थी कि मीटिंग के बहाने ही सही अपने घर तो जाने मिलेगा !! अपने माता – पिता और दादा – दादी को देखने उसकी आंखें तरस रही थी !! उसे वह दिन याद आ गए जब बचपन में वह अपने दादा – दादी के साथ ही सोया करता था , रोज रात को दादा- दादी कहानियां सुनाते तब जाकर उसे नींद आती , दादी रोज उसी की पसंद का खाना बनाती और उसके दादा उसे रोज शाम बाहर घूमाने ले जाते !!

सारी बातें याद करके गौरव का दिल बच्चे जैसा मचल उठा अपने परिवार से मिलने मगर यहां विदेश से ऐसे निकलना आसान कहां था !!

बहू , तुम्हारे पापाजी का शुगर दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा हैं , जबकि मीठे से भी बहुत सालों से परहेज रखा हुआ हैं इन्होने !! इन गांव के डॉक्टर को दिखा – दिखाकर थक गए हैं मगर कुछ फर्क ही नहीं पड़ता बल्कि दिन ब दिन इनकी तबीयत ज्यादा खराब होते जा रही हैं, एक बार किसी बड़े डॉक्टर को दिखा देते तो अच्छा होता , गायत्री की सास विमला जी ने गायत्री से कहा !!

इस कहानी को भी पढ़ें: 

एक पुराना फ़ोटो – ज्योति अप्रतिम

गायत्री मुंह बिचकाकर बोली मांजी ,पैसे क्या पेड़ पर लगते हैं ?? यहां गांव के डॉक्टर को दिखाने आपको पैसे देते हैं , वह क्या कम हैं जो अब आपको बड़े डॉक्टर को दिखाने शहर जाना हैं , आने दो आज आपके बेटे को , आपकी शिकायत ना की तो मेरा नाम गायत्री नहीं !!

विमला जी बोली मुझे माफ कर दो बहू , तुम निशांत से कुछ ना कहना !! वैसे ही वह काम से थक – हारकर आता हैं और ऐसे में तुम शिकायतों की पोटली खोलकर बैठ जाती हो तो उसका दिमाग भी हिल जाता हैं और वह भी झन्ना उठता हैं !!

गायत्री बोली साफ – साफ क्यूं नहीं कहती मांजी कि आपको अपने बेटे से ड़र लगता हैं तभी तो आप मुझसे आकर यह सब कह रही हैं , जाईए अपने बेटे से ही क्यूं नहीं बात करती जब आपको पापाजी को बड़े डॉक्टर को दिखाना ही हैं तो !!

विमला जी बोली बहू , मेरे बेटे के कान तो तुम ही भरती हो , अब वह अच्छी बात हो या बुरी , सब कुछ घर में तुम्हारे कहने से ही तो होता हैं इसलिए तुमसे कहने चली आई थी मगर अब मैं यह जान चुकी हुं कि तुम कभी तुम्हारे पापाजी को बड़े डॉक्टर को नहीं दिखाने दोगी क्यूंकि तुम्हें तुम्हारे पति का पैसा , तुम्हारे पापाजी की जान से ज्यादा प्यारा हैं !!

गायत्री बोली मांजी पैसा तो भला हमारा ही खर्च होता हैं ना , आपका क्या जाता हैं ??

विमला देवी अपने बेटे निशांत से कुछ कहने का साहस करती भी कैसे ?? गायत्री उनसे पहले ही निशांत को सब अनाप – शनाप पट्टी पढ़ा चुकी होती थी !! निशांत तो सिर्फ गायत्री की हां में हां मिलाता इसलिए उससे बात करने का कुछ फायदा नहीं होता था !!

विमला जी अपने पति गिरधारी जी से बोली सुनिए , हम शाम को यहीं पास में जो डॉक्टर कमलेश हैं उसको दिखाने चलेंगे !!

गिरधारी जी ने भी चुप्पी से हां में इशारा कर दिया , वे भी बेबस थे , अब इस उम्र में कहीं अकेले तो जा नहीं सकते थे !!

शाम को विमला जी गिरधारी जी को लेकर डॉक्टर के पास दिखाने गई , रास्ते में जोर से बारिश बरसने लगी , रिक्शे में बैठे गिरधारी लाल जी बोले विमला , तुम्हें पहले बारिश बहुत पसंद थी ना , तुम जान – बूझकर बाहर भीगने चली जाती थी !!

विमला जी बोली हां जी बहुत पसंद थी और अब भी बहुत पसंद हैं मगर अब ड़र लगता हैं कि बारिश में भीगने की वजह से कहीं बीमार ना हो जाए !!

इस कहानी को भी पढ़ें: 

खुशियों में ढल गए ग़म – प्रेम बजाज

गिरधारी जी बोले हां विमला अब मुझे ही देख लो , मैं तो ज्यादातर बीमार ही रहने लगा हुं !! गिरधारी जी को गांव के डॉक्टर ने शहर के किसी बड़े डॉक्टर को दिखाने की सलाह दी यह सुनकर दोनों का चेहरा उतर गया और वे लोग वापस रिक्शा पकड़ घर के लिए रवाना हुए !!

रिक्शा से उतरकर विमला जी ने गिरधारी जी का हाथ थाम लिया क्यूंकि रास्ते में बहुत कीचड़ जमा हो गया था और उन्हें ड़र था कि कहीं गिरधारी जी फिसल ना जाए तभी गायत्री अपनी कुछ सहेलियों को बाहर तक छोड़ने आई !!

जब गायत्री ने दोनों को यूं एक – दूसरे का हाथ थामे देखा तो आकर निशांत के सामने खुब बवाल किया और कहने लगी अब इस उम्र में इन दोनों बूढ़ों को मटरगश्ती करते शर्म नहीं आती क्या ?? निशांत तुम्हें पता है मेरी सहेलियों ने भी यह दृश्य देखा और सभी एक दूसरे के सामने देख कर हंस रही थी , एक ने तो यह तक कह दिया बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम !!गायत्री तुम्हारे सास ससुर को इस उम्र में शर्म नहीं आती क्या जो रास्ते में भी एक – दूसरे का हाथ थामे चल रहे हैं जैसे कोई नवविवाहित जोड़ा हो !! निशांत मैं तो तंग आ गई हूं दोनों की हरकतों से , ना जाने कब तक मेरी ही छाती पर मूंग दलेंगे यह दोनों , तुम इन दोनों को कहीं छोड़ क्यूं नहीं आते , कम से कम बला तो टलेगी हमेशा के लिए !!

निशांत बोला गायत्री मैं भी तो तंग आ चुका हुं इन दोनों से , मैं भी तो यहीं चाहता हूं कि इन दोनों को कहीं छोड़ आऊं मगर कहां यह समझ में नहीं आ रहा हैं !!

गायत्री बोली जी वैसे भी दोनों को बड़े डॉक्टर के पास जाना हैं , मांजी मुझे अब तक दस बार कह चुकी हैं यह बात आप तो जानते ही हो , इन दोनों को क्या हैं पैसा तो हमारा जाएगा ना !! मैं तो कहती हूं इन दोनों को मुंबई बड़े डॉक्टर के यहां दिखाने ले जाने के बहाने वहीं शहर में छोड़ देना और क्या ?? इन बूढ़ो को ओर झेलना भी नहीं पडेगा !!

निशांत को गायत्री की यह तरकीब पसंद आई और वह दूसरे दिन ही बोला मां पापा मैं कल ही पापा को मुंबई में बड़े अस्पताल दिखाने ले चलूंगा , वैसे भी पापा का शुगर बहुत ज्यादा बढ़ गया है !!आप लोग अपने कपड़े बैग में भर लीजिए क्योंकि वहां हमें चार-पांच दिन तो लग ही जाएंगे !!

गिरधारी जी और विमला जी सोचने लगे आज बेटा इतने चा शनी भरे शब्दों से कैसे बात कर रहा है , इतने दिनों से कह रहे हैं लेकिन इसके कानों पर जूं तक नहीं रेंगी थी उल्टा चार बातें सुना दिया करता था और आज अचानक बड़े डॉक्टर के वहां ले जाने तैयार कैसे हो गया ??

विमला जी ने अपना और गिरधारी जी का बैग तैयार कर दिया और दूसरे ही दिन वे लोग मुंबई के लिए रवाना हो गए !!

मुंबई पहुंच कर जैसे ही वे लोग अस्पताल पहुंचे , निशांत उन्हें अस्पताल के बाहर बैठाकर बोला आप लोग यहां बैठिए मैं अभी थोड़ी देर में वापस आता हूं !!

निशांत को गए जब काफी समय हो गया , गिरधारी जी और विमला जी परेशान हो गए , दोनों ने निशांत के नम्बर पर फोन किया पर निशांत का फोन भी नहीं लग रहा था !!

इस कहानी को भी पढ़ें: 

रेवा की पहल – नीरजा नामदेव

दोनों थक – हारकर वहीं बैठे रहे , बेचारे यहां किसी को जानते भी तो नही थे !!

रात को वहीं बेंच पर सो गए , दो – तीन दिन जेब में जो थोड़े बहुत पैसे थे उसी से काम चलाया शायद अब वे दोनों यह बात जान चुके थे कि उनका बेटा उन्हें जान – बुझकर यहां अकेले छोड़कर चला गया हैं , दोनों की आंखों से आंसू बह निकले !!

दोनों को यूं रोते देख एक नवयुवक जो वहां से गुजर रहा था वह बोला अंकल जी आप लोग तीन दिन से मुझे लगातार यहां बैठे दिखाई दे रहे हो , मैं भी तीन दिनों से यहां अपने पापा का इलाज करवाने आ रहा हूं , आप लोग यहां के नहीं लगते शायद किसी गांव से आए हो , मेरा नाम राज हैं क्या मैं आप लोगों की कुछ मदद कर सकता हूं ??

दोनों वृद्ध दंपती ने अपनी पुरी कहानी बता दी , राज को उन पर तरस आ गया और वह दोनों को अपने घर ले आया !! गिरधारी जी और विमला जी वापस बेटे के पास नहीं जाना चाहते थे इसलिए विमला जी हाथ जोड़कर बोली बेटा ,हम तुम्हारे घर एसे ही मुफ्त में नहीं रहेंगे तुम हमें घर का काम करने दे दो ताकि हमें यह ना लगे कि हम यहां मुफ्त की रोटियां तोड़ रहे हैं !!

राज अपने पिता के साथ उस घर में अकेले रहता था , उसके पिता बहुत ज्यादा बीमार थे , इसलिए उसने घर के सारे काम इस वृद्ध दंपती को दे दिए !!

वहां विदेश से गौरव भी अपनी मीटिंग के लिए मुंबई के लिए रवाना हो चुका था और जिससे उसकी मीटिंग होने वाली थी वह कोई ओर नहीं राज ही था !!

गौरव राज के घर पहुंचा और दोनों ने एक साथ मीटिंग की , उतने में विमला जी दोनों के लिए चाय – नाश्ता लेकर आ गई !! गौरव अपनी दादी को वहां देखकर दंग रह गया !!

गौरव अपनी दादी के गले लग गया और दादा – दादी ने उन्हें पूरी बात बताई !!

गौरव दादा- दादी को यहीं राज के घर छोड़कर अपने माता – पिता से मिलने गांव पहुंचा , जहां वह अनजान बनते हुए बोला दादा – दादी कहां हैं ??

वे दोनों थोड़े दिनों तुम्हारी बुआजी के घर गए हैं निशांत और गायत्री ने झूठ बोला !!

गौरव बोला बुआजी तो दिल्ली रहती हैं , इसका मतलब इस बार दादा – दादी से मिलना नहीं हो पाएगा मेरा !!

गौरव को आए दो- तीन दिन हो चुके थे , गौरव बोला मम्मी – पापा मैंने आप लोगों की विदेश की टिकट्स बनवा ली हैं , इस बार मैं आप दोनों को वहां ले जाऊंगा !!

विदेश का नाम सुनकर निशांत और गायत्री खुश हो गए !!

इस कहानी को भी पढ़ें: 

अंजानी सी इक लड़की” – नीरजा नामदेव

गौरव ने अपने दादा – दादी की भी विदेश की टिकट्स बनवा ली थी , पहले वह अपने मां- पापा को विदेश लेकर पहुंचा और उन्हें वहां एक जगह बैठाकर मैं अभी आता हूं कहकर अपने दादा – दादी को लेने चला गया !!

पूरे दिन निशांत और गायत्री अनजान देश में बैठे रहे और जब काफी देर बाद भी गौरव नहीं आया तो उनकी आंखें भर आई !! दोनों की आंखों से आंसू बह निकले !!

काफी समय बाद गौरव अपने दादा – दादी को लेकर वहां आया और बोला मम्मी – पापा आप लोगों ने दादा- दादी के साथ जो किया , वहीं मैंने आप लोगों के साथ दोहराया कैसा लगा आपको ??

निशांत और गायत्री को अपनी गलती का एहसास हुआ और दोनों गिरधारी लाल जी और विमला जी के पैरों में गिर कर माफी मांगने लगे !!

दोस्तों मां-बाप तो भगवान का रूप होते हैं , जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करते हैं वे शायद यह भूल जाते हैं कि कल के दिन उनके बच्चे भी वही व्यवहार उनके साथ दोहराएंगे !!

आपको यह कहानी कैसी लगी अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजिएगा तथा मेरी अन्य रचनाओं को पढ़ने के लिए मुझे फॉलो अवश्य करिएगा

आपकी सहेली

स्वाति जैन !!

मौलिक/अप्रकाशित

#आँसू

V M

error: Content is Copyright protected !!