ईश्वर की मर्ज़ी – विभा गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

  ” ये क्या कामिनी बहन..आज फिर किसी अबला- बेसहारा को अपने घर ले आईं..जानती हैं ना इस#स्वार्थी संसार को…फिर भी..।” 

   ” ऐसी कोई बात नहीं है बहन..ये सब तो ईश्वर की मर्ज़ी से होता है…।” मुस्कुराते हुए कामिनी ने राजेश्वरी के हाथ में चीनी की कटोरी रख दी।

    ” आपके हृदय को खूब समझती हूँ…।”हँसती हुए वो बोली और कटोरी लेकर बाहर निकल गई।

        कामिनी की पड़ोसिन थी राजेश्वरी।दोनों आपस में अपने सुख-दुख साझा करतीं और समय पड़ने पर एक-दूसरे के लिये खड़ी भी हो जातीं।

     कामिनी का हृदय बहुत बड़ा था।राह चलते किसी का दुख देखती तो अपने सामर्थ्यानुसार उसकी मदद करने में तनिक भी नहीं हिचकती।एक दिन वो पूजा करके मंदिर से लौट रही थी तो उसने एक चौदह-पंद्रह साल के लड़के को कचरे के ढ़ेर-से कुछ निकालकर खाते देखा। उसकी आँखों में आँसू आ गये।वो उस लड़के को अपने साथ घर ले आई..मुँह-हाथ धुलवाकर उसे खाना खिलाया और बेटे से कहकर उसे एक जगह पर काम भी दिलवा दिया।लड़का बहुत खुश था..

उससे कहता,” माँ..भईया की तरह मैं भी हमेशा आपके साथ रहूँगा और आपकी सेवा करूँगा।” लेकिन पहली पगार मिलने पर उसने चुपचाप अपना सामान बाँधा और मैं जा रहा हूँ..एक कागज़ पर लिखकर चला गया।तब राजेश्वरी ने उससे कहा था,” मतलब निकल जाने के बाद सब अपनी राह चल देते हैं..।”

      एक दिन कामिनी मार्केट से फल-सब्ज़ियाँ खरीद कर आ रही थी तो उसकी निगाह फुटपाथ पर बेहोशी की हालत में पड़ी महिला पर पड़ी तो वो चौंक पड़ी।उसने तुरंत एक ऑटो रिक्शा मँगवाया और उसे बिठाकर अपने घर ले आई।उसका मुँह-हाथ पोंछकर आराम करने के लिये बिस्तर पर लिटा दिया।तभी उससे थोड़ी चीनी लेने राजेश्वरी आई, अनजान महिला को लेटे देखकर उसने कामिनी को फिर से आगाह करना चाहा तो वो मुस्कुरा दी और रसोई में जाकर महिला के लिये चाय बनाने लगी।

       कुछ देर बाद महिला को होश आया तो उसकी निगाह सामने की मेज़ पर रखी फ़ोटो पर पड़ी तो वो चौंक पड़ी, ये तो कामिनी है जिसे मैंने..

       विवाह के बाद कामिनी ने जब ससुराल में अपना पहला कदम रखा तो उसकी जेठानी मनोरमा ने खुले दिल से उसका स्वागत किया था।उस वक्त मनोरमा का एक बेटा था जो चाची-चाची कहकर उसके आगे-पीछे घूमता रहता था।उसका पति कैलाश एक प्राइवेट फ़र्म में काम करता था।दोनों भाईयों का प्यार आसपास वालों के लिये एक मिसाल था।

      कुछ समय के बाद दोनों जेठानी-देवरानी गर्भवती हुई और दोनों ने एक-एक पुत्र को जनम दिया।साल भर बाद जब दोनों बच्चे चलने लगे तो कामिनी ने नोटिस किया कि उसके अंशु को दाहिने पैर से चलने में तकलीफ़ हो रही है।उसने कैलाश को बताया और दोनों उसे लेकर डाॅक्टर के पास गये।जाँच और टेस्ट रिपोर्ट देखकर डाॅक्टर ने उन्हें बताया कि प्रेग्नेंसी के दौरान कैल्सियम की कमी के कारण ये समस्या हो जाती है।दवा लिखकर दे रहा हूँ..ठीक नहीं हुआ तो फिर हमें एक छोटी-सी सर्जरी करनी पड़ेगी।उस दिन वो बहुत रोई थी तब मनोरमा ने उसे आश्वासन दिया था कि हम सब तेरे साथ हैं।

      समय बीतने लगा,अंशु स्कूल जाने लगा।उसकी चाल देखकर उसके सहपाठी उसकी हँसी उड़ाते, तब उसके चचेरे भाई उसका सहारा बनते।

      एक दिन ऑफ़िस से लौटते हुए कैलाश की स्कूटी का एक्सीडेंट हो गया और अस्पताल जाने से पहले ही उसने दम तोड़ दिया।कामिनी की जिंदगी एकाएक बिखर गई, तब मनोरमा ने ही उसे भरोसा दिलाया था कि हम हैं ना..अंशु को पढ़ायेंगे और उसका इलाज़ भी करवायेंगे।ये मीठे बोल उसके लिये बहुत थे।

कैलाश की कंपनी से जो भी पैसा मिला, उसने अपने जेठ को संभालने के लिये दे दिया।एक साथ इतना पैसा देखकर मनोरमा के मन में लालच आ गया।अपने बच्चों के लिये उसका मन स्वार्थी हो गया और वो धीरे-धीरे उस पैसे को अपने बच्चों के लिये जमा करने लगी।जब पति ने उसे डाँटा तो उसने अपने बच्चों के भविष्य का वास्ता देकर उन्हें भी अपने लालची मंसूबे में शामिल कर लिया। 

      स्वार्थ में अंधे होकर इंसान अपनी इंसानियत भी भूल जाता है।मनोरमा और उसके पति ने कामिनी के हस्ताक्षर लेकर पैतृक संपत्ति को भी हथिया लिया और उसे बेइज्ज़त करके घर से निकाल दिया।

       समय अपनी रफ़्तार से चलता रहा।मनोरमा के बच्चे सयाने होकर नौकरी करने लगे।तब उसने अमीर घराने की लड़कियों के साथ उनका विवाह करा दिया।कुछ समय बाद उनके पति रिटायर हो गये।वे बाकी की जिंदगी पत्नी के संग आराम से बिताना चाहते थे लेकिन…।एक शाम सैर करके लौटे तो पत्नी से एक गिलास पानी माँगा।दो घूँट पीकर बोले,” मनो..कुछ ठीक नहीं लग रहा है..शायद मेरे कर्म..।” मनोरमा डाॅक्टर को फ़ोन करने गई, तब तक उनके प्राण-पखेरू उड़ चुके थे।

बस उसी दिन से बहुओं के रंग-ढ़ंग बदलने लगे।उन्हें झिड़क देना, उनके खाने-पीने में कटौती करना, बच्चों को उनके पास न आने देना आदि बातें आम हो गई थी।उनके उठने-बैठने पर भी पाबंदी होने लगी तब वो गरज़ीं,” ये मेरा घर है..।” तब दोनों बहुएँ आँख दिखाते हुए बोलीं,” आपका था..अब हमारा है..।”तब उन्हें अपने किये हस्ताक्षर याद आये।

वो चीखीं,” तुम लोगों ने धोखे…।” तब बड़ा बेटा कुटीलता-से बोला,” आपसे ही सीखा है..आपने भी तो अपने मतलब के लिये चाची की संपत्ति हड़प ली थी तो हमने भी..।” सुनकर वो हतप्रभ रह गईं। अपने स्वार्थवश उसने कामिनी के हक पर डाका डाला था और आज…।” उनकी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे।

फिर एक दिन वो जब मंदिर से घर आईं तो बहुओं ने दरवाज़ा नहीं खोला..वो दरवाज़ा पीटती रही..मुहल्ले वालों ने भी देखा लेकिन कोई आगे नहीं आया।हार कर वो सड़क पर मारी-मारी फिरने लगी और बदहवास-सी कहीं पर गिर पड़ी।आज किस्मत उसे उसी कामिनी के पास ले आई जिसे उन्होंने कभी बेघर कर दिया था…।

   ” दीदी..लीजिये..चाय पीजिये..अच्छा लगेगा..।” ” कामिनी..मुझे माफ़..।” कहते हुए मनोरमा फूट-फूटकर रोने लगी।कामिनी उनके आँसू पोंछते हुए बोली,” आप इस हाल में कैसे..भाईसाहब कहाँ हैं?” तब मनोरमा उसे सारी बात बात बताते हुए बोली,” मैंने तुम्हारे साथ बुरा सलूक किया, मेरे बेटों ने मेरे साथ..।तुम मुझे यहाँ क्यों लाई..वहीं मरने देती…।” 

  ” नहीं दीदी..ऐसा नहीं कहते..ईश्वर की मर्ज़ी को हमें हँसकर स्वीकार कर लेना चाहिए।”

   ” क्या मतलब?” मनोरमा ने आश्चर्य-से उसकी तरफ़ देखा।तब वो अतीत को याद करते हुए बोली,” उस दिन आपके दरवाज़ा बंद कर देने के बाद मैं सिर पर कपड़ों की गठरी और अंशु को गोद को उठाये देवी माँ के मंदिर में आ गई।वहाँ की साफ़-सफ़ाई करते हुए मंदिर के प्रसाद से अपने बेटे का पेट भरते हुए दिन काट रही थी कि एक दिन एक सेठ-सेठानी गाड़ी से आये और वहाँ बैठे भिखारियों को भोजन-वस्त्र देने लगे।पुजारी जी ने बताया कि दो साल पहले सेठ जी के इकलौते बेटे का देहांत हो गया था।

उसी की याद में उसके जन्मदिन पर वो आते हैं और..।अंशु में सेठानी जी को शायद अपना बेटा दिखा..उसे थोड़ा रुक-रुक कर चलते देख उनकी आँखों से आँसू बहने लगे।उसे गले लगाते हुए मुझसे बोलीं,” बेटी..तुम हमारे साथ चलो।” आश्रय की आस में मैं उनके साथ चली गई।उन्होंने मेरे अंशु के पैर का ऑपरेशन करवाया..उसे पढ़ा-लिखाकर इतना काबिल बना दिया कि आज वो उन्हीं की फ़ैक्ट्री में मैनेजर है।” कहकर वो

रुकी और फिर बोली,” दीदी..इस #स्वार्थी संसार में सेठ-सेठानी जी जैसे लोग भी हैं जो निस्वार्थ परायों को अपना बनाते हैं।सेठजी तो अंशु को मालिक बनाना चाहते थे लेकिन वो बोला कि पापाजी…(अंशु सेठजी को पापाजी और सेठानी जी को माँ जी कहता था)मालिक तो आप ही रहेंगे।मैं सब देखूँगा लेकिन वेतन एक कर्मचारी का ही लूँगा।

आपके देवर मुझे हमेशा कहते थें कि मेरे साथ लोग कितना भी बुरा सलूक करे लेकिन मैं अपना ईमान कभी नहीं खराब करूँगा..तुम भी परेशानियों से घबराकर कभी स्वार्थी मत बनना..।बस..मेरा अंशु भी वही कर रहा है।अपने पापाजी और माँजी का पूरा ख्याल रखता है..उनकी सेवा करने को अपना पहला धर्म समझता है।कई बार सेठानी जी हमें अपने घर में रहने के लिये कह चुकी हैं लेकिन हम माँ-बेटा इसी कुटिया में खुश है।अंशु तो काम पर चला जाता है..मैं प्रभु की भक्ति करती हूँ..जो कष्ट में दिखा तो उसकी थोड़ी मदद..आपको देखा तो..।” वो हँसने लगी।

    ” अंशु की शादी?”

  ” अब आप आ गईं हैं तो..।” कामिनी तपाक-से बोली।तभी अंशु आ गया।अपनी ताई को देखकर वो बहुत खुश हुआ।उनके चरण-स्पर्श किये तो अपने व्यवहार को याद करके मनोरमा का हृदय रो उठा।

     कुछ समय बाद कामिनी ने सेठानी जी पसंद की लड़की के साथ अंशु का विवाह कर दिया।वर-वधू को कामिनी, सेठ-सेठानी जी के साथ-साथ मनोरमा ने भी आशीर्वाद दिया।कुछ समय के बाद अंशु अपने पूरे परिवार के साथ नये घर में शिफ़्ट हो गया।वो दो बेटियों का पिता बन गया।कामिनी अपनी पोतियों को सेठानी जी के पास ले जाना कभी नहीं भूलती थी।

     सेठजी अस्वस्थ रहने लगे..अंशु को अपनी जायदाद का वारिस बनाने के लिये उन्होंने अपने वकील को बुलाया तब उपस्थित लोगों में काना-फूसी होने लगी,” देख लेना..ये जायदाद का मालिक बनते ही सेठ-सेठानी को सड़क पर ला देगा..।” अंशु ने उन सभी पर एक नजर डाली और सेठजी से बोला,” पापाजी..ईश्वर आप दोनों दीर्घायु रखे..मेरी संपत्ति तो आप दोनों ही हैं।

आप अपने और माँजी के नाम से एक ट्रस्ट बना दीजिये..उस फंड से अनाथ बच्चों की शिक्षा मिलेगी और बीमारों का इलाज़ करवाया जायेगा।मैं उसका केवल ट्रस्टी रहूँगा।” सुनकर सेठजी की आँखों खुशी-से छलछला उठी।लोगों ने कहना शुरु कर दिया,” पैसा देखकर तो बड़े-बड़ों की नीयत डोल जाती है लेकिन अंशु सर ने..।धन्य हैं उनके माता-पिता जिन्होंने उन्हें इतने अच्छे संस्कार दिये हैं।”

       कुछ समय पश्चात सेठ जी ने दुनिया को अलविदा कह दिया।आगे-पीछे कामिनी और मनोरमा भी चलीं गईं।सेठानी जी को अब कम दिखाई-सुनाई देने लगा था।अंशु अब भी नियमवत् सेठ जी के बंगले पर जाता है..अपनी माँजी के पास बैठता है..उनसे बातें करता है।उसकी पत्नी और दोनों बेटियाँ भी सेठानी जी का पूरा ख्याल रखती हैं।

                                    विभा गुप्ता

                                स्वरचित, बैंगलुरु 

(सच्ची घटना से प्रेरित)

# स्वार्थी संसार

      आज के इस स्वार्थी संसार में जहाँ लोग अपना मतलब साधकर किनारा कर लेते हैं वहीं सेठ-सेठानी जी जैसे भी कुछ लोग हैं जो बेसहारों का सहारा बनते हैं।कामिनी और अंशु जैसे लोग भी हैं जो भला करने वालों का साथ उम्र भर निभाते हैं।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!