इज्जत इंसान की नही, पैसे की होती है – लक्ष्मी त्यागी : Moral Stories in Hindi

प्रिया जब अपने भाई के विवाह में आई तो बहुत प्रसन्न थी ,आज उसकी वर्षों की इच्छा जो पूर्ण हो रही थी।कितनी मन्नतें और कितनी बार भगवान से उसने प्रार्थना की थी- कि मेरे भाई पढ़ -लिखकर खूब उन्नति करें। आज उसका यह स्वप्न पूर्ण होने जा रहा है। बड़े अच्छे घर में ,उसके भाई का विवाह तय हुआ है।

लड़की भी खूब पढ़ी- लिखी है किंतु प्रिया देख रही थी, जब से वह आई है , तब से सभी के व्यवहार में बहुत परिवर्तन आ गया है। मां अपने ही कार्यों में व्यस्त रहती है,या व्यस्त होने का अभिनय कर रही है।

यदि प्रिया पूछती भी – मम्मी ! मेरी कोई सहायता चाहिए तो मना कर देतीं और चुपचाप अपने कार्यों में व्यस्त रहतीं।  प्रिया ने महसूस किया कि उसकी मम्मी उससे कुछ चीजें  छुपा रही हैं । उन्हें लगता ,ये सब देखकर ,कहीं  प्रिया ये न कहे -”मुझे तो दहेज़ दिया नहीं ,तब भाई के विवाह में दहेज़ क्यों ले रहीं हैं ?”

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 भाई के विवाह में आए, सामान को भी उन्होंने उसे नहीं दिखाया।  शायद ,उन्हें लग रहा था -प्रिया यह सब देखेगी तो शायद उसे दुख होगा क्योंकि उसके विवाह में तो उन्होंने ‘दहेज’ के नाम पर सिर्फ उसे ही उसके ससुराल वालों को सौंप दिया था। प्रिया के ससुराल वाले भी अच्छे थे, उन्होंने प्रिया की सुंदरता और प्रिया के व्यवहार और गुणों को देखकर उससे विवाह किया था। उन्होंने कभी प्रिया को परेशान नहीं किया और न ही कभी दहेज की मांग की। 

किंतु आज जब प्रिया ने अपनी मां को इस तरह उससे, सामान छुपाते हुए, और किसी भी बात में, उससे कोई परामर्श नहीं लिया ,ये सब प्रिया महसूस कर रही थी।  जब उसकी छोटी बहन आई, तब वे लोग बहुत प्रसन्न हुए , क्योंकि उसकी छोटी बहन का एक धनाढ्य परिवार में विवाह हुआ था। काफी महंगे वस्त्र और गहने पहनकर आई थी।

उसे देखकर प्रिया भी अत्यंत प्रसन्न हुई लेकिन उसकी छोटी बहन उसे देखकर बोली -आप आज भी वैसी ही हैं, बदली नहीं है, अब तो आपको समय के अनुसार बदलना चाहिए। 

मुझे क्या बदलना है ?” आदमी की प्रकृति जैसी होती है, वह वैसा ही रहता है ,” मैं कोई ऋतु नहीं जो बदल जाऊं ”हंसते हुए बोली, किंतु उसकी बहन को तनिक भी हंसी नहीं आई उन सब को लग रहा था , कि जैसे प्रिया, उनके परिवार में ”टाट के पैबंद ” की तरह हो गई है। प्रिया को इस बात का तनिक भी आभास नहीं था कि जो परिवार अब तक इतनी परेशानियों से गुजरा है ,

जिस परिवार के पास उसका विवाह करने तक का पैसा नहीं था आज वही परिवार, अपने पैसे के दम पर, उसे अपने से अलग समझे बैठा है। ऐसा नहीं कि  प्रिया के पास पैसे की कमी थी किन्तु प्रिया ने हमेशा ज़िंदगी अपने तरीके से जी,कभी दिखावा नहीं किया। 

 धीरे-धीरे प्रिया को आभास होने लगा हो ना हो, अब यहां ”इज्जत इंसान की नहीं, पैसे की होगी।” इस बात से उसे बहुत धक्का पहुंचा और उसे दुख भी हुआ कि लोग किस तरह, परिस्थितियों के बदलते ही अपनी सोच भी बदल देते हैं ?           

                       लक्ष्मी त्यागी

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